तो कई दिनों तक
अस्त-व्यस्त रहता है घर
एक-एक कर अटैची से
अस्त-व्यस्त रहता है घर
एक-एक कर अटैची से
बाहर आता है सामान
अपनी पुरानी जगह
ले लेने के लिए
कुछ सुखद स्मृतियां
कुछ सुखद स्मृतियां
और
सघन अनुभव भी
निकलते हैं
सामान सहेजती
सामान सहेजती
हर बार यही सोचती हूं
यात्राएं कैसे परिष्कृत कर देती हैं
यात्राएं कैसे परिष्कृत कर देती हैं
मनुष्य को भीतर से
निर्रथक व नगण्य
निर्रथक व नगण्य
लगने लगता है बहुत कुछ
दृष्टि बदल देता है
जीवन के प्रति नया कोण
एक यात्रा से लौट
जीवन के प्रति नया कोण
एक यात्रा से लौट
मैं दूसरी यात्रा पर
अक्सर यात्रा पर जाकर घर की कीमत पता लगती है..
ReplyDeleteअच्छी रचना...
हम्म, धन्यवाद विद्या!
Deletebahut achichi kavita madhavi
ReplyDeleteयात्राएं परिष्कृत कर देती हैं ...
शुक्रिया, पारुल :)
Deleteऐसा ही होता है ...
ReplyDeleteमज़ा आता है यात्राओं के साइड इफेक्ट्स से जूझने में!
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच
ReplyDeleteपर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
अतुल जी, आपका आभार...
Deleteविचारनीय एवं गंभीर कविता
ReplyDeleteआभार
धन्यवाद, अरूण जी.
Deleteअनुपम भाव संयोजन लिए
ReplyDeleteकल 22/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है !
'' तेरी गाथा तेरा नाम ''
बहुत शुक्रिया, सदा जी...
Deleteसुन्दर कविता...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई..
संजय जी, धन्यवाद!
Deleteआज ही अश्वनी बता रहा था की आजकल कविताए लिखने का मन नहीं करता...अब पता चला बंद मैदान छोड़कर क्यों भागा :) बहोत अच्छे.
ReplyDeleteबंदा मैदान छोड़कर नहीं भागा पंकज जी, कविता-ए-वतन साथियों के हवाले कर सुस्ताने बैठा है दो घड़ी :)
Delete...अरे, शुक्रिया कहना तो भूल ही गई :')
Deleteअच्छी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteधन्यवाद, अमृता जी!
Deleteधीरेन्द्र जी, आपको भी शिवरात्रि की शुभकामनाएं. धन्यवाद.
ReplyDeleteआपकी हर यात्रा का हासिल हमारे लिए एक और खूबसूरत कविता हो.इस यात्रा के सघन अनुभवों पर भी यहाँ कुछ पढ़ने को जल्द मिल सकता है?
ReplyDeleteआमीन!
Deleteयात्रा से यात्रा के बीच का केनवास ... लाजवाब लगा ...
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया, दिगम्बर जी!
Deleteकुछ सुखद स्मृतियां
ReplyDeleteऔर
सघन अनुभव भी
निकलते हैं
और यही हमरे खजानों में शुमार होते जाते हैं ....सच्ची अभिव्यक्ति !!!
और यही ख़ज़ाने असल पूंजी होते हैं जीवन की... शुक्रिया!
Deleteअरे गज़ब...एकदम सेम-टू-सेम, डिट्टो ऐसा ही होता है :)
ReplyDeleteबिल्कुल!
Deleteमाधवी जी .. आपके ब्लॉग पर आना सुखद लग रहा है ..वटवृक्ष पत्रिका के माध्यम से आपके बारे में जानने का मौका मिला ...आप शिमला हिमाचल से हैं तब तो और भी अपनापन लगा ..अब आना होता रहेगा ...
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत सरल से शब्दों में बहुत कुछ कहती है ..जिंदगी ऐसी ही है एक यात्रा..एक डगर से दूसरी डगर ...
शुक्रिया, सुमन!
Deleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ। आपकी रचनाओं ने खासा प्रभावित किया है। आपकी भाषा दिल से निकली हुई सच्ची और पवित्र भाषा है ...बहुत बहुत बधाई सभी अनुपम रचनाओं के लिए।
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