"संसार की प्रत्येक वस्तु ख़ूबसूरत है।" कन्फ्यूशियस के इस वचन से बहुत से लोग सहमत होंगे। लेकिन ज़रूरी नहीं कि इससे एकमत होने वालों में आप भी शामिल हों। सबकी अपनी सोच है, अपना नज़रिया है। आपमें से किसी को सुबह ख़ूबसूरत लगती होगी तो किसी को ढलती शाम। किसी को रौनक़ अच्छी लगती होगी तो किसी को एकान्त। किसी को मांस-मछली पसन्द है तो कोई शाकाहारी होने में अच्छा महसूस करता है। कोई जीवनभर किताबों में खोया रहता है तो किसी के लिए जीवन की किताब ही सर्वोपरि है।
बस इक नज़र चाहिए
ब्यूटी लाइज़ इन द आईज़ ऑफ बिहोल्डर। ख़ूबसूरती देखने वाले की नज़र में होती है। कहते हैं लैला ख़ूबसूरत नहीं थी। रंग से काली थी, आकर्षक नहीं थी। लेकिन मजनूं की नज़र में लैला दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत औरत थी। अब सोचने वाली बात है कि मजनूं को आख़िर लैला में ऐसा क्या नज़र आया कि वो उसके प्यार में पड़ गया। चेहरा-मोहरा न सही, लैला का दिल यकीनन ख़ूबसूरत होगा। वो मन से सुन्दर होगी। तभी तो मजनूं जीवन भर लैला-लैला करता रहा। लैला-मजनूं से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है। मजनूं बचपन से ही लैला का दीवाना था। एक रोज़ मजनूं ने तख़्ती पर लैला लिख दिया। इस पर मौलवी साहब ने मजनूं से कहा कि यह क्या लिख रहा है, ख़ुदा का नाम लिख। मजनूं ने पूछा कि ख़ुदा कौन है। मौलवी का उत्तर था.. लाइला यानि अल्लाह। मजनूं बोला, मैं भी तो वही लिख रहा हूं, कहां कोई फर्क़ है। आप लाइला कहते हैं, मैं लाइला (लैला) कहता हूं। मेरा महबूब यानी लैला ही मेरा ख़ुदा है। इस पर ख़ुदा ने फरिश्तों के हाथ पैग़ाम भेजा कि मजनूं को बुलाया जाए। मजनूं उन फरिश्तों से बोला कि अगर ख़ुदा मुझे देखना चाहता है तो मैं भला उसके पास क्यों जाऊं। उसे ज़रूरत है तो लैला बनकर वो मेरे पास आ जाए। ...उनके दिल तक जाना था
प्रेम-प्रसंग की बात चली है तो मिस्र की मल्लिका क्लियोपेट्रा का ज़िक्र लाज़िमी है। हज़ारों दिलों पर राज करने वाली क्लियोपेट्रा का कद छोटा था। वो दिखने में भी ख़ूबसूरत नहीं थी, ऐसा इतिहासकार कहते हैं। पिता की मृत्यु के बाद क्लियोपेट्रा ने अपने भाई के साथ मिलकर मिस्र का राज संभाला। यही वक़्त था जब रोम का राजा जूलियस सीज़र क्लियोपेट्रा पर रीझ गया। जूलियस की मौत के बाद रोम का सेनापति मार्क अंतोनी क्लियोपेट्रा के जीवन में आया। क्लियोपेट्रा मेधावी थी और अच्छी वाणी की मल्लिका भी। क्लियोपेट्रा का व्यवहार कौशल ही होगा जिसके दम पर उसने छोटी उम्र में ही बड़े-बड़े लोगों को अपना मुरीद बना लिया। यह अंदरूनी ख़ूबसूरती है, जिसका जादू एक बार चढ़े तो ताउम्र नहीं उतरता। बाहरी सौन्दर्य मूमेन्टरी है। आज है तो कल नहीं। कोई कितना ही सुन्दर क्यों न हो, वक़्त का तकाज़ा एक रोज़ बूढ़ा कर देता है। जिल्द पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। लेकिन मन ख़ूबसूरत है तो उम्र बढ़ने के साथ यह ख़ूबसूरती और निखरती है। मन निर्मल है तो आप हमेशा सुन्दर दिखते हैं। भीतरी सौन्दर्य की ख़ासियत ही है कि वो समूचे व्यक्तित्व में झलकता है। लेकिन मन कुटिल हो तो कालिख़ चेहरे पर नज़र आती है।बाहरी ख़ूबसूरती की उम्र कम होती है। सच्चा प्रेम करने वाले यह जानते हैं। शायर हस्तीमल हस्ती ने भी ख़ूब कहा है, "जिस्म की बात नहीं थी, उनके दिल तक जाना था.. लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।" असल प्रेम तो दिल से दिल का है। और किसी के दिल तक पहुंचना आसान कहां! यह मशक्कत भरा काम है।
