(गोवा का नाम लेते ही बेशुमार रंगों से भरे समुद्र तटों की छवि ज़हन में उभरने लगती है। लेकिन सूरज, रेत और समंदर का मेल ही गोवा की तस्वीर मुकम्मल करने के लिए काफी नहीं। यहां की ऐतिहासिक विरासत भी ख़ुद में बहुत कुछ समेटे हुए है। इसी विरासत का हिस्सा है अग्वादा किला। इस बार गोवा जाना हुआ तो अग्वादा से रू-ब-रू होने का मौक़ा मिल गया।)
गोवा में 42वां अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव ‘इफ्फी’ शुरू होने में एक दिन शेष था और हम वहां जाने के ख़याल से ही उत्साहित थे। रजिस्ट्रेशन महीना भर पहले हो चुका था। लखनऊ से मेरी दोस्त प्रतिभा भी पहुंच चुकी थी। यात्रा की रूपरेखा तैयार कर हमने मुंबई से गोवा के लिए उड़ान भरी। तक़रीबन 45 मिनट बाद खिड़की से बाहर झांका तो दूर-दूर तक पानी का सैलाब, रंग-बिरंगे घर और हरियाली नज़र आई। दृश्य देखते ही समझ आ गया कि हम गोवा पहुंचने वाले हैं। गोवा एयरपोर्ट पर कार्गो से आने वाले सूटकेस का इंतज़ार भी हमें भारी पड़ रहा था। एयरपोर्ट से बाहर आए तो ‘इफ्फी’ के रंग-बिरंगे बैनर देखकर मन और मचल उठा। टैक्सी में गोवा की रौनक़ देखते हुए हम उत्तरी गोवा पहुंचे। यहां अरपोरा इलाके में हमारे ठहरने की व्यवस्था थी। अरपोरा, राजधानी पणजी से 15 किलोमीटर दूर है। ‘इफ्फी’ पणजी में होने वाला था। आने-जाने में असुविधा न हो, इसलिए हमने दोपहिया वाहन किराए पर लिया और अगले पांच दिन के लिए निश्चिंत हो गए।
इससे पहले कि आप कुछ सोचें, बता दूं कि मैं यहां ‘इफ्फी’ की नहीं बल्कि गोवा की ऐतिहासिक धरोहर की बात करने जा रही हूं। एक ऐसे किले की बात, जो देश के सबसे पुराने और संरक्षित किलों में से है।
अग्वादा किला.. इसे देखने की हसरत जाने कब से थी! बिंदास माहौल और ‘इफ्फी’ के ख़ुमार के बीच दिन जितनी तेज़ी से बीत रहे थे, यह इच्छा उतनी ही बलवती होती जा रही थी। ‘इफ्फी’ से वक़्त चुराना आसान नहीं था, लेकिन पहली ही फ़ुर्सत में हमने अग्वादा किले का रुख़ कर लिया।
इतिहास के गलियारों से
इससे पहले कि आप कुछ सोचें, बता दूं कि मैं यहां ‘इफ्फी’ की नहीं बल्कि गोवा की ऐतिहासिक धरोहर की बात करने जा रही हूं। एक ऐसे किले की बात, जो देश के सबसे पुराने और संरक्षित किलों में से है।
अग्वादा किला.. इसे देखने की हसरत जाने कब से थी! बिंदास माहौल और ‘इफ्फी’ के ख़ुमार के बीच दिन जितनी तेज़ी से बीत रहे थे, यह इच्छा उतनी ही बलवती होती जा रही थी। ‘इफ्फी’ से वक़्त चुराना आसान नहीं था, लेकिन पहली ही फ़ुर्सत में हमने अग्वादा किले का रुख़ कर लिया।
इतिहास के गलियारों से
उत्तरी गोवा की बारदेज़ तहसील में है अग्वादा किला। यह अरपोरा से 8 किलोमीटर दूर है। अरपोरा से कैंडोलिम और सिन्क्वेरिम समुद्रतट की तरफ़ जाने वाली सड़क किले तक ले जाती है। फोर्ट रोड पर चहल-पहल भरे बाज़ार हैं, तो कई अच्छे विदेशी रेस्तरां और कैफे भी। बाज़ार पार करने के बाद हल्की चढ़ाई है। रास्ता थोड़ा घुमावदार हो जाता है, लेकिन ख़ूबसूरत नज़ारे यहां भी साथ नहीं छोड़ते। ट्रैफिक न के बराबर है और सड़क के दोनों तरफ झाड़ियां हैं। हम स्कूटर पर थे इसलिए अग्वादा पहुंचने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा।
