Friday, July 13, 2012

पुरुष आए मंगल से, स्त्री कौन देश से आईं?

अक़्सर कहा जाता है कि हम सब दुनिया की भीड़ में अकेले हैं, हम अकेले आए थे और अकेले ही जाएंगे। पर इस अकेले आने-जाने के सफ़र के बीच हम अकेले नहीं रह पाते। लगभग हर इंसान देर-सवेर किसी संबंध में बंधता ही है। मनुष्य का सबसे पहला संबंध अपनी मां से होता है, फिर पिता, भाई, बहन, पत्नी, बच्चे और सगे-संबंधी उसके जीवन से जुड़ते हैं। 
एक संबंध की उत्पत्ति की व्याख्याएं अनेक
बाइबल के मुताबिक, ईश्वर ने सात दिन में कायनात रच दी थी। उसने जन्नत बनाई, धरती का सृजन किया, जीव-जंतु व पेड़-पौधे तैयार किए, अलग-अलग मौसम रचे और इन सबकी हिफ़ाज़त के लिए मनुष्य का सृजन किया। ख़ुदा ने जो पहला इंसान बनाया, उसे आदमनाम दिया। फिर उसने एक ख़ूबसूरत बगीचा तैयार किया, जिसका नाम ईडनरखा। बगीचे में बेहतरीन पेड़ लगाए और आदम को इसमें रहने के लिए छोड़ दिया, लेकिन साथ ही उसे हिदायत दी गई कि वो एक पेड़ के सिवा बगीचे के किसी भी पेड़ से मनचाहा फल खा सकता है। आदम अकेला न रहे इसलिए ख़ुदा ने एक और इंसान रचा। यह एक औरत थी जिसे हव्वा (ईव) नाम दिया गया। आदम और हव्वा के अलावा ख़ुदा ने एक और जीव की रचना की, जो सांप था। सांप ने हव्वा को वर्जित पेड़ से फल खाने के लिए फ़ुसलाया। इस पर हव्वा ने आदम से भी वो फल खाने के लिए कहा। फल खाकर दोनों को अच्छे-बुरे का भान हुआ लेकिन ख़ुदा ने उन्हें इसकी सज़ा दी और उन्हें बगीचे से बाहर निकाल दिया। बाइबल के इसी हिस्से से आदम और हव्वा के सांसारिक जीवन की शुरुआत मानी जाती है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार धरती पर पहला आदमी मनु हुआ। मत्स्य पुराण में ज़िक्र है कि पहले ब्रह्मा ने दैवीय शक्ति से शतरूपा(सरस्वती) की रचना की, फिर ब्रह्म और शतरूपा के संसर्ग से मनु का जन्म हुआ। मनु ने कठोर तपस्या के बाद अनंती को पत्नी रूप में प्राप्त किया। शेष मानव जाति मनु और अनंती के संसर्ग से उत्पन्न हुई मानी गई है। भगवत पुराण में मनु और अनंती की संतानों का वृहद उल्लेख है। हालांकि ऋग्वेद में मनुष्य की उत्पत्ति की कहानी कुछ और है। इसमें कहा गया है कि प्रजापति की पांच संतानों से मानव जाति आगे बढ़ी।
क्या हम सचमुच अलग-अलग ग्रहों से हैं?
अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग मत हैं, मान्यताएं हैं। लेकिन उनमें एक साम्यता है कि पहले पुरुष आया, फिर स्त्री। दोनों में संबंध बना और संसार आगे बढ़ा। जब सब धर्मों के मत स्थापित हो चुके थे तो 1990 में अमेरिकी लेखक जॉन ग्रे स्त्री-पुरुष से संबंधित एक नया मत लेकर आए। इस मत के अनुसार, पुरुष मंगल ग्रह से हैं और महिलाएं शुक्र ग्रह से। उन्होंने इस विषय पर एक किताब लिख डाली जो अपने समय की सर्वाधिक बिकने वाली किताब साबित हुई। इस पुस्तक की अब तक 70 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। इसी किताब के मुताबिक, एक किस्सा यह भी है कि एक दिन मंगलवासियों ने टेलीस्कोप से शुक्र ग्रह की तरफ़ झांका, और वहां जो नज़ारा उन्हें दिखा, वह अद्भुत था। मंगलवासी शुक्र ग्रह पर रहने वाली