(लंबे अरसे बाद प्रिय कवि आलोक श्रीवास्तव की एक कविता,
तापोस दास के चित्र के साथ)
भर्तृहरि एक किंवदंती है
एक इतिहास-सिद्ध कवि के अलावा
जो कहीं हमारे भीतर हमारे ही मन के
वृत्तांत अंकित करती है किसी कूट भाषा में
अपने ही अंतरमन की कथा से भागते मनुष्यों का इतिहास है
हमारे समय का जीवन...
भर्तृहरि रोकता है राह में यह कहकर कि
जीवन को जिस तरह तुम जानते हो वह गलत है
जो कहीं हमारे भीतर हमारे ही मन के
वृत्तांत अंकित करती है किसी कूट भाषा में
अपने ही अंतरमन की कथा से भागते मनुष्यों का इतिहास है
हमारे समय का जीवन...
भर्तृहरि रोकता है राह में यह कहकर कि
जीवन को जिस तरह तुम जानते हो वह गलत है
मैं मरा नहीं
अभी हूं इस अछोर पृथ्वी
और अनंत काल में...
और अनंत काल में...