ब्यूटी इज़ स्किन डीप
मधुबाला या महारानी गायत्री देवी किसे ख़ूबसूरत नहीं लगती होंगी। इसमें दो राय नहीं कि वो ख़ूबसूरत थीं। लेकिन अच्छे नैन-नक़्श और बेदाग़ त्वचा का होना ही मुक़म्मल ख़ूबसूरती नहीं। यक़ीकन, मधुबाला और गायत्री देवी से ज़्यादा सुन्दर पत्थर तोड़ती वो औरत है जो पसीने से लथपथ है। जो अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए रात-दिन मेहनत करती है। जो आजीवन संघर्ष करती है लेकिन हार नहीं मानती। मदर टेरेसा भी ख़ूबसूरत हैं, जिन्होंने पूरी ज़िंदगी दूसरों की सेवा में होम कर दी। कितना जीवट रहा होगा उस महिला में। मदर टेरेसा का झुर्रियों से भरा चेहरा जब भी आंखों के सामने आता है तो मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स की ख़ूबसूरती फीकी लगती है। सुन्दर लगते हैं कृशकाय-से महात्मा गांधी भी, जिन्होंने कभी सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था। ख़ूबसूरत लगते हैं अन्ना हज़ारे जो पांच दिन तक अनशन पर बैठे रहे, इसलिए कि उन्हें भ्रष्टाचार गवारा नहीं था। अब आप ही सोचिए कि ऐसी ख़ूबसूरत हस्तियों के सामने किसी ग्रीक गॉड की क्या बिसात होगी। जो प्यार करेगा, प्यारा कहलाएगा
खलील जिब्रान कहते हैं कि "हर वो हृदय जो प्यार करता है, ख़ूबसूरत है।" बात सोलह आने सच है। प्यार से भरा दिल ख़ुशियों का पुलिंदा है। दिल ख़ुश हो तो सारा जहां ख़ुशनुमा लगता है। पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' पढ़ी होगी आपने। कहानी का नायक लहना सिंह जंग में लड़ते हुए मरणासन्न है। कहते हैं मृत्यु से पहले स्मृति साफ हो जाती है। लहना के सामने भी बरसों पुरानी यादें जीवंत हो उठी हैं। फ्लैशबैक में वो सारी बातें याद आ रही हैं जो उस छोटी सी लड़की से हुई थीं। “तेरी कुड़माई हो गई?”.. “धत्”.. “देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू”.. इस लड़की से लहना प्यार करने लगा था। लहना अब जिस पलटन में सिपाही है उसका सूबेदार, बचपन की उसी सखी का पति है। सूबेदारनी लहना से अपने पति व पुत्र की प्राणरक्षा की गुहार लगाती है तो वो उसकी कही बात का मोल अपनी जान देकर रखता है। आख़िरी सांस लेते हुए भी वो मुस्करा रहा है। उसका दिल प्रेम व त्याग से भरा है। कितना ख़ूबसूरत किरदार है लहना। सृजन में है सुंदरता
लियोनार्दो द विंची की मोनालिसा को कौन नहीं जानता। जिसकी ख़ूबसूरत मुस्कान ने उसे विश्व-विख्यात कर दिया। मोनालिसा को जब भी देखती हूं, चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है। यही सृजन की ख़ूबसूरती है। मेरे लिए सफ़ेद दाढ़ी वाले मिर्ज़ा ग़ालिब ख़ूबसूरत हैं जिनकी उम्दा शायरी दिल तक पहुंचती है। आबिदा परवीन ख़ूबसूरत हैं जो बेहतरीन गायकी से रूह को सुक़ून पहुंचाती हैं। बाबा रामदेव ख़ूबसूरत हैं, जिन्होंने योग-विद्या से लोगों को स्वस्थ रहना सिखाया है। रैम्प पर इठलाते लम्बे-लम्बे, सिक्स पैक वाले मॉडलों से ज़्यादा ख़ूबसूरत लगता है नाटे क़द का दुबला-सा चार्ली चैपलिन, जिसने बचपन में बेशक बुरा वक़्त देखा लेकिन बड़े होकर दुनियाभर को हंसाया। चार्ली ने एक बार कहा था, "मैं बरसात में भीगते हुए रोता हूं ताकि कोई मेरे आंसू न देख सके।" अपनी हंसी-ठिठोली से लोगों के दिलों पर राज करने वाला वो आदमी कितना अकेला होगा, कितनी करुणा छिपी होगी उसके भीतर और कितना अच्छा इनसान होगा वो। हर शै में ख़ूबसूरती
