Saturday, September 10, 2011

वेरा के लिए

(नाज़िम हिकमत की कविता जो उन्होंने 
वेरा तुल्याकोवा के लिए लिखी. वेरा, 
नाज़िम की पांचवीं और अंतिम पत्नी थीं.) 

आओ!- उसने कहा 
और ठहरो!- उसने कहा 
और मुस्कराओ!- उसने कहा 
और मर जाओ!- उसने कहा। 

मैं आया 
मैं ठहरा 
मैं मुस्कराया 
और मैं मर गया।

4 comments:

  1. बहुत बहुत बधाई ||

    आप जब भी नई पोस्ट लाते हैं |
    नया उत्साह जगाते हैं ||

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  2. बहुत ही सुन्दर....

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  3. वाह! क्या बात है...बहुत सुन्दर

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  4. बहुत सुन्दर, धन्यवाद|

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