अग्वादा पुर्तगाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- पानी का स्थल। मांडवी नदी के मुहाने पर बसा अग्वादा किला 1612 ईसवी में तैयार हुआ था। इसे पुर्तगालियों ने बनवाया था। हर किले की तरह इस किले का निर्माण भी दुश्मनों से सुरक्षा के लिए किया गया। लेकिन एक मक़सद और था- यूरोप से आने वाले जहाज़ों के लिए ताज़ा पानी मुहैया कराना। किले में पानी जमा रहे, इसके लिए यहां एक विशाल टंकी बनवाई गई। इसे संभालने के लिए 16 बड़े स्तंभों का प्रयोग किया गया। टंकी की भंडारण क्षमता कई लाख गैलन है। इसमें पानी एकत्र करने के लिए प्राकृतिक झरनों की मदद ली जाती थी। मज़े की बात है कि ये झरने किले के अंदर ही थे। 17वीं और 18वीं शताब्दी में दूर-दराज़ से आने वाले जहाज़ यहां रुकते और ताज़े पानी का स्टॉक लेकर आगे बढ़ जाते। यक़ीन नहीं होता कि सामान्य-सा दिखने वाला किला किसी ज़माने में पानी का इतना बड़ा स्रोत रहा होगा! किले के प्रांगण में प्रवेश करते हैं तो टंकी सामने दिखाई देती है। इस पर खड़े होकर चारों तरफ़ नज़र दौड़ाएं तो लगेगा जैसे लंबी आयताकार दीवार ने आपको घेरा हुआ है। एक कोने पर सफ़ेद रंग का लाइट हाउस तो दूसरे किनारे पर मांडवी नदी है। ये दोनों किले की ख़ूबसूरती में भरपूर इज़ाफ़ा करते हैं। एक स्थानीय महिला से पता चला कि फ़िल्म ‘भूतनाथ’ की शूटिंग इसी किले में हुई थी। यहां परम शांति है और सुकून चाहने वालों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है यह जगह। बाहरी छोर पर बैठी प्रतिभा आराम की मुद्रा में आ चुकी थी, लेकिन मैं थी कि निकल पड़ी किले का जायज़ा लेने के लिए।
अग्वादा पुर्तगाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- पानी का स्थल। मांडवी नदी के मुहाने पर बसा अग्वादा किला 1612 ईसवी में तैयार हुआ था। इसे पुर्तगालियों ने बनवाया था। हर किले की तरह इस किले का निर्माण भी दुश्मनों से सुरक्षा के लिए किया गया। लेकिन एक मक़सद और था- यूरोप से आने वाले जहाज़ों के लिए ताज़ा पानी मुहैया कराना। किले में पानी जमा रहे, इसके लिए यहां एक विशाल टंकी बनवाई गई। इसे संभालने के लिए 16 बड़े स्तंभों का प्रयोग किया गया। टंकी की भंडारण क्षमता कई लाख गैलन है। इसमें पानी एकत्र करने के लिए प्राकृतिक झरनों की मदद ली जाती थी। मज़े की बात है कि ये झरने किले के अंदर ही थे। 17वीं और 18वीं शताब्दी में दूर-दराज़ से आने वाले जहाज़ यहां रुकते और ताज़े पानी का स्टॉक लेकर आगे बढ़ जाते। यक़ीन नहीं होता कि सामान्य-सा दिखने वाला किला किसी ज़माने में पानी का इतना बड़ा स्रोत रहा होगा! किले के प्रांगण में प्रवेश करते हैं तो टंकी सामने दिखाई देती है। इस पर खड़े होकर चारों तरफ़ नज़र दौड़ाएं तो लगेगा जैसे लंबी आयताकार दीवार ने आपको घेरा हुआ है। एक कोने पर सफ़ेद रंग का लाइट हाउस तो दूसरे किनारे पर मांडवी नदी है। ये दोनों किले की ख़ूबसूरती में भरपूर इज़ाफ़ा करते हैं। एक स्थानीय महिला से पता चला कि फ़िल्म ‘भूतनाथ’ की शूटिंग इसी किले में हुई थी। यहां परम शांति है और सुकून चाहने वालों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है यह जगह। बाहरी छोर पर बैठी प्रतिभा आराम की मुद्रा में आ चुकी थी, लेकिन मैं थी कि निकल पड़ी किले का जायज़ा लेने के लिए।
