(रूसी कवि और फ़िल्मकार येव्गेनी येव्तुशेंको की कविताएं पढ़ते हुए
इस कविता पर आना हुआ. अनुवाद वरयाम सिंह का है. येव्गेनी की
और कविताएं यहां पढ़ी जा सकती हैं.)
मैं नहीं चाहता हर कोई मुझे प्यार करे
इसलिए कि संघर्ष की भावना के साथ-साथ
मुझमें बीज की तरह बैठा है मेरा युग
शायद एक नहीं, बल्कि कई-कई युग
पश्चिम के प्रति मैं सावधान होने का अभिनय नहीं करता
इसलिए कि संघर्ष की भावना के साथ-साथ
मुझमें बीज की तरह बैठा है मेरा युग
शायद एक नहीं, बल्कि कई-कई युग
पश्चिम के प्रति मैं सावधान होने का अभिनय नहीं करता
न पूरब की पूजा करता हूं अंधों की तरह
दोनों पक्षों की प्रशंसा पाने के लिए
मैंने स्वयं अपने से पूछी नहीं पहेलियां
अपने हृदय पर हाथ रख
संभव नहीं है इस निर्मम संघर्ष में
पक्षधर होना एक साथ
शिकार और शिकारी का
लुच्चापन है यह प्रयास करना
कि सभी मुझे पसंद करें
जितनी दूर मैं रखता हूं चाटुकारों को
उतनी ही दूर चाटुकारिता चाहने वालों को
मैं नहीं चाहता भीड़ मुझे प्रेम करे
चाहता हूं प्रेम केवल मित्रों का
चाहता हूं तुम मुझे प्रेम करो
और कभी-कभी मेरा अपना बेटा मुझे प्रेम करे
मैं चाहता हूं पाना उनका प्रेम
जो लड़ते हैं, और लड़ते हैं अंत तक
चाहता हूं मुझे प्रेम करती रहे
मेरे खोये पिता की छाया।
दोनों पक्षों की प्रशंसा पाने के लिए
मैंने स्वयं अपने से पूछी नहीं पहेलियां
अपने हृदय पर हाथ रख
संभव नहीं है इस निर्मम संघर्ष में
पक्षधर होना एक साथ
शिकार और शिकारी का
लुच्चापन है यह प्रयास करना
कि सभी मुझे पसंद करें
जितनी दूर मैं रखता हूं चाटुकारों को
उतनी ही दूर चाटुकारिता चाहने वालों को
मैं नहीं चाहता भीड़ मुझे प्रेम करे
चाहता हूं प्रेम केवल मित्रों का
चाहता हूं तुम मुझे प्रेम करो
और कभी-कभी मेरा अपना बेटा मुझे प्रेम करे
मैं चाहता हूं पाना उनका प्रेम
जो लड़ते हैं, और लड़ते हैं अंत तक
चाहता हूं मुझे प्रेम करती रहे
मेरे खोये पिता की छाया।
(चित्र- रोरिक)