न्यूयॉर्क में अपने कॉलेज के दिनों में मैं एक रेडियो प्रोग्राम किया करती थी। भारत से जब भी कोई बड़ी हस्ती वहां आती, तो मैं उसका इंटरव्यू करती। वहीं मेरी मुलाक़ात सुनील दत्त, गुलज़ार, साधना और संगीतकार हेमंत कुमार से हुई। मैंने मैनहट्टन से फ़िल्म मेकिंग का कोर्स भी किया था। एक फ़िल्म के सिलसिले में मुझे भारत आने का मौक़ा मिला। मैं यहां किसी को नहीं जानती थी, सिवाय उनके, जिनसे मैं न्यूयॉर्क में मिली थी। यहां मेरी दोस्ती हेमंत कुमार की बेटी रानू से हुई। उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी, बासु भट्टाचार्य और सई परांजपे से मुझे मिलवाया। लेकिन इस बीच दूरदर्शन में मेरी मुलाक़ात फारुख शेख से हुई। वो मेरे को-होस्ट थे, मुझे उनके साथ एक प्रोग्राम की कंपियरिंग करनी थी। फारुख जी के पास लंदन से विनोद पांडे नाम के एक शख़्स आए थे, जो अपनी फ़िल्म के लिए कास्टिंग कर रहे थे। फ़िल्म का नाम था, ‘एक बार फिर’। फारुख जी ने उनसे कहा, 'लंबे बालों और बड़ी-बड़ी आंखों वाली जिस हीरोइन की आप तलाश कर रहे हैं, ठीक ऐसी लड़की से मैं हाल में मिला हूं; वह अमेरिका से एक्टिंग करने भारत आईं हैं, आप उनसे ज़रूर मिलिए।'
मैं तब बांद्रा के बैंडस्टैंड इलाक़े में बतौर पेइंग-गेस्ट रहती थी। घर पहुंची तो मेरे लिए संदेश था कि लंदन से कोई फ़िल्ममेकर आए हैं और आपको अपनी फ़िल्म में लेना चाहते हैं। मैं उनसे मिलने पहुंची। मुझे चार-पांच लाइनें बोलने के लिए दी गईं। जैसे ही स्क्रिप्ट ख़त्म हुई, विनोद पांडे ने मुझसे कहा, 'हीरोइन की मेरी तलाश ख़त्म हो गई है, अब तुम हीरो ढूंढने में मेरी मदद करो।' इस दौरान मेरे कुछ और दोस्त बन गए थे जो फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट से थे। मैंने उन्हें विनोद पांडे से मिलवाया, और उनकी मदद से हम सुरेश ओबेरॉय तक पहुंचे।
मैं तब बांद्रा के बैंडस्टैंड इलाक़े में बतौर पेइंग-गेस्ट रहती थी। घर पहुंची तो मेरे लिए संदेश था कि लंदन से कोई फ़िल्ममेकर आए हैं और आपको अपनी फ़िल्म में लेना चाहते हैं। मैं उनसे मिलने पहुंची। मुझे चार-पांच लाइनें बोलने के लिए दी गईं। जैसे ही स्क्रिप्ट ख़त्म हुई, विनोद पांडे ने मुझसे कहा, 'हीरोइन की मेरी तलाश ख़त्म हो गई है, अब तुम हीरो ढूंढने में मेरी मदद करो।' इस दौरान मेरे कुछ और दोस्त बन गए थे जो फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट से थे। मैंने उन्हें विनोद पांडे से मिलवाया, और उनकी मदद से हम सुरेश ओबेरॉय तक पहुंचे।
इससे पहले मैं श्याम बेनेगल की फ़िल्म ‘जुनून’ में छोटा-सा रोल कर चुकी थी, लेकिन मैं उसे अपनी पहली फ़िल्म नहीं मानती, क्योंकि उसमें करने के लिए कुछ नहीं था। फ़िल्म में सिर्फ़ तीन सीन थे, जिनमें से एक दृश्य में मुझे रोना था, दूसरे में मैं घूंघट में थी और तीसरे में झूले पर गाना गा रही थी। फ़िल्मों में मेरी असल शुरुआत ‘एक बार फिर’ से हुई और इस फ़िल्म के बाद मैंने ठाना कि मुझे एक्टिंग ही करनी है।
-दीप्ति नवल से बातचीत पर आधारित। विस्तृत इंटरव्यू यहां।
(अमर उजाला, मनोरंजन परिशिष्ट के 'फर्स्ट ब्रेक' कॉलम में 16 सितंबर 2012 को प्रकाशित)
-दीप्ति नवल से बातचीत पर आधारित। विस्तृत इंटरव्यू यहां।
(अमर उजाला, मनोरंजन परिशिष्ट के 'फर्स्ट ब्रेक' कॉलम में 16 सितंबर 2012 को प्रकाशित)
She always looked graceful.
ReplyDeleteमाधवी जी, आपके ब्लॉग पर पहली बार आया.. अच्छा लगा... :-)
ReplyDeleteकाफी अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर... आपके ब्लॉग का नाम खींच लाया.. पूज्य गुलेरी जी की यह कहानी बहुत कम उम्र में पढ़ी थी और मन पर एक गहरी छाप पड़ी थी...
ReplyDeleteNice to know ...I am very fond of Deepti Naval ji ...
ReplyDeleteदीप्ति नवल जी की मैंने बहुत सी पिक्चरें देखी हैं उनका इंटरव्यू पढके अच्छा लगा शेयर करने के लिए आभार
ReplyDeleteअरे वाह उनके विषय में यह जानकारी मेरे लिए नयी है आभार ...
ReplyDeleteI'm gone to say to my little brother, that he should also go to see this web site on regular basis to take updated from most up-to-date news update.
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