Monday, January 9, 2012

स्मृतियों में पहाड़

(कांगड़ा-धर्मशाला में बर्फ़बारी हुई है और मैं यहां मुंबई में तस्वीरें देख-देख चहक रही हूं. फिलहाल कोई दूसरा विकल्प है भी नहीं. बचपन में बड़े-बड़े ओले पड़ते हुए कई बार देखे वहां, लेकिन बर्फ़ 35 साल बाद गिरी है. काश, इस नज़ारे का लुत्फ़ ले पाती! मिसिंग दैट व्हाइट चार्म!!)
 
धौलाधार की पहाड़ियों पर 
बर्फ़ झरी है बरसों बाद 
और कई सौ मील दूर 
स्मृतियों में 
पहाड़ जीवंत हो उठे हैं 

कहीं भी जाओ 
पीछा नहीं छोड़ते पहाड़ 
संग चलते हैं 
जीवन भर  

वही हिम
वही उजास
वही उल्लास

स्मृतियों में उदात्त पहाड़
स्मृतियों में धवल चांदनी
स्मृतियों में निरभ्र शांति 

मैं संतृप्त रहने की चेष्टा में हूं 
स्मृतियों का शोर जारी है। 

('जनसंदेश टाइम्स' में 1 अप्रैल 2012 को प्रकाशित)

30 comments:

  1. बहुत सुन्दर और भावमयी प्रस्तुति..

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  2. कहीं भी जाओ
    पीछा नहीं छोड़ते पहाड़
    संग चलते हैं जीवन भर
    ................साधु-साधु

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  3. जब तक स्मृतियाँ हैं संतृ्प्तता की कोई गुंजाइश नहीं लगती मुझे तो।

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    1. देवेन्द्र जी, कभी-कभी स्मृतियां काफी होती हैं संतृप्त करने के लिए...

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  5. वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने

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  6. अद्भुत! इस सफ़ेद चादर को ओढ़ मैं भी खो जाऊं स्मृतियों के आकाश में...
    माधवी, जब भी आपकी कविताएं पढ़ती हूं, मन शांत हो जाता है, जीवन उल्लास से भर जाता है...
    The positivity of the white charm has indeed charmed me as well because of your magical words!!

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    1. Thank you so much for appreciating! It encourages me more!!

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  7. बेहतरीन भावो का सुन्दर संगम्।

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  8. it,s very nice ....words as well as pic. which gives the feeling of nature's wonder ...!

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  9. माधवी जी, आप बहुत अच्‍छा लिखती हैं ..इस रचना के भाव भी बहुत ही अच्‍छे हैं ..आप तक पहुंचने का श्रेय आदरणीय रश्मि जी को जाता है ब्‍लॉग बुलेटिन पर आपका परिचय पढ़ा अच्‍छा लगा बधाई के साथ शुभकामनाएं ।

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    1. बहुत धन्यवाद आपका और रश्मि जी का. अनन्त शुभकामनाएं स्वीकारें.

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  10. ऐसा अच्छा और भी लिखो.... अनवरत चलती रहे ये साधना...

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  11. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  12. बहुत शुक्रिया आपका.

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  13. हिम पहाड़ी सुंदरता का वर्णन अद्वितीय लिखा है आपने , हमारे राजस्थान की सुनहरी मिट्टी सी सौंधी महक बिखेर दी । बहुत खूब

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  14. बहुत खूब! कहने को पर्वत स्थावर हैं लेकिन ...

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    1. ...लेकिन चलते हैं साथ. बहुत शुक्रिया!

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  15. दिल करता कि अभी इस जगह कि तरफ की और रवाना हो जाऊं और अच्छी अच्छी कविताएँ लिखता रहूँ, बस लिखता रहूँ |

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