अग्वादा किले की बाहरी दीवार लगभग ढह चुकी है। अंदर की दीवारें मज़बूत हैं जो तीन तरफ़ से चौड़ी खाई से घिरी हैं। चौथा छोर नदी की तरफ़ खुलता है। किले की संरचना कुछ ऐसी है कि इसे दो भागों में बांट सकते हैं- एक ऊपरी और दूसरा निचला भाग। किले के ऊपरी हिस्से में पानी की टंकी, लाइट हाउस, बारूद रखने का कक्ष और बुर्ज हैं, जबकि निचला हिस्सा पुर्तगाली जहाजों की गोदी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। ख़ास बात यह कि अग्वादा देश का एकमात्र किला है जिस पर किसी का आधिपत्य नहीं हो सका। यही वजह है कि पुर्तगाली किलों में अग्वादा सबसे अहम है।
पुराने दीप स्तंभों में से एक
लाइट हाउस किला परिसर में है जो बाहर से ही दिखना शुरू हो जाता है। इसकी चार मंज़िलें हैं। वर्ष 1864 में पुर्तगाल से आने वाले जहाज़ों को दिशा दिखाने के लिए इसे बनवाया गया था। अगर कहा जाए कि किले की शान लाइट हाउस है तो ग़लत नहीं होगा। अग्वादा लाइट हाउस देश के सबसे पुराने लाइट हाउस में से है। हालांकि बहुत-से लोगों का मानना है कि यह एशिया का सबसे पहला दीप स्तंभ है। 1976 में इसका इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया गया था।
सेंट्रल जेल भी
सेंट्रल जेल भी
अब बात अग्वादा जेल की। किले के निचले भाग को, जो बाकी हिस्सों के मुक़ाबले बेहतर हालत में है, जेल में तब्दील कर दिया गया है। यह अब गोवा की सेन्ट्रल जेल है जिसमें नशीली दवाओं के कारोबार से जुड़े लोगों को रखा जाता है। सैलानियों को यहां आने की इजाज़त नहीं है। अग्वादा से क़रीब एक किलोमीटर पहले सिन्क्वेरिम तट है। बारदेज़ से आते हुए बाईं तरफ़ कई मोटरबोट हैं, जो डॉल्फिन पॉइंट जाने के लिए खड़ी रहती हैं। बोट में बैठकर डॉल्फिन्स के ऊपर आने का इंतज़ार अलग अनुभव देता है। पानी से उचककर जितनी तेज़ी से वो बाहर आती हैं, उतनी ही फुर्ती से गुम भी हो जाती हैं। यहीं किनारे पर आप सेन्ट्रल जेल देख सकते हैं। किले और लाइट हाउस का ऊपरी हिस्सा यहां से साफ़ नज़र आता है। अग्वादा जाने से पहले हम डॉल्फिन पॉइंट होकर आए थे। वहां एक ख़ूबसूरत बंगला भी देखने को मिला। मोटरबोट वाले ने बताया कि वो बंगला हीरा व्यापारी जिम्मी गज़दर का है। इस बंगले में ‘हसीना मान जाएगी’ समेत कई फ़िल्मों की शूटिंग हो चुकी है।
अग्वादा किले के बंद होने का वक़्त हो चला था। प्रतिभा की ख़्वाहिश थी कि समंदर किनारे बैठ, सूरज को ढलते हुए देखा जाए। सूर्यास्त में ज़्यादा समय नहीं बचा था, इसलिए अग्वादा को हमने अलविदा कहा और अपने स्कूटर को कैंडोलिम बीच की दिशा में घुमा दिया।
जाने से पहले...
