Thursday, September 1, 2011

रहने दो

(अशोक वाजपेयी की एक और कविता, साथ में 
मार्क शगाल का चित्र.)
उन्हें जाने दो 
एक के बाद एक 
सूर्य, तारे 
विपुल पृथ्वी 
सयाना आकाश 
अबोध फूल

मुझे रहने दो
अपने अंधेरे शून्य में 
अपने शब्दों के मौन में
अपने होने की निराशा में

मुझे रहने दो उपस्थित
आख़िरी अनुपस्थिति में।

9 comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...