(आज रूसी कवि अनातोली परपरा की एक कविता)
कवि ने कहा मुझसे
"अन्धकार है मूर्खता
और
प्रकाश बुद्धिमत्ता"
और
प्रकाश बुद्धिमत्ता"
कोई अन्त नहीं जिनका
लेकिन जब नहीं होती
जीवन में कविता
बुद्धिमत्ता बदल जाती है
मूर्खता में
और मूर्खता
ले लेती है जगह मूर्खता की।
(अनुवाद: लीलाधर मंडलोई)
waah !
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअंतिम दो पंक्तियाँ शायद इतनी गहन हैं कि सोचना पड़ गया ...
और मूर्खता
ले लेती है जगह मूर्खता की।
मूर्खता ही मूर्खता कि जगह ले लेती है ..अभी तक उलझी हुई हूँ इसमें
मुझे तो लगता है कि अंतिम पंक्ति में कोई त्रुटि है ?
ReplyDeleteब्लॉग का शीर्षक भी समझ में नही आया...
ब्लॉग नहीं,पोस्ट का शीर्षक समझ में नही आया ...
ReplyDeleteBeautiful !
ReplyDeleteअदभुत रचना।
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ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
बहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeletebhaut hi acchi rachna...
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