(इधर हाल में गौतम चटर्जी को पढ़ने का अवसर मिला. उनकी
कविताओं में जीवन के प्रति जिजीविषा, मृत्यु बोध और दर्शन
की छाप जितनी गहन है, उतनी ही सरल है उनकी भाषा.
फिलहाल एक प्रिय कविता, साथ में साल्वाडोर डाली का
चित्र.)
कविताओं में जीवन के प्रति जिजीविषा, मृत्यु बोध और दर्शन
की छाप जितनी गहन है, उतनी ही सरल है उनकी भाषा.
फिलहाल एक प्रिय कविता, साथ में साल्वाडोर डाली का
चित्र.)
घर से निकलता हूं तो
घर शुरू होता है
घर लौटता हूं तो
घर लौटता हूं तो
घर छूटता है
एक घर पेड़ पर
एक घर पेड़ पर
एक घर आसमान पर
एक घर मेरे पास
एक घर तुम्हारे पास
चलूं तो घर
चलूं तो घर
बैठूं तो घर
रुकूं तो घर
देखूं तो घर
अद्भुत!
अद्भुत!
सिर्फ़
... प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteविरक्त होता मन या सत्य से रूबरू होता मन !
ReplyDeleteachha hai..
ReplyDeleteSahi !
ReplyDeleteप्रभावी और बेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है ... ।
ReplyDeleteBahut achha laga gautam chatterji ko padhna!!
ReplyDeleteबहुत सशक्त और सटीक प्रस्तुति....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता है। मैं भी बहुत प्रभावित हुआ था इसे पढ़कर।
ReplyDeletesaral aur sundar
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeletepille pade hue panno me chipi huee hariyaali hoti hai purane pustak aur kavitaae..utkrusht rachnao se hame avagat kara dene ke liye aapka dhanyavaad :)
ReplyDeletebahut sundar.
ReplyDeleteghar ghar nahee rahe
makaan ho gaye
dil ke darwaaze chhote
gharon ke darwaaze bade ho gaye
भई बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत! शेयर करने के लिए धन्यवाद
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