स्त्रियों को देखते ही उनके प्रेम में पड़ गए। आव देखा न ताव, मंगलवासियों ने एक स्पेसशिप ईज़ाद किया और शुक्र ग्रह पर पहुंच गए। शुक्र ग्रह की स्त्रियों ने भी उनका दिल खोलकर स्वागत किया। स्त्रियां पहले से जानती थीं कि एक दिन ऐसा आएगा जब उनके हृदय प्रेम की छुअन महसूस करेंगे। दोनों वर्गों के बीच प्रेम पनपा और वे साथ-साथ रहने लगे। वे एक-दूसरे की आदतें समझने की कोशिश करने लगे। इस कोशिश में सालों बीत गए, लेकिन इस दौरान वे प्रेम और सौहार्द से रहे। एक दिन उन्होंने पृथ्वी पर आने का फ़ैसला किया। शुरुआत में सब ठीक था लेकिन धीरे-धीरे उन पर धरती का असर कुछ इस तरह होने लगा कि उनकी याददाश्त जाती रही। वे भूल गए कि वे दो अलग-अलग ग्रहों से आए प्राणी हैं, इसलिए उनकी आदतें और ज़रूरतें भी एक-दूसरे से जुदा होंगी। एक सुबह वे उठे तो पाया कि एक-दूसरे के बीच के अंतर को वे बिल्कुल भूल चुके हैं। यहीं से उनमें द्वंद्व की शुरुआत हुई, जो आज तक जारी है।
जॉन ग्रे ने पुरातन काल से चली आ रही मान्यताओं और पौराणिक धारणाओं से बिल्कुल जुदा एक बात कह दी। हालांकि पुरुषों के मंगल ग्रह से और स्त्रियों के शुक्र ग्रह से होने की उनकी बात को एक खोज या सत्य के अन्वेषण के रूप में नहीं लिया गया है। ग्रे की बात को एक लेखक के औरत-मर्द को लेकर विश्लेषण या एक विचार के रूप में लिया गया है। पर उनका इस विचार को पेश करने का ढंग इतना मज़ेदार था कि लोग इसके दीवाने हुए बिना नहीं रह पाए। ग्रे ने अपनी पुस्तक में एक जगह लिखा है, पुरुषों की शिकायत है कि जब वे किसी ऐसी समस्या का हल रखने की कोशिश करते हैं, जिसके बारे में महिलाएं बात करना चाहती हैं, तो होता यह है कि महिलाएं उस समस्या के बारे में सिर्फ़ बात करना चाहती हैं, हल नहीं ढूंढ़ना चाहतीं।
ग्रे कहते हैं कि स्त्री और पुरुष के बीच की समस्याओं का मुख्य कारण उनका स्त्री और पुरुष होना है। उनका लिंगभेद ही उनकी समस्याओं की जड़ है। अपनी बात को समझाने के लिए ग्रे कहते हैं कि पुरुष मंगल से हैं और स्त्रियां शुक्र से... और ये दोनों ही अपने ग्रहों के समाज और रीति-रिवाज़ों से बंधे हुए हैं। ये दोनों प्रजातियां इन्हीं ग्रहों के प्रताप की वजह से एक ख़ास तरह का आचरण करती हैं। यही वजह है कि स्त्री-पुरुष का समस्याओं, तनाव, तनावपूर्ण स्थितियों, यहां तक कि प्यार से निपटने का भी एक अलग अंदाज़, एक अलग नज़रिया है।
ग्रे ने स्त्री-पुरुष की बात की, उनके परस्पर संबंधों की बात की। ग्रे की तरह दुनिया के तमाम बुद्धिजीवी, लेखक, विचारक और दार्शनिक अपने-अपने अंदाज़ में संबंधों के विषय में अपनी-अपनी बात कहते आए हैं, अपने विचार और तथ्य पेश करते आए हैं। फिर भी स्त्री-पुरुष संबंधों का ताना-बाना इतना जटिल और हर रोज़ नए रंग व आयाम दिखाने वाला है कि कोई एक धारणा या एक मत केवल कुछ समय तक ही अपना वजूद और आकर्षण बनाए रख पाता है। समय के साथ हर विचार पर एक नया विचार और हर धारणा पर एक नई धारणा अपना प्रभाव दिखाने लगती है।
अनुभवों ने संबंधों को दी बेहतरीन अभिव्यक्ति
