Thursday, June 10, 2010

धीरे-धीरे रे मना

बहती जाए है 
इंतज़ार की बयार
आती होगी 
बारिश की फुहार

चंदा की बाट जैसे 
जोहे कोई चकोर 
व्याकुल, अधीर भटकूं मैं
इस ओर, कभी उस छोर

ओर-छोर भटकते 
छिटकते-बिलखते 
गिरते हैं छींटे कुछ 
तन पर, मन पर

इक अच्छी ख़बर और 
बारिश छमाछम 
दोनों का 
होने लगा है अब 
टूट कर इंतज़ार।  
-माधवी

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