Sunday, September 9, 2012

पहली कमाई पूरी मिल पाई 15-20 साल में-फारुख शेख

मैं मुंबई में वकालत की पढ़ाई कर रहा था और इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) से भी जुड़ा हुआ था। थिएटर हम लोग शौकिया तौर पर करते थे। इप्टा में ही नामचीन निर्देशक एम.एस. सथ्यु थे जो अपनी पहली फ़िल्म गर्म हवा बना रहे थे। फ़िल्म बनाने के पैसे तो थे नहीं, सो कुछ धनराशि एनएफडीसी से और कुछ दोस्तों से कर्ज़ लेकर सथ्यु साहब ने जैसे-तैसे फ़िल्म मुकम्मल की। बलराज साहनी मुख्य भूमिका में थे। उन्हें थोड़ा-बहुत मेहनताना दिया गया, पर बाकी कलाकारों से दरख़्वास्त की गई कि पैसे न मांगें। मुझे भी छोटा-सा रोल करने को कहा गया। मैंने फ़ौरन हामी भर दी। सथ्यु साहब ने 750 रुपए की शानदार रक़म के साथ मुझे साइन किया। उन्होंने मुझे पेशगी 150 रुपए दिए और बाकी पैसा 15-20 साल में जाकर चुकाया। 
गर्म हवा की शूटिंग के लिए हम दो महीने आगरा में रहे। मैं बलराज साहनी के बेटे के किरदार में था। फ़िल्म लोगों को पसंद आई, अख़बारों में रिव्यू भी शानदार थे। सत्यजीत रे और मुज़फ्फ़र अली जैसे नामी लोगों ने फ़िल्म देखी। उस वक़्त सत्यजीत रे अपनी पहली और बदकिस्मती से आख़िरी हिंदी फ़िल्म शतरंज के खिलाड़ी बना रहे थे। उन्होंने मुझे इस फ़िल्म में काम दिया। उसके बाद मुज़फ्फ़र अली की पहली फ़िल्म गमन में मुख्य किरदार निभाने का मौक़ा मिला। फिर नूरी’, उमराव जान’, चश्मे-बद्दूरऔर साथ-साथ जैसी फ़िल्मों के साथ सिलसिला चल निकला। आम ज़बान में कहते हैं कि गाते-गाते गवैया बन गया... उसी तरह मैं भी काम करते-करते अभिनेता बन गया।
अगर वकील बन जाता तो इतना संतुष्ट नहीं होता। मैं ख़ुद को ख़ुशनसीब मानता हूं, पर फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए कितना ख़ुशनसीब रहा हूं, यह नहीं कह सकता। इंडस्ट्री मुझे 40 साल से भुगत ही रही है। एक वक़्त में एक फ़िल्म ही करता हूं। फिलहाल क्लब 60 नामक फ़िल्म में काम कर रहा हूं। इत्तेफाक़ से सही, पर फ़िल्मों में आकर मैं ख़ुश हूं। फिर मौक़ा मिला तो कोई दूसरा पेशा नहीं अपनाना चाहूंगा। 
-फारुख शेख से बातचीत पर आधारित 

(अमर उजाला, मनोरंजन परिशिष्ट के 'फर्स्ट ब्रेक' कॉलम में 9 सितंबर 2012 को प्रकाशित) 

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