स्त्री-पुरुष के संबंधों को लेकर विभिन्न लेखकों, कवियों, बुद्धिजीवियों ने बहुत कुछ कहा है और इनमें से ज़्यादातर के विचार उनके अपने अनुभवों और अपनी ज़िंदगी की मथनी में मथ कर बाहर आए हैं। इनमें से कवियों को तो उनके संबंधों ने ही कवि और लेखक बनाया है। अब चाहे वो भारत के मोहन राकेश हों या तुर्की के नाज़िम हिकमत।
मोहन राकेश अपने जीवन में स्त्रियों के साथ अपने संबंधों के दरिया में डूबते-तैरते रहे। उनकी यही छटपटाहट, यही कोशिश उनकी लेखनी में भी साफ़ नज़र आती है। आषाढ़ का एक दिन’, आधे-अधूरे’, लहरों के राजहंसजैसे नाटकों और उनकी लिखी सैकड़ों उम्दा कहानियों में स्त्री-पुरुष के संबंधों का एक अनूठा जाल बुना गया है। आषाढ़ का एक दिनमें नायिका मल्लिका, नायक कालिदास से कहती है कि मेरी आंखें इसलिए गीली हैं कि तुम मेरी बात नहीं समझ रहे। तुम यहां से जाकर भी मुझसे दूर हो सकते हो...? यहां ग्राम-प्रान्तर में रहकर तुम्हारी प्रतिभा को विकसित होने का अवसर कहां मिलेगा? यहां लोग तुम्हें समझ नहीं पाते। वे सामान्य की कसौटी पर तुम्हारी परीक्षा करना चाहते हैं। विश्वास करते हो न कि मैं तुम्हें जानती हूं? जानती हूं कि कोई भी रेखा तुम्हें घेर ले, तो तुम घिर जाओगे। मैं तुम्हें घेरना नहीं चाहती। इसलिए कहती हूं, जाओ।
कितना जटिल, और देखा जाए तो कितना सरल चित्रण है संबंधों का! जिसने पूरा नाटक न भी पढ़ा हो या न भी देखा हो, वो भी केवल ये चंद पंक्तियां पढ़कर बहुत कुछ महसूस कर सकता है। और यह बात तय है कि केवल वही इंसान किसी को ऐसा महसूस करवा सकता है जिसने ख़ुद ऐसा महसूस किया हो। मोहन राकेश भी अपनी ज़िंदगी के किसी मोड़ पर कालिदास की इस स्थिति-विशेष में रहे होंगे, और उनके जीवन में भी किसी मल्लिका ने ऐसे ही कुछ भाव प्रकट किए होंगे, तभी तो वो अपने शब्दों में यह जादू लेकर आ पाए।
जहां एक ओर मोहन राकेश अपने संबंधों को मूर्त-रूप में मौजूद होकर जीते रहे, वहीं नाज़िम हिकमत ने अपनी जिंदग़ी का ज़्यादातर हिस्सा जेल में बिताया। जेल में रहकर वे अपने जीवन में घटित स्थितियों, घटनाओं और संबंधों पर कविताएं कहते रहे। नाज़िम हिकमत की मनोदशा के एक पहलू की झलक तब मिलती है जब वे क़ैदख़ाने से अपनी पत्नी को लिखते हैं- 
सबसे ख़ूबसूरत महासागर वह है 
जिसे हम अब तक देख पाए नहीं 
सबसे ख़ूबसूरत बच्चा वह है 
जो अब तक बड़ा हुआ नहीं 
सबसे ख़ूबसूरत दिन हमारे वो हैं 
जो अब तक मयस्सर हमें हुए नहीं 
और जो सबसे ख़ूबसूरत बातें मुझे तुमसे करनी हैं 
अब तक मेरे होंठों पर आ पाई नहीं।
इन पंक्तियों में नाज़िम के भीतर का दर्द, उस सज़ायाफ़्ता क़ैदी का दर्द सामने आता है, जिसका क़सूर सिर्फ़ इतना था कि कि वो कविताएं लिखता था। कविताएं जो व्यवस्था और सरकार को पसंद नहीं आती थीं, लेकिन नाज़िम को जेल की उस अंधेरी, सीलन भरी ठंडी कोठरी में उनके संबंधों की गर्मी ने ताक़त दी। उनके भीतर ऊर्जा और अहसासों का लावा बहाए रखा, जो उन्हें अपनी सदी का महान कवि और एक महत्वपूर्ण शख़्सियत बना गया।
प्रेम में विवाह और विवाह में प्रेम
