Saturday, May 12, 2012

सबसे पहले मां

आपको संसार की सबसे सुखी एवं संतुष्ट महिला से मिलना हो तो क्या करेंगे...? कुछ ज़्यादा नहीं... बस अपने आस-पास नज़र दौड़ानी होगी आपको। अपनी कोख में एक अजन्मा जीव लिए मां बनने के सफ़र पर निकली किसी स्त्री या अपनी गोद में किलकारियां मारते नवजात को निहारती मां का चेहरा देख लीजिए। वहां जो दमक आपको नज़र आएगी, वो कहीं और तलाशे भी नहीं मिलेगी। वो दमक सुख की है... मातृत्व-सुख की दमक। एक जीवन की रचना करने का अलौकिक सुख! मां बनकर एक तरह से ईश्वर के समकक्ष हो जाने का सुख!
किसी भी महिला के लिए जीवन का सबसे बड़ा सुख है मातृत्व। कहा भी जाता है कि एक स्त्री जब तक मातृत्व-सुख नहीं भोग लेती, उसका स्त्रीत्व अधूरा है। यह कुदरत की वो नियामत है जो स्त्री को पूर्णता देती है। इसीलिए मां बनने की कामना हर स्त्री में होना स्वाभाविक है- चाहे वो घरेलू नारी हो या कामकाजी महिला; पत्थर तोड़ती औरत हो या कोई मशहूर हस्ती। कोई महिला चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, जीवन में एक समय ऐसा आता है जब मां बनने की उत्कट इच्छा के आगे उसका स्वयं का बस नहीं चलता और एक संतान के बिना उसे दुनिया की हर सुख-सुविधा कम लगने लगती है, हर ख़ुशी अधूरी लगने लगती है। 
बेटी के लिए फ़िल्मों को टा-टा 
मिस वर्ल्ड रह चुकी ऐश्वर्या राय जब अभिषेक बच्चन से विवाह बंधन में बंधीं तो उस वक्त वो अपने करियर के शीर्ष पर थीं। और शादी के करीब चार साल बाद जब यह पता चला कि ऐश्वर्या मां बनने वाली हैं, उस वक्त वो मधुर भंडारकर की बड़े बजट की फ़िल्म 'हीरोइन' में मेन लीड निभा रही थीं। फ़िल्म के कई अहम दृश्यों की शूटिंग भी हो चुकी थी। लेकिन ऐश्वर्या ने मां बनने के अपने फ़ैसले को प्राथमिकता दी, और फ़िल्म से अलग हो गईं। मातृत्व की राह पर चलने से पहले दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकारा- 'मैं ईश्वर के इस सबसे बड़े उपहार को पाने के लिए लालायित हूं।' आज ऐश्वर्या एक प्यारी-सी बच्ची की मां हैं और उनका अधिकतर समय बच्ची की देख-रेख में ही गुज़रता है। शायद ही कोई ऐसा समारोह हो जिसमें वो अपनी बेटी के बिना नज़र आती हों। 
बच्चों पर ज़्यादा ध्यान 
ऐश्वर्या की तरह काजोल, करिश्मा कपूर व लारा दत्ता ने भी अपने चकाचौंध भरे करियर को किनारे रखते हुए मातृत्व सुख हासिल किया। काजोल अपने बेटे युग के लिए पूरा वक्त देती हैं। युग अभी 2 साल का है, जबकि उनकी बेटी न्यासा 9 साल की हो चुकी है। काजोल ने 2003 में फ़िल्मों की मुख्यधारा से किनारा कर, बेटी के बड़ा होने के बाद कुछ फ़िल्में कीं, लेकिन अब उनका अधिकतर समय बेटे को समर्पित है। मिस यूनिवर्स रही लारा दत्ता भी काजोल की राह पर हैं। इस साल जनवरी में मां बनी लारा का पूरा ध्यान अपनी बेटी सायरा पर है, फ़िल्में उनकी प्राथमिकता सूची में फिलहाल नहीं हैं। करिश्मा भी 'डेंजरस इश्क' के ज़रिये फ़िल्मों में तब जाकर वापसी कर रही हैं, जब उनकी बेटी समायरा 7 साल की है और बेटा कियान 2 साल का हो चुका है। 
किस्से और भी
फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोज़ी की पत्नी एवं टॉप मॉडल रह चुकी कार्ला ब्रूनी का उदाहरण बताता है कि मातृत्व सुख हासिल करने के लिए एक महिला क्या-क्या जतन करती है। फरवरी 2008 में सरकोज़ी से शादी के करीब तीन साल बाद तक कार्ला मां नहीं बन सकी थीं। दिसंबर 2010 में यह युगल भारत-भ्रमण के लिए आया तो फतेहपुर सीकरी में कार्ला ने सलीम चिश्ती की दरगाह पर जाकर संतान लिए मन्नत मांगी। करीब 400 बरस पहले यहीं पर अकबर ने स्वयं चिश्ती पीर से संतान-सुख की मन्नत मांगी थी जिसके बाद उनके यहां तीन संतानें हुई थीं। कार्ला की मन्नत पूरी हुई और वे पिछले साल अक्तूबर में मां बनीं। 
ममत्व लुटा रही हैं 
किसी नवजात को बांहों में उठाने और उस पर ममता लुटाने की इच्छा कितनी उत्कट होती है, इसका उदाहरण उन शख्सियतों से मिल जाता है जिन्होंने बगैर शादी किए बच्चों को गोद लिया। अपनी व्यस्तताओं के चलते वे मां बनने का समय नहीं निकाल पा रहे हों, लेकिन मातृत्व की इच्छा को उन्होंने बच्चे गोद लेकर पूरा किया। ऐसी शख्सियतों में सबसे बड़ा उदाहरण हॉलीवुड की सुपरस्टार एंजेलिना जोली का है। जोली खुद मां बनने से पहले दो बच्चे गोद ले चुकी थीं। आज उनके पास तीन अपने बच्चे और तीन गोद लिए बच्चे हैं, और वो उन पर अपना स्नेह लुटाती नज़र आती हैं। 
बिनब्याहे मातृत्व सुख का एहसास लेने वाली महिलाओं में दो बड़ी भारतीय शख्सियतें भी हैं। अभिनेत्री रवीना टंडन ने साल 2004 में शादी करने से पहले 1995 में पूजा व छाया नाम की दो बच्चियों को गोद लिया था। हालांकि, ये दोनों बच्चियां उस वक्त 11 व 8 साल की थीं। शादी के बाद रवीना ने दो बच्चों को जन्म दिया। उनकी बड़ी बेटी रशा 7 साल की और बेटा रणबीर 5 साल का है। रवीना की तरह मिस यूनिवर्स रही अभिनेत्री सुष्मिता सेन ने भी दो बच्चियों को गोद लिया है। हालांकि सुष्मिता का नाम रणदीप हुडा और मुदस्सर अजीज़ से जुड़ा रहा है, पर बात शादीशुदा ज़िंदगी शुरू करने तक नहीं पहुंच सकी। लेकिन यह मुद्दा उन्हें मातृत्व का एहसास कराने से नहीं रोक सका। साल 2000 में उन्होंने रेनी नामक बच्ची गोद ली। दो साल पहले उन्होंने तीन महीने की एक अन्य बच्ची को गोद लिया, जिसे उन्होंने अलीसा नाम दिया है। सुष्मिता अपने इस मातृत्व से बेहद खुश हैं और अक्सर अपनी दोनों बेटियों के साथ घूमने निकलती हैं। 
मां से बढ़कर कुछ नहीं 
बेशक, मातृत्व का सुख किसी भी महिला के लिए दुनिया का सबसे खूबसूरत नज़राना है, लेकिन कामकाजी ख़ासकर कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं में यह धारणा घर करती जा रही है कि करियर पहले और मातृत्व की ज़िम्मेदारी बाद में। वैसे इस आधुनिक सोच के पीछे झांका जाए तो भी अमूमन एक मां की ही सोच दिखाई देती है। आज के अनिश्चितता भरे माहौल में महिलाएं ये सोचने लगी हैं कि वो पहले खुद को सेटल कर लें, अच्छी तरह कमा लें, ताकि बच्चे होने पर उनके पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी बेहतर ढंग से निभाई जा सके। अपनी भावी संतान के अच्छे भविष्य के लिए वे मातृत्व सुख को टाल रही हैं, लेकिन वंचित नहीं हो रहीं। क्योंकि आज भी मां का रिश्ता सबसे बढ़कर है। 

(अमर उजाला की पत्रिका रूपायन में 11 मई 2012 को प्रकाशित)

15 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति ... माँ से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं है ...

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  2. माँ के उस चेहरे का सौन्दर्य अदभुत होता है जब बच्चा उस चेहरे को अपनी हथेलियों से छूता है , माँ के गले में बाँहें डाले मुस्कुराता है , और जोर से बुलाता है माँ

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  3. hats off to all the moms...............
    may god bless her..................
    anu

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  4. बहुत सही विश्लेषण ।

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  5. प्रभावशाली रचना...सुन्दर प्रस्तुति

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  6. माँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
    कितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
    आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
    एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
    माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
    इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?

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  7. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.


    माँ के लिए ये चार लाइन
    ऊपर जिसका अंत नहीं,
    उसे आसमां कहते हैं,
    जहाँ में जिसका अंत नहीं,
    उसे माँ कहते हैं!

    आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  8. बढिया पोस्ट है माधवी जी. शुभकामनाएं.

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  9. मातृ देवो भवः!

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  10. माँ तो सिर्फ माँ होती है...... .माँ तुझे सलाम...

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  11. वाह माधवी जी..अच्छे किस्से सुनाये हैं आपने!

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  12. सच हा .. माँ बनना अपने आप में जीवन का अनुभव है जो एक माँ कों ही मिलता है ... और उसका ह्रदय विशाल हो जाता है ..

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  13. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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