Saturday, June 11, 2011

सार्त्र की कब्र पर

 
सैकड़ों सोई हुई कब्रों के बीच 
वह अकेली कब्र थी 
जो ज़िन्दा थी 

कोई अभी-अभी गया था 
एक ताज़ा फूलों का गुच्छा रखकर 
कल के मुरझाए हुए फूलों की 
बगल में 

एक लाल फूल के नीचे 
मैट्रो का एक पीला-सा 
टिकट भी पड़ा था 
उतना ही ताज़ा 

मेरी गाइड ने हंसते हुए कहा 
वापसी का टिकट है 
कोई पुरानी मित्र रख गई होगी 
कि नींद से उठो 
तो आ जाना

मुझे लगा 
अस्तित्व का यह भी एक रंग है 
न होने के बाद

होते यदि सार्त्र 
क्या कहते इस पर 
सोचता हुआ होटल 
लौट रहा था मैं 
-केदारनाथ सिंह 

(Picture : 'The Kiss' by Gustav Klimt)

1 comment:

  1. भावपूर्ण रचना .....उत्कृष्ट

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