Tuesday, May 24, 2011

एक बुद्ध कविता में करुणा ढूंढ रहा है

 
धुर हिमालय में यह एक भीषण जनवरी है 
आधी रात से आगे का कोई वक्त है 
आधा घुसा हुआ बैठा हूं 
चादर और कम्बल और रजाई में 
सर पर कनटोप और दस्ताने हाथ में 
एक नंगा कंप्यूटर हैंग हो गया है 
जबकि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूंढ रहा है। 

तमाम कविताएं पहुंच रही हैं मुझ तक हवा में 
कविता कोरवा की पहाड़ियों से 
कविता चम्बल की घाटियों से 
भीम बैठका की गुफा से कविता 
स्वात और दज़ला से कविता 
कविता कर्गिल और पुलवामा से 
मरयुल, जङ-थङ, अमदो और खम से 
कविता उन सभी देशों से 
जहां मैं जा नहीं पाया 
जबकि मेरे अपने ही देश थे वे। 

कविताओं के उस पार एशिया की धूसर पीठ है 
कविताओं के इस पार एक हरा-भरा गोण्डवाना है 
कविताओं के टीथिस में ज़बर्दस्त खलबली है 
कविताओं के थार पर खेजड़ी की पत्तियां हैं 
कविताओं की फाट पर ब्यूंस की टहनियां हैं 
कविताओं के खड्ड में बल्ह के लबाणे हैं 
कविताओं की धूल में दुमका की खदानें हैं 

कविता का कलरव भरतपुर के घना में 
कविता का अवसाद पातालकोट की खोह में 
कविता का इश्क चिनाब के पत्तनों में 
कविता की भूख विदर्भ के गांवों में 
कविता की तराई में जारी है लड़ाई 
पानी-पानी चिल्ला रही है वैशाली 
विचलित रहती है कुशीनारा रात भर 
सूख गया है हज़ारों इच्छिरावतियों का जल 
जबकि कविता है सरसराती आम्रपालि 
मेरा चेहरा डूब जाना चाहता है उस की संदल-मांसल गोद में 
कि हार कर स्खलित हो चुके हैं 
मेरी आत्मा की प्रथम पंक्ति पर तैनात सभी लिच्छवि योद्धा 
जबकि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूंढ रहा है। 

सहसा ही 
एक ढहता हुआ बुद्ध हूं मैं अधलेटा 
हिमालय के आर-पार फैल गया एक भगवा चीवर 
आधा कंबल में आधा कंबल के बाहर 
सो रही है मेरी देह कंचनजंघा से हिन्दुकुश तक 
पामीर का तकिया बनाया है 
मेरा एक हाथ गंगा की खादर में कुछ टटोल रहा है 
दूसरे से नेपाल के घाव सहला रहा हूं 
और मेरा छोटा-सा दिल ज़ोर से धड़कता है 
हिमालय के बीचो-बीच 

सिल्क रूट पर मेराथन दौड़ रहीं हैं कविताएं 
गोबी में पोलो खेल रहा है गेसर खान 
कज़्ज़ाकों और हूणों की कविता में लूट लिए गए हैं 
ज़िन्दादिल, ख़ुशमिजाज़ जिप्सी 
यारकन्द के भोले-भाले घोड़े 
क्या लाद लिए जा रहे हैं बिला-उज़्र अपनी पीठ पर 
दोआबा और अम्बरसर की मण्डियों में 
न यह संगतराश बाल्तियों का माल-असबाब 
न ही फॉरबिडन सिटी का रेशम 
और न ही जङ्पा घुमंतुओं का 
मक्खन, ऊन और नमक है 
जबकि पिछले एक दशक से 
या हो सकता है उस से भी बहुत पहले से 
कविता में सुरंगें ही सुरंगें बन रही हैं!

खैबर के उस पार से 
बामियान की ताज़ा रेत आ रही है कविता में 
मेरी आंखों को चुभ रही है 
करा-कोरम के नुक़ीले खंजर 
मेरी