मुक्त प्रेम, विवाह की कार्बन कॉपी है। अंतर यही है कि इसमें निभ न पाने की स्थिति में तलाक की आवश्यकता नहीं है। फ्रेंच लेखिका सिमोन द बोवुआ और बीसवीं सदी के महान विचारक व लेखक ज्यां पाल सार्त्र का रिश्ता बिल्कुल अलग तरह का था। वे कभी साथ नहीं रहे। पचास वर्षों तक उनका अटूट संबंध उनके लिए बहुधा सामान्य घरेलू जीवन जैसा ही था। वे लंबे समय तक होटलों में रहे, जहां उनके कमरे अलग-अलग थे। कभी-कभी तो वे अलग मंज़िलों पर भी रहे। बाद में सिमोन अपने स्टूडियो में रहीं और सार्त्र अपना मकान ख़रीदने से पहले अपनी मां के साथ रहे। किसी स्त्री-पुरुष के बीच यह एक ऐसा संबंध था, जिसकी पारस्परिक समझ केवल मृत्यु के द्वारा ही टूटी। इन दोनों का प्रेम मुक्त नहीं था, बल्कि आनंदहीन, नीरस चीज़ों से उन्हें असम्बद्ध और मुक्त रखता था। यही वजह है कि सार्त्र के साथ अपने संबंध को सिमोन ज़िंदगी का सबसे बड़ा हासिल मानती थीं। 
एक सफ़ल विवाह से प्यारा, दोस्ताना और अच्छा रिश्ता और कोई नहीं हो सकता...मार्टिन लूथर की यह बात सोलह आने सही है। किन्तु आधुनिक जीवन में सफल विवाह के कुछ सबसे बड़े शत्रु उभरकर सामने आए हैं, और उनमें से प्रमुख हैं- ईगो, दंभ और घमंड। इन तीनों शब्दों के अर्थों में कुछ भेद ज़रूर है पर इनकी आत्मा एक है। इनका वार एक-सा है, प्रहार एक-सा है और इनका असर भी एक-सा है। जब तक ये तीनों ज़िंदा हैं, सफ़ल विवाह दम तोड़ता नज़र आता है। हम अपनी ईगो के चलते विवाह जैसे ख़ूबसूरत रिश्ते की बलि चढ़ाने में भी नहीं हिचकिचाते। इसके विपरीत अगर ईगो को ही बलि की वेदी पर चढ़ा दिया जाए तो विवाह जैसा संबंध हमारे जीवन में नई रोशनी भर सकता है। ईगो, घमंड और दंभ को टक्कर देने के लिए हमारे पास कुछ हथियार हैं और वो हथियार हैं, प्यार और त्याग... क्योंकि अगर प्यार है तो त्याग है, और त्याग है तो रिश्ता टूट ही नहीं सकता। बल्कि वो अच्छे से फले-फूलेगा और मिठासभरा होगा। जहां दंभ है, वहां प्यार नहीं रह सकता, वहां हम एक-दूसरे के साथ नहीं, एक-दूसरे से मिलकर नहीं, बल्कि एक-दूसरे से अलग होकर जी रहे होते हैं। 
जुदा होकर भी...
वूडी एलन ने स्त्री-पुरुष के संबंध की तुलना शार्क से की है। वे कहते हैं कि शार्क की ही तरह किसी रिश्ते को भी आगे बढ़ते रहना चाहिए, नहीं तो उसके दम तोड़ने की गुंजाइश है। उनके इस कथन में दम है। यह विचार आजकल के जन-मानस के लिए उपयोगी साबित हो सकता है क्योंकि अब अरेंज्ड मैरिज की जगह प्रेम-विवाहों की संख्या बढ़ रही है। पर इस सबके बीच कुछ प्रेम ऐसे होते हैं जो विवाह तक नहीं पहुंच पाते और ब्रेक-अप का शिकार हो जाते हैं। ज़्यादातर मामलों में इन ब्रेक-अप्स की वजह बहुत छोटी होती हैं लेकिन उस वक्त प्रेम में आकंठ डूबे प्रेमियों को वही छोटी वजहें बहुत बड़ी नज़र आती हैं और नतीजा होता है ब्रेक-अप। लेकिन प्रेमी जोड़ा कुछ समय के लिए उन वजहों को नज़रअंदाज़ करके किसी शार्क की तरह आगे बढ़ता जाए और उस संबंध को विवाह तक ले जाए तो इस बात की बहुत संभावना है कि फिर वो अलग न हो। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है विवाह के साथ पैकेज के रूप में आई समझदारी और सहनशीलता। और इसका एक दूसरा कारण भी है कि विवाह किसी भी अफेयर से बड़ा संबंध होता है। हम किसी छोटे-बड़े कारण के चलते अफेयर को ब्रेक-अप में बदल सकते हैं, लेकिन उन्हीं कारणों के चलते विवाह को तलाक में बदलने से पहले कई बार सोचते हैं। हर इंसान अपने विवाह संबंध को बचाने के लिए जी-जान लगाता है और समय के साथ विवाहित पुरुष-स्त्री यह जानने लगते हैं कि कोई भी संबंध इतना कमज़ोर नहीं होता जो छोटे-छोटे झगड़ों की भेंट चढ़ जाए। लेकिन यह समझने के लिए सहनशीलता चाहिए, और वो आती है विवाह के बाद ही।
प्रेम की धुरी पर घूमता है संबंधों का चक्का
विवाह संबंध इंसान को परिपक्व बनाता है। आपको अपने आस-पास कई वर्गों के, कई लोग यह कहते मिल जाएंगे कि जो प्रेम-संबंध उन्होंने विवाह के बाद महसूस किया वो पहले कभी महसूस नहीं किया। नोबल पुरस्कार विजेता ब्रिटिश लेखक हैरल्ड पिंटर अपनी पत्नी के लिए लिखते हैं- 
"मर गया था और ज़िन्दा हूं मैं 
तुमने पकड़ा मेरा हाथ 
अंधाधुंध मर गया था मैं 
तुमने पकड़ लिया मेरा हाथ 
तुमने मेरा मरना देखा 
और मेरा जीवन देख लिया 
तुम ही मेरा जीवन थीं 
जब मैं मर गया था 
तुम ही मेरा जीवन हो 
और इसीलिए मैं जीवित हूं...." 
ऐसी बात अपनी पत्नी से गहन प्रेम-संबंध के बाद ही किसी लेखक की कलम से निकल सकती है। कुछ ऐसा ही प्रेम-संबंध इमरोज़ ने अमृता प्रीतम के लिए महसूस किया। वो अपने संस्मरण में कहते हैं, कोई भी रिश्ता बांधने से नहीं बंधता। प्रेम का मतलब होता है एक-दूसरे को पूरी तरह जानना, एक-दूसरे के जज़्बात की कद्र करना और एक-दूसरे के लिए फ़ना होने का जज़्बा रखना। अमृता और मेरे बीच यही रिश्ता रहा। पूरे 41 बरस तक हम साथ-साथ रहे। इस दौरान हमारे बीच कभी किसी तरह की कोई तकरार नहीं हुई। यहां तक कि किसी बात को लेकर हम कभी एक-दूसरे से नाराज़ भी नहीं हुए।
इमरोज़ आगे कहते हैं कि अमृता के जीवन में एक छोटे अरसे के लिए साहिर लुधियानवी भी आए, लेकिन वह एकतरफ़ा मुहब्बत का मामला था। अमृता साहिर को चाहती थी, लेकिन साहिर फक्कड़ मिज़ाज था। अगर साहिर चाहता तो अमृता उसे ही मिलती, लेकिन साहिर ने कभी इस बारे में संजीदगी दिखाई ही नहीं। 
एक बार अमृता ने हंस कर मुझसे कहा था कि अगर मुझे साहिर मिल जाता, तो फिर तू न मिल पाता। इस पर मैंने कहा था कि मैं तो तुझे मिलता ही मिलता, भले ही तुझे साहिर के घर नमाज़ अदा करते हुए ढूंढ़ लेता। मैंने और अमृता ने 41 बरस तक साथ रहते हुए एक-दूसरे की प्रेज़ेंस एंजॉय की। हम दोनों ने खूबसूरत ज़िंदगी जी। दोनों में किसी को किसी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं रही। मेरा तो कभी ईश्वर या पुनर्जन्म में भरोसा नहीं रहा, लेकिन अमृता का खूब रहा है और उसने मेरे लिए लिखी अपनी आख़िरी कविता में कहा है- मैं तुम्हें फिर मिलूंगी। अमृता की बात पर तो मैं भरोसा कर ही सकता हूं।
संबंधों का सागर विशाल है। एक कुशल और अच्छा नाविक वही है जो इस सागर में अपनी नाव तमाम हिचकोलों के बावजूद पार ले जाकर माने। और वो जब भी इस सागर में डुबकी लगाए तो संबंधों का सबसे क़ीमती मोती ही निकालकर लाए। न केवल निकाले बल्कि उसे सहेज कर भी रख सके, उसकी हिफ़ाज़त करे, उसका सम्मान करे। 
-माधवी

