Tuesday, June 7, 2011

चलने के लिए

 
चलने के लिए 
जब खड़े हुए 
तो जूतों की जगह 
पैरों में 
सड़कें पहन लीं 

एक नहीं 
दो नहीं 
बदल-बदलकर 

हज़ारों सड़कें 
तंग ऊबड़-खाबड़ 
बहुत चौड़ी सड़कें 

खूब चलें 
कि ज़िन्दगी के 
नज़दीक आने को 
बहुत मन होता है 

वाक़ई! ज़िन्दगी से होती हुई 
कोई सड़क ज़रूर जाती होगी 

मैं कोई ऐसा जूता बनवाना चाहता हूं 
जो मेरे पैरों में ठीक-ठाक आए। 
-विनोद कुमार शुक्ल

(Picture: 'Boots' by Van Gogh)

4 comments:

  1. चलने के लिए
    जब खड़े हुए
    तो जूतों की जगह
    पैरों में सड़कें पहन ली

    विचारपरक कविता के लिए धन्यवाद....

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  2. बहुत सुन्दर कविता...

    ReplyDelete

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