जब मैं व्यवसायिक रूप से लेखक बना तो दिनचर्या सबसे बड़ी मुसीबत बन गई। इससे पहले जर्नलिस्ट था, तो रातों को काम करना पड़ता था। चालीस साल की उम्र में मैंने पूरा समय लिखने का सोचा तो पहले-पहल सुबह 9 बजे से 2 बजे तक लिखता था। फिर मेरे बेटे स्कूले से घर आ जाते थे। मुझे कड़ी मेहनत की आदत थी इसलिए पूरी शाम ज़ाया करने के अपराधबोध में शाम को भी लिखने की कोशिश की। फिर मैंने पाया कि शाम का किया सारा काम मुझे सुबह दोबारा करना पड़ता था। इसलिए लिखने का काम अब मैं सिर्फ़ सुबह 9 से 2.30 बजे तक करता हूं। शाम को साक्षात्कार, मिलना-जुलना, बाकी काम।
दूसरी समस्या मुझे यह है कि मैं सिर्फ़ अपने परिचित माहौल में ही लिख सकता हूं, जिसमें मेरे काम की गर्माइश मैंने ख़ुद पैदा की हो। मैं किसी और के टाईपराईटर पर या होटलों में नहीं लिख पाता। यह समस्या इसलिए बढ़ जाती है जब यात्रा के दौरान काम रुक जाता है। नि:संदेह यह बहाने काम न करने के लिए हम ख़ुद गढ़ते हैं। हर माहौल में आप 'Inspiration' की उम्मीद करते हैं। इस शब्द को रुमानी लोगों ने बहुत भुनाया है। मार्क्सवादी लोग इस शब्द में ज़्यादा विश्वास नहीं करते। फिर भी, जो हो, मेरा यह मानना है कि आप एक मन:स्थिति में ही आसानी से लिख पाते हैं और चीज़ें ख़ुद-ब-ख़ुद उतरती जाती हैं। उस समय सारे बहाने- जैसे कि परिचित माहौल या घर में ही लिख पाना इत्यादि- ग़ायब हो जाते हैं। वह क्षण तब आता है जब आपके विचारों में सही थीम और उसे निभा सकने का तरीका स्पष्ट होता है। फिर वह आपका मनपसन्द होना चाहिए। आपकी नापसन्दगी का काम करना सबसे ख़राब तरह का काम है।
पहला पैराग्राफ सबसे कठिन होता है। मैंने कई बार पहला पैराग्राफ लिखने में महीनों लगाए हैं। वह एक बार ठीक उतर जाए तो फिर बाकी आसान है। पहले पैराग्राफ में आप पूरी किताब की समस्याओं को सुलझाते हैं। थीम परिभाषित होता है, स्टाईल और फिर लय। मेरे साथ तो पहला पैराग्राफ नमूना होता है बाकी किताब का। इसलिए कई दफ़ा उपन्यास लिखने से अधिक कठिन काम कहानी लिखना होता है।
लिखने से अकेलापन पैदा होता है, वह शक्ति का अकेलापन है। लेखक कई बार यथार्थ को दिखाने की कोशिश में उसे वास्तविकता से अलग कर देता है- अपने ही Ivory Tower निर्मित कर लेता है। जर्नलिज़्म उसके लिए इस स्थिति में ढाल की तरह काम आता है। मैं कुछ जर्नलिज़्म करता रहता हूं ताकि वह मुझे वास्तविकता से जोड़े रखे, ख़ासकर राजनीति से। One Hundred Years of Solitude के बाद मुझे वह एकाकीपन महसूस हुआ जो प्रसिद्धि से पैदा होता है। मेरे मित्रों ने मुझे उससे उबरने में मदद की।
-'अन्यथा' से साभार
अपने साक्षात्कार में...एक लेखक के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बातें कही हैं, उन्होंने...लिखने का एक अनुशासन होना चाहिए. और ना लिखने के सौ बहाने गढ़ता है, मस्तिष्क ...इस पर भी खूब प्रकाश डाला है.
ReplyDeleteसाक्षात्कार के ये अंश पढवाने का आभार.
अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति है!
ReplyDeleteरक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत अच्छा। वाह वाह.मार्खेज़ साहब ने न लिखने का कोई कारण ही नहीं छोड़ा। जब आंख खुले तभी सवेरा समझ लेना चाहिए। एक बार फिर धन्यवाद।
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