(दैनिक भास्कर की मासिक पत्रिका 'अहा ज़िंदगी' के जुलाई अंक में प्रकाशित, चित्र सुधा बरशीकर के सौजन्य से)

18 comments:

  1. अहा!ज़िन्दगी की नियमित पाठ हूँ...
    सुन्दर लेख...
    शुभकामनाएं.

    अनु

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  2. हाँ इस बार यह अंक पढ़ा आहा जिंदगी का बढ़िया लेख हैं ...यहाँ प्रकाशित करने के लिए शुक्रियाँ

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  3. स्त्री पुरुष संबंधों पर बेहतरीन आलेख्।

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  4. स्त्री पुरुष के सम्बन्ध को बहुत ही अच्छे तरीके से विश्लेषित कर दिया है बधाई

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  5. bahut khoob , madhavi ji aap kisi bhi vishay per bahut saral shabdon mein apni baat kehti hain, paathak usey poora padhe bina chor hi nahi paata, main aapki bahut badi prashansak ban chuki hoon , is lekh mein bhi aap kamaal kar gayin

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  6. stri-purush ke sambandho ka sundar vileshan...........

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  7. sarthak aalekh .aabhar
    <a href="http://bhartiynari.blogspot.com'>BHARTIY NARI </a>

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  8. Bahut khoob..ek lekh mein kitna kuchh sanjo liya..badhaai..

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  9. बहुत संतुलित और सारगर्भित लेख ! उत्पत्ति से लेकर वर्तमान तक नर नारी के मनोविज्ञान को समझने का सार्थक प्रयास !!

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  11. स्त्री पुरुष के आदिम और अधुनातन सम्बन्धों के सातत्य के कितने ही समीकरणों को दिखाती एक नैनो महाकाव्य सी लगी यह पोस्ट! सम्बद्ध सिलसिलेवार सतत....

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  12. एक सार्थक अनुसंधान पूर्वक लिखा गया आलेख. खास कर स्त्री-पुरुष के वजूद के सनातन सृजन विश्लेषण में गहन अध्ययन, अनुसंधान और परिष्कृत अभिव्यक्ति की झलक साफ़ नज़र आ रही है.आभार !!

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  13. bahut.... bahut mubaarak, lekh bahut hi accha likha hai.

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  14. बेहद मेच्योर, सधा हुआ . मैं तृप्त हुआ. कूल कूल महसूस हो रहा है. थेंक्स.

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