Wednesday, March 21, 2012

विश्व कविता दिवस पर

(आज विश्व कविता दिवस है। इस उपलक्ष्य में कैलाश वाजपेयी 
की कविता 'विकल्प वृक्ष' और साथ में पॉल गॉगिन का चित्र.)
सुनते हैं कभी एक पेड़ था 
रोज़ लोग आकर 
दुखड़ा रोते उस पेड़ से 
तरह-तरह के लोग, दुख भी 
सबके किस्म-किस्म के 

एक दिन पेड़ के कोटर से कोई बोला 
'अंधेरे में आना 
अपना दुख यहीं बांध जाना 
उत्तर सबेरे मिल जाएगा।' 

लोग सारी रात आते ही आते चले गए 
सुबह बड़ी भीड़ थी 
पेड़ के नीचे सन्नाटा भी। 

ऊपर के कोटर से फिर वही आवाज़ 
उतरी, काफी से कहीं अधिक खुरदुरी- 
'हर दुख को पढ़ लो 
फिर आपस में अदल-बदल कर लो 
जिसे जो दुख अपने से ज़्यादा 
बेहतर लगे!' 

बड़ा गुलगपाड़ा मचा 
दोपहर तक सब भाग लिए 
एक भी विनिमय नहीं हुआ।

13 comments:

  1. बेहतर जीवन की सूक्तियां है हर फार्म में पढ़ने को मिलती है. लोक स्मृतियों की कथाओं, गीतों और नव-सृजन की कविता में भी. एक साधू ने गाँव के सब लोगों से कहा था कि वह अपना दुःख एक बांस में रख कर लाए. और सब को अनुमति थी कि वे सब के बांस में झांक कर सारे दुःख देख कर जो कम हो उसे चुन सकते हैं. दुःख यथावत रहे सबने अपने बांस उठाये और घर चले गए. कुछ लोग इसे बोद्ध कथा कहते हैं कुछ ज़ेन कुछ इसे पश्चिम के खलिहानों में गोल टोपी लगाये चरवाहों की कथा कहते हैं. मैंने सुना कि इसी कथा को भारत के हर प्रदेश में कहा जाता है.

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  2. नानक दुखिया सब संसार .

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  3. शानदार प्रस्तुति।

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  4. वाह ...बहुत खूब ।

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  5. superb!!!!!!!!!!!!!!
    i had blues that i have no shoes..until i met a man who has no feet....

    बहुत सुन्दर कविता ...
    शुक्रिया

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  6. वाह |||||
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति:-)

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  7. वाह! बड़ी सुंदर रचना...

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  8. अद्दुत!!
    आप कमाल की कवितायें शेयर करती हैं इस ब्लॉग में और कविताओं के साथ चित्र भी कमाल के होते हैं!

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  9. बहुत गहरी और गंभीर कविता है लेकिन मुझे आखिरी लाइन पढ़कर हंसी आ गई खुशी वाली हंसी नहीं थी दर्द वाली हंसी थी दर्द ये कि कोई हर किसी को अपने दर्द के सबसे बड़ा दर्द होने का दर्द सताता रहता है,सुख के विनिमय की बात होती तो तीसरा विश्व युद्ध छिड़ गया होता फिर हंसी आ रही है...बेहद हकीकत भरी बात है दुख को खूंटे से बांध दो ....

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  10. शेयर की गयी कई रचनाओं और चित्रों ने अभिभूत कर दिया ...thanks for sharing such gems and specially about the lock code ....आपका ब्लॉग पड़ना सचमुच एक सुखद अनुभव था...शुभकामनाएँ...

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  11. Gibran has written something very similar to this ...he writes....I buried all my sorrows in the courtyard and when the spring came they bloomed into beautiful flowers ... then my neighbors came and asked "oh!such lovely flowers can we have some of these ?

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