1. टैक्सी या निजी वाहन से जाना बेहतर है। गोवा में दोपहिया वाहन सबसे अच्छा विकल्प है। अपनी सुविधा के अनुसार स्कूटर या बाइक किराए पर ले सकते हैं। एक दिन का किराया लगभग 250 रुपए है जो दिसंबर के आख़िरी हफ़्ते में 500 रुपए तक हो जाता है।
2. समुद्र तट से सटा होने के कारण उमस अपेक्षाकृत ज़्यादा है। पानी साथ लेकर चलें। किले के सामने खाने-पीने के कुछ स्टॉल हैं, लेकिन महंगे हैं।
3. यहां जाने के लिए नवंबर से मार्च का समय अनुकूल है।
4. तीखी धूप से बचने के लिए हैट साथ रखें। सन-स्क्रीन लोशन का प्रयोग भी कर सकते हैं।
5. अग्वादा किला सप्ताह भर खुला रहता है और इसे देखने के लिए प्रवेश शुल्क नहीं है।
(दैनिक जागरण के 'यात्रा' परिशिष्ट में 29 जनवरी 2012 को प्रकाशित)
It is the first so detailed account of Aguada Fort, I have read..... It felt like roaming there only.
ReplyDeleteअगवादा किले का बहुत सुन्दर विवरण... धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छा विवरण..
ReplyDeleteपहले देखा है ये फोर्ट ..मगर आज आपकी नज़र से देखना भी भला लगा.
:-)
गोवा मैंने भी घूमा है मगर इतनी विस्तृत जानकारी मुझे न थी ...जो आज आपके इस बेहतरीन आलेख से प्राप्त हो सकी...साथ ही यादें भी ताज़ा हो गई... आभार
ReplyDeleteयात्रा आपके साथ अच्छी रही, क्योंकि मैं गई भी तो नहीं हूँ ...
ReplyDeleteगोवा के बारे में सुना तो बहुत है,बीचो के बारे में,एकदम नयी और मौलिक जानकारी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
मार्च में गोवा जाने का प्रोग्राम है। अब तो यहां जाना ही है।
ReplyDeleteइस आलेख में आपकी लेखनी प्रशस्त है, बांधती है, भाषा पठनीय है। रचना को पूरी पढ़ने की रुचि जगाती है। आपको साधुवाद।
हमें ललचाती रहो दुनिया जहान की जगहों के लिए। जा पाए तो तुम्हारी पोस्ट गाइड है ही वर्ना इसके सहारे ही घूमना नसीब हुआ।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी से परिपूर्ण प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट,...
ReplyDeleteमाधवी जी,मेरे पोस्ट पर आइये,...welcome to new post ...काव्यान्जलि....
सुन्दर तस्वीरों से सजा अच्छा लेख |
ReplyDeleteगोअया की विस्तृत जानकारी मिली |
आशा
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा विवरण..
ReplyDeleteप्रतिभा की ख़्वाहिश थी कि समंदर किनारे बैठ, सूरज को ढलते हुए देखा जाए। सूर्यास्त में ज़्यादा समय नहीं बचा था, इसलिए अग्वादा को हमने अलविदा कहा और अपने स्कूटर को कैंडोलिम बीच की दिशा में घुमा दिया।
ReplyDeleteऔर हम सूरज के पीछे भागे.तुम बैठने का सुन्दर किनारा तलाशती रहीं और मै सूरज से कहती रही जरा रुक भी जाओ...फिर बड़े से समंदर में हम मछलियों की तरह तैरने लगे...क्या क्या ना याद आया इस लेख के बहाने...मेरी जिन्दगी के सुन्दर दिन..तुम्हारा साथ! लव यू माधवी!
बहुत सुन्दर विवरण...
ReplyDeleteएक शोधपरक आलेख और प्रेरक जानकारी .....!
ReplyDeleteचिलका झील में भी डालफिन यही कारगुजारी करती हैं। किले और जेल के बारे में बताने के लिए शुक्रिया !
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