इसी लम्बी मुसाफ़िरी में मैंने कविता बनाने के ज़रूरी तत्वों को पा लिया है। धरती और आत्मा के योगदान को प्राप्त किया है। मुझे यक़ीन हो चुका है कि कविता एक कार्यवाही है। वह भले ही क्षणभंगुर है या अहम है या पाक़ीज़ा है, परन्तु उसमें बराबर की हिस्सेदारी की तरह अकेलेपन और हमदर्दी का समावेश है। कविता में भाव और कार्यवाही, ख़ुद के प्रति निकटता, इंसानियत के प्रति निकटता और क़ुदरत की रहस्यमयी अभिव्यक्ति का समावेश है। आज पूरी शक्ति से मैं सोचता हूं कि बिरादरी के वृहद अर्थ में, पूरे प्रयास के साथ, यह सभी चीज़ें अविचलित और अखंड हैं जैसे- आदमी और उसकी परछाईं, आदमी और उसका व्यवहार, आदमी और उसकी कविता। ये चीज़ें यथार्थ और सपने को क़रीब लाती हैं। मुख्तसर में मैं कहूंगा कि कविता इन चीज़ों को जोड़ती और मिलाती है। इसलिए मैं कहता हूं कि इतने वर्षों के बाद भी मैं आज तक यह जान नहीं पाया हूं कि ख़तरनाक उफ़ान आई नदी को भी मैंने कैसे पार कर लिया था, बैल के कंकाल के एतराफ़ मैंने नृत्य कैसे किया था। ख़ूब ऊंचाई से गिरते निर्झर में मैंने स्नान कैसे किया था; जबकि मेरे पास कोई ट्रेनिंग नहीं थी; कोई अभ्यास नहीं था। मेरे दोस्तो, इन सब बातों से हमारे भीतर एक अन्तर्दृष्टि पैदा होती है। कवि को अन्य लोगों से सीखना चाहिए, क्योंकि कभी अलंघ्य अकेलापन नहीं होता है। हमें अकेलेपन और कठिनाई से पार्थक्य रखना और ख़ामोशी से गुज़रना चाहिए ताकि हम उन्नत स्थान पर पहुंच सकें जहां हम अपने बेतुके और फूहड़ नृत्य को कर सकें; अपने दुखभरे गीत गा सकें, किन्तु उस नृत्य और उस गीत में आदमी होने की सजगता हो, हमारी चेतना की सबसे पुरातन प्रक्रिया और साझेदारी के लक्ष्य की पूर्ति हो।
-पाब्लो नेरूदा
इक शब्द...
ReplyDeleteसर्वोत्तम!
नेरूदा के लिए.. यही इक शब्द है !!
ReplyDeleteमुझे यक़ीन हो चुका है कि कविता एक कार्यवाही है.... वाह !
ReplyDeleteनेरूदा का यह अंश कमाल का है।
पढ़वाने के लिए शुक्रिया... अभिलाषा
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