Saturday, October 20, 2012

पहली फ़िल्म, पर मैं प्रीमियर में नहीं गया-पीयूष मिश्रा

साल 1986 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से ग्रेजुएशन के बाद दिल्ली में ही थिएटर कर रहा था। फ़िल्मों में अभिनय की मेरी शुरुआत 1998 में मणिरत्नम की फ़िल्म दिल से से हुई। फ़िल्म के संवाद तिग्मांशु धूलिया ने लिखे थे, और वही कास्टिंग भी कर रहे थे। तिग्मांशु ने ही मुझे मणिरत्नम से मिलवाया। फ़िल्म में मुझे सीबीआई अफ़सर का रोल निभाना था।
मणिरत्नम जैसे नामी निर्देशक के साथ ब्रेक मिला है, यह सोचकर मैं बहुत रोमांचित था। हालांकि फिल्मों में नया होने के कारण मुझे चीज़ों की समझ नहीं थी। कमर्शियल फ़िल्म क्या होती है, कोई अंदाज़ा नहीं था। न डबिंग की समझ थी, न कैमरे की... लेकिन मणिरत्नम, तिग्मांशु और सिनेमटोग्राफर संतोष सीवन मेरे रोल में काफी दिलचस्पी ले रहे थे। जैसे-तैसे काम ख़त्म हुआ। लेकिन मैंने बेहद ख़राब प्रदर्शन किया था। बाद में फ़िल्म देखकर भी महसूस हुआ कि अगर डबिंग का अनुभव होता तो मैं बेहतर कर सकता था। मैं थिएटर का आदमी था, दिल्ली में रहा था जहां जिम कल्चर नहीं था, इसलिए शारीरिक देख-रेख पर भी कभी ध्यान नहीं दिया था। फ़िल्म में काम करने के बाद समझ आया कि अपीयरेंस कितनी अहम होती है। मुझे यह तक नहीं पता था कि फ़िल्म के प्रीमियर पर भी जाना होता है। फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद जब मणिरत्नम ने पूछा कि प्रीमियर में क्यों नहीं आए, तो मैंने कहा कि मुझे मालूम नहीं था कि प्रीमियर में भी जाया जाता है। फिर 2003 में मातृभूमि और मक़बूल फ़िल्में साइन करने के बाद मैं मुंबई शिफ़्ट हो गया। 
बतौर गायक मैंने फ़िल्म गुलाल में ख़ुद को ब्रेक दिया। गाने का शौक थिएटर के दिनों से ही था। लेकिन मुझे नहीं लगता था कि मेरी आवाज़ माइक्रोफ़ोन के लिए बनी है। जब मैं गुलाल के लिए संगीत दे रहा था तो म्यूज़िक प्रोग्रामर हितेश सोनिक ने कहा, फ़िल्म के गाने भी आप ही गाओ, आपकी आवाज़ में अच्छे लगेंगे। मैंने हितेश से कहा कि मैं माइक्रोफ़ोन पर नहीं गा पाऊंगा। लेकिन हितेश नहीं माने। आख़िर मैंने फ़िल्म में तीन गाने गाए, लेकिन मुझे काफी जूझना पड़ा। थिएटर से होने के कारण मेरी आवाज़ बुलंद थी और निचली पिच पर गाने में मुझे काफी मुश्किल हुई थी। एमटीवी के कार्यक्रम कोक स्टूडियो पर मेरा गाना हुस्ना लाने का श्रेय भी हितेश को ही जाता है। यह गाना मैंने साल 1995 में लिखा और कंपोज़ किया था। हितेश ने कई महफ़िलों में मुझे इसे गाते हुए सुना था। हितेश के कारण मैं यह गाना टेलीविज़न पर गा पाया और लोगों ने इसे काफी पसंद भी किया। 
-पीयूष मिश्रा से बातचीत पर आधारित 

(अमर उजाला, मनोरंजन परिशिष्ट के 'फर्स्ट ब्रेक' कॉलम में 21 अक्तूबर 2012 को प्रकाशित)

6 comments:

  1. पीयूष मिश्रा से परिचय कराने के लिए धन्यवाद। आपके ब्लॉग पर पहली बार आया। मगर ब्लॉग के टाइटल पर देख कर आपके आदरणीय परदादा जी की कहानी स्मरण हो आई थी। अदंर आकर परिचय देखा तो जानकर प्रसन्नता हुई की आप उनकी पड़पोती हैं। आपके ब्लॉग को जो़ड़ रहा हूं..साथ ही इसपर आता रहूंगा..सिर्फ जोड़ कर नहीं रह जाउंगा।

    ReplyDelete
  2. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1040 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

    ReplyDelete
  3. पीयूष मिश्र जी से बढ़िया बातचीत .उसने कहा था कहानी बारहवीं कक्षा इंटरमी डियेट साइंस के पाठ्यक्रम में पढ़ी थी -धत !तेरी कुडमाई हो गई ?अमृत सर की बाज़ारों का हू -बा -हु चित्रण इस वातावरण प्रधान कहानी

    को एक अलग जगह दिलवा गया .आज उनकी पोती की कलम से निकला यह संस्मरण बहुत खूब लगा एक रंगमंची कलाकार की जुबानी फिल्मों में प्रवेश तक का सफर।

    ReplyDelete
  4. पियूष जी के बारे जानना अच्छा लगा बहुत २ शुक्रिया |

    ReplyDelete
  5. अच्छे लोगों के बारे में पढना हमेशा से ही अच्छा होता है ! और पीयूष जी उनमे से एक हैं ! बेहतरीन लेख ...पहली बार आपके ब्लॉग पे आया अच्छा लगा पढ़ के !

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...