मैं सोना चाहता हूं
मैं सो जाना चाहता हूं
ज़रा देर के लिए
पल भर, एक मिनट
ज़रा देर के लिए
पल भर, एक मिनट
शायद एक पूरी शताब्दी
लेकिन
लेकिन
लोग यह जान लें
कि मैं मरा नहीं हूं
कि मेरे होठों पर चांद की अमरता है
कि मैं पछुआ हवाओं का अजीज़ दोस्त हूं
कि
कि मैं अपने ही आंसुओं की
कि मैं अपने ही आंसुओं की
घनी छांह हूं।
-फेदेरिको गार्सिया लोर्का
-फेदेरिको गार्सिया लोर्का
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteभावपूर अभिवयक्ति...
ReplyDeletesunder rachna...
ReplyDeleteलोर्का की इस अधूरी कविता मे पूर्णता की छाप भी दिखाई देती है।
ReplyDeleteसादर
लोर्का की इस खूबसूरत कविता को साझा करने के लिए आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.