'सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल, ज़िंदगानी फिर कहां!' घुमक्कड़ी जीवन का मूल-मंत्र। कला में अभिरुचि। इससे इतर विश्व सिनेमा, साहित्य और फ़ोटोग्राफी में मन रमता है। ब्लॉग के ज़रिए हमख़याल लोगों से राब्ता कायम करने की कोशिश है। यह ब्लॉग पूजनीय परदादा पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी को समर्पित है। लेखन शौक है और कोशिश जारी...
bahut achchhe!!! chhoti, lekin badi baat!!!
ReplyDeleteबहुत ही भावप्रणव रचना!
ReplyDeleteओह, खूबसूरत..
ReplyDeleteआहा.. क्या खूब बात कही है छोटे में.. बहुत अच्छा..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिभूत कर देने वाली रचना
ReplyDeleteसुन्दर ---जाल और जीवन ||
ReplyDeletechoti si kavita ...par dil ko chhoo gayi
ReplyDeleteअजय जी, रूप जी, अभि, प्रतीक, चन्द्रभूषण और रविकर जी.. आप सभी का आभार।
ReplyDeleteअना.. आपका भी शुक्रिया।
nice one...
ReplyDeletearshia
कोई फर्क़ नही . जाल ही मकड़ी का जीवन है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteजीवन भी किसी मक्कड जाल से कम थोड़ी होता है..