फूलों में अवसाद हरने का गुण है। रंग-बिरंगे फूल देख मन प्रफुल्लित हो जाता है, रोम-रोम खिल उठता है। यही फूलों का नूर है। फूल ही क्यों, प्रकृति के कण-कण में ख़ूबसूरती है। पेड़-पौधे, नदियां, झरने व पहाड़ सुन्दर हैं। बारिश और बर्फ़ का गिरना सुन्दर है। चांद की घटती-बढ़ती कलाएं अद्वितीय हैं। सूरज का उगना-डूबना अलौकिक है। समन्दर ख़ूबसूरत है, उसकी लहरों का आना-जाना ख़ूबसूरत है। कितना अच्छा लगता है इनके साथ वक़्त बिताना, इन्हें निहारते रहना। सारी उदासी छूमंतर हो जाती है, नई ऊर्जा भर जाती है। क़ुदरत में बड़ी क़ुव्वत, बड़ी ख़ूबसूरती है।
तिनका-तिनका जोड़ रही चिड़िया को घोंसला बनाते हुए देखना मनोहर है। कबतूरों को दाने खिलाना संतोष देता है। ज़रूरतमंद की मदद करने से ख़ुशी मिलती है। दृष्टिहीन को सड़क पार करवाने में सुक़ून मिलता है। वैसे ही, जैसे किसी भूखे जानवर को रोटी और प्यासे पंछी को पानी देने पर मिलता है। ख़ूबसूरती इसमें है। उसमें नहीं कि आप कैसे कपड़े पहनते हैं या कैसे बाल बनाते हैं। कौन-सी कार में घूमते हैं और कौन-सा परफ्यूम लगाते हैं। असल ख़ूबसूरती बाहर नहीं बल्कि भीतर, हमारे मन में है। ख़ूबसूरती सादगी में है, एक मुस्कराहट में है। निष्कपट व निर्मल होने में है, जैसे कोई बच्चा होता है। इसीलिए बच्चों का सौन्दर्य अप्रतिम है। इसीलिए बच्चे सबके प्रिय होते हैं और वो हमेशा ख़ूबसूरत लगते हैं। इसीलिए हमारा दिल भी बच्चा हो जाना चाहता है। अमेरीकी कवि वॉल्ट व्हिटमैन कहते हैं कि ज़िन्दा रहना चमत्कार है। यह सोच तर्कसंगत है। हम जीवित हैं, स्वस्थ हैं तो इससे बड़ी कोई नियामत नहीं। इससे ज़्यादा ख़ूबसूरत कुछ नहीं। जीवन निसंदेह विलक्षण है। ज़िंदग़ी बेशक़ ख़ूबसूरत है। मैं मानती हूं कि ज़िंदग़ी को बच्चा बनकर जिया जाए तो यह और ख़ूबसूरत हो जाती है। और अर्थपूर्ण लगती है। आप क्या कहते हैं?
-माधवी
(दैनिक भास्कर की पत्रिका 'अहा ज़िंदग़ी' के जुलाई 2011 अंक में प्रकाशित)
-माधवी
(दैनिक भास्कर की पत्रिका 'अहा ज़िंदग़ी' के जुलाई 2011 अंक में प्रकाशित)
खूबसूरती पर बहुत अच्छा लेख ... ज़िंदगी बच्चा बन कर जी जाए तो और खूबसूरत लगेगी ..सही बात ..
ReplyDeleteहम कहते हैं कि आप सही कहती हैं.
ReplyDeleteएक सांस में पूरी पोस्ट पढ़ गया.
ReplyDeleteइत्मीनान से दोबारा पढ़ूंगा बाद में.
बहुत सुंदर पोस्ट है.
ज़िंदगी तो खूबसूरत है ही.
अहा! खूबसूरत लेख.. सादगी में ही खूबसूरती है.. पर इस सादगी में ख़ूबसूरती लाना और उसे ढूंढना ही सबसे कठिन काम है..
ReplyDeleteऔर वो लहना सिंह की कहानी!! वाह.. स्कूल में पढ़ी थी.. क्या याद दिलाया है आपने.. मज़ा आ गया.. अब पूरी कहानी पढ़ रहा हूँ अंतरजाल पर..
परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है...
आभार
आप सभी का तह-ए-दिल से शुक्रिया !!
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