(भगवत रावत नहीं रहे. भगवत जी से असल परिचय तब हुआ जब
उनके जाने की ख़बर मिली. अनूप सेठी के ब्लॉग पर उनके हिस्से के
भगवत के बारे में जाना, समझा. जीवट से भरे भगवत जी ने जैसे
मृत्यु पर विजय पा ली हो. यहां भगवत जी की कविता 'करुणा' के
साथ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि...)
सूरज के ताप में कहीं कोई कमी नहीं
न चन्द्रमा की ठंडक में
लेकिन हवा और पानी में ज़रूर कुछ ऐसा हुआ है
कि दुनिया में
करुणा की कमी पड़ गई है
इतनी कम पड़ गई है करुणा कि बर्फ़ पिघल नहीं रही
नदियां बह नहीं रहीं, झरने झर नहीं रहे
चिड़ियां गा नहीं रहीं, गायें रंभा नहीं रहीं
कहीं पानी का कोई ऐसा पारदर्शी टुकड़ा नहीं
कि आदमी उसमें अपना चेहरा देख सके
और उसमें तैरते बादल के टुकड़े से उसे धो-पोंछ सके
दरअसल पानी से होकर देखो
तभी दुनिया पानीदार रहती है
उसमें पानी के गुण समा जाते हैं
वरना कोरी आंखों से कौन कितना देख पाता है
पता नहीं
आने वाले लोगों को दुनिया कैसी चाहिए
कैसी हवा कैसा पानी चाहिए
पर इतना तो तय है
कि इस समय दुनिया को
ढेर सारी करुणा चाहिए।
सूरज के ताप में कहीं कोई कमी नहीं
ReplyDeleteन चन्द्रमा की ठंडक में
लेकिन हवा और पानी में ज़रूर कुछ ऐसा हुआ है
कि दुनिया में
करुणा की कमी पड़ गई है
बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
भगवत जी पर कई पोस्ट पढ़ीं इन दिनों....
ReplyDeleteऔर उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ भी...
हमारी विनम्र श्रद्धांजलि...
अनु
कितनी सच्ची बात कह दी।
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा .. भगवत जी को विनम्र श्रद्धांजलि...
ReplyDeleteकितनी सुंदर रचना ....
ReplyDeleteभगवत जी को विनम्र श्रद्धांजली ...!!
इस पोस्ट से ही जाना भगवत जी के बारे में..
ReplyDeleteविनम्र श्रधांजलि!!
इतनी भावपूर्ण रचना पढवाने के लिए हार्दिक धन्यवाद |भगवत जी को विनम्र श्रद्धांजली |
ReplyDeleteआशा
वाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteशुक्रिया जो ऐसा पढने को मिला |
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