Thursday, March 31, 2011

चमत्कार

वसंत के नए चांद की कोमल वक्र रेखा
प्रकाश और अन्धकार का प्रत्येक पल

आकाश का प्रत्येक घन इंच
धरती पर जीवन चमत्कार है

और समुद्र एक सतत् चमत्कार
मछलियां भी - जो तैरती हैं
 

और चट्टानें, लहरों की गति
लोगों से भरी नौकाएं

ज़िन्दा रहने से विलक्षण चमत्कार 
कोई दूसरा नहीं
-वॉल्ट व्हिटमैन

(
अमेरीकी कवि वॉल्ट व्हिटमैन की कविता 'मिरेकल्स' का 
आंशिक अनुवाद, वागर्थ से साभार)

Wednesday, March 23, 2011

जब तक नहीं पालूंगा

 
जब तक नहीं पालूंगा
अपने से इतर
अपने को

कैसे होगी मुझे
अपनी भी पहचान?
-अज्ञेय 


(चित्र: अज्ञेय)

Monday, March 21, 2011

विश्व कविता दिवस पर

इसी लम्बी मुसाफ़िरी में मैंने कविता बनाने के ज़रूरी तत्वों को पा लिया है। धरती और आत्मा के योगदान को प्राप्त किया है। मुझे यक़ीन हो चुका है कि कविता एक कार्यवाही है। वह भले ही क्षणभंगुर है या अहम है या पाक़ीज़ा है, परन्तु उसमें बराबर की हिस्सेदारी की तरह अकेलेपन और हमदर्दी का समावेश है। कविता में भाव और कार्यवाही, ख़ुद के प्रति निकटता, इंसानियत के प्रति निकटता और क़ुदरत की रहस्यमयी अभिव्यक्ति का समावेश है। आज पूरी शक्ति से मैं सोचता हू कि बिरादरी के वृहद अर्थ में, पूरे प्रयास के साथ, यह सभी चीज़ें अविचलित और अखंड हैं जैसे- आदमी और उसकी परछाईं, आदमी और उसका व्यवहार, आदमी और उसकी कविता। ये चीज़ें यथार्थ और सपने को क़रीब लाती हैं। मुख्तसर में मैं कहूंगा कि कविता इन चीज़ों को जोड़ती और मिलाती है। इसलिए मैं कहता हू कि इतने वर्षों के बाद भी मैं आज तक यह जान नहीं पाया हू कि ख़तरनाक उफ़ान आई नदी को भी मैंने कैसे पार कर लिया था, बैल के कंकाल के एतराफ़ मैंने नृत्य कैसे किया था। ख़ूब ऊचाई से गिरते निर्झर में मैंने स्नान कैसे किया था; जबकि मेरे पास कोई ट्रेनिंग नहीं थी; कोई अभ्यास नहीं था। मेरे दोस्तो, इन सब बातों से हमारे भीतर एक अन्तर्दृष्टि पैदा होती है। कवि को अन्य लोगों से सीखना चाहिए, क्योंकि कभी अलंघ्य अकेलापन नहीं होता है। हमें अकेलेपन और कठिनाई से पार्थक्य रखना और ख़ामोशी से गुज़रना चाहिए ताकि हम उन्नत स्थान पर पहुच सकें जहा हम अपने बेतुके और फूहड़ नृत्य को कर सकें; अपने दुखभरे गीत गा सकें, किन्तु उस नृत्य और उस गीत में आदमी होने की सजगता हो, हमारी चेतना की सबसे पुरातन प्रक्रिया और साझेदारी के लक्ष्य की पूर्ति हो।
-पाब्लो नेरूदा

Tuesday, March 15, 2011

और अपना एक कमरा

कुछ लिखने का मन है
और लिखने के लिए जो असबाब चाहिए
सब है मेरे पास

आराम से इतराता हुआ दिन
विचारावेश से घिरा दिमाग
उथल-पुथल भरा एक दिल

कलम,
कागज़
ज़हीन
ख़याल
बेशुमार दौलत शब्दों की 
अदद आराम कुर्सी भी
 

और मन:स्थिति 
कि लिख सकूं कुछ
अच्छा, अनवरत
 

सब है मेरे पास 
नहीं है बस
ढेर सारा पैस

और एक
अपना कमरा
-माधवी

(वर्जीनिया वूल्फ को समर्पित)

Wednesday, March 2, 2011

एक कविता की मौत

बिलख रही हूं मैं
एक कविता की मौत पर
जन्म लेने से ठीक पहले
दम तोड़ दिया जिसने
अभी-अभी
मेरी कोख में।
-माधवी
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