(मां के जन्मदिवस पर आज उन्हीं की लिखी कविता,
जो 1981 में पंजाब की एक पत्रिका में शाया हुई थी.)
जो 1981 में पंजाब की एक पत्रिका में शाया हुई थी.)
पाण्डवो!
तुम्हारे बौद्धिक शोषण से
आज की द्रौपदी पूर्ण मुक्त है।
उसकी नियति अब
लोपाद्रुमा, गार्गी, यशोधरा-सी न होकर
सामर्थ्यपूर्ण नचिकेता की है
जिसके पलायन या
आक्रमण अभियान हेतु मार्ग
पूर्ण प्रशस्त है।
सूत्रधारो!
बेहतर स्थिति यह होगी कि-
फूहड़ दार्शनिकता की मवाद संभाले
अपने वंचनापूर्ण संवादों
नाटकीय प्रस्तुतीकरण
और पूर्वाग्रह युक्त मंचन के
प्रयासों को रहने दो।
कहीं ऐसा न हो कि
पात्रों से साज़िश कर
दर्शक
तुमसे बलात् पटाक्षेप करवाएं
और क्षमा-याचना के लिए
तुम्हें मजबूर कर दें।
-कीर्ति निधि शर्मा गुलेरी