(अज्ञेय की कविता 'यात्री' से एक अंश, और
एस एल हलदनकर की 'ग्लो ऑफ होप'.)
मंदिर से, तीर्थ से, यात्रा से
एस एल हलदनकर की 'ग्लो ऑफ होप'.)
मंदिर से, तीर्थ से, यात्रा से
हर पग से, हर सांस से
कुछ मिलेगा, अवश्य मिलेगा
पर उतना ही, जितने का
पर उतना ही, जितने का
तू है अपने भीतर से दानी।
बहुत सुंदर................
ReplyDeletehaldankar is one of my favourites.
regards.
anu
bahut sundar...
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