(इधर मृत्यु पर पढ़ते हुए सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता
'अंत में' से गुज़रना हुआ. कविता के साथ वैन गॉग की
अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता
सुनना चाहता हूं
एक समर्थ सच्ची आवाज़
यदि कहीं हो
अन्यथा
इससे पूर्व कि
मेरा हर कथन
हर मंथन
हर अभिव्यक्ति
शून्य से टकराकर फिर वापस लौट आए
उस अनंत मौन में समा जाना चाहता हूं
जो मृत्यु है
'वह बिना कहे मर गया'
यह अधिक गौरवशाली है
यह कहे जाने से
'कि वह मरने के पहले
कुछ कह रहा था
जिसे किसी ने सुना नहीं।'
madhuri ji -bahut achchha laga laga aapke blog par aakar .guleri ji ki rachnayen hamne apne course me padhi hain .sabhi bahut pasand hain .aapse parichay huaa ....bahut achchha laga .prastut rachna bhi bahut gahan bhavon ko abhivyakt kar rahi hai .aabhar
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बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर........
ReplyDeleteबहुत बड़ी बात कही है...
लोगो को अपनी सुनाने से कहाँ फुर्सत है कि किसी और की सुनें....
achhi rachna
ReplyDeleteगहन रचना ...सुंदर चित्र ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें ...
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना तो मेरे प्रिय कवियों में से आते हैं...ये सब ऐसी कवितायें हैं जिसे बार बार पढ़ने को दिल करता है!!
ReplyDeleteVan Gough की चित्र भी लाजवाब है!
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