Wednesday, June 15, 2011

युवा कवि के नाम ख़त

"कोई भी व्यक्ति न तो तुम्हें सिखा सकता है, न तुम्हारी मदद कर सकता है- एक ही काम है जो तुम्हें करना चाहिए- अपने में लौट जाओ। उस कारण (केन्द्र) को ढूंढो जो तुम्हें लिखने का आदेश देता है। जांचने की कोशिश करो कि क्या इस बाध्यता ने अपनी जड़ें तुम्हारे भीतर फैला ली हैं? अपने से पूछो कि यदि तुम्हें लिखने की मनाही हो जाए तो क्या तुम जीवित रहना चाहोगे? तुम प्रकृति के निकट से निकटतम जाओ और उसका इस तरह बयान करो जैसे कि वह अब तक कोरी और अछूती है। रचयिता के लिए न तो दरिद्रता सच है न दरिद्र; न ही कोई स्थान निस्संग। अगर तुम्हें जेल की पथरीली दीवारों के अन्दर रख दिया जाए जो कि एकदम बहरी होती हैं और संसार की एक फुसफुसाहट तक को भीतर नहीं आने देतीं (तब भी तुम्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा) तुम्हारे पास अपना बचपन तो होगा... स्मृतियों की एक अमोल मंजूषा? अपना चित्त उस ओर ले जाओ। दूरगामी अतीत के रसातल में डूबी अपनी भावनाओं को उभारो! तुम्हारा व्यक्तित्व क्षमतावान बनेगा। एकान्त विस्तृत होकर एक ऐसा नीड़ बनाएगा, जहां तुम मन्द रोशनी में भी रह सकोगे; जहां दूसरों का पैदा किया शोर दूरी से गुज़रता निकल जाएगा। और अगर इस अन्तर्मुखता से, अपने भीतर से संसार में डूब जाने पर कविताएं स्वत: अवतरित होती हों तो तुम्हें कभी किसी से पूछना नहीं पड़ेगा कि वह अच्छी हैं या बुरी; न ही तुम्हें पत्रिकाओं के पीछे भागते रहना पड़ेगा; क्योंकि यह तुम्हारा नैसर्गिक ख़ज़ाना होगा, तुम्हारा अपना अन्तरंग अंश, तुम्हारी अपनी ही आवाज़। एक रचना तभी अच्छी होती है जब वह किसी अनिवार्यता में से उपजती है।" 
-राइनेर मारिया रिल्के 

(युवा कवि फ्रैंज़ काप्पुस के नाम रिल्के के चर्चित ख़तों में से एक का अंश, वागर्थ से साभार)

8 comments:

  1. 'प्रकृति के निकट जाना और उस का इस तरह बयान करना की वो एकदम कोरी और अछूती है '- गहरे उतरती है ये बात ! पूरा पत्र ध्यान खींच रहा है पर मुझे 'प्रकृति के अछूतेपन' को बयान करने वाली ये बात ऐसे ही असर कर गयी जैसे किसी विद्यार्थी को किसी अच्छे टीचर का पढ़ाया हुआ .

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  2. हाँ... ये मैंने पढ़े हैं. इनका अनुवाद शायद राजी सेठ ने किया है. रिल्के के पत्रों की दो किताबें फिलहाल हिन्दी में उपलब्ध हैं. उनकी कविताओं की तरह ही उनके पत्र भी विचार, स्मृति, और बिम्बों में पगे हुए हैं.
    उनके इस चित्र में वे काफी कठोर दीख रहे हैं. ऐसे तो वे न थे.

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  3. यह खत सभी नवकवियो को देखना ही चाहिये

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  4. क्या बात है...:)

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  5. यदि तुम्हें लिखने की मनाही हो जाए तो क्या तुम जीवित रहना चाहोगे?
    सच में इसका जवाब तो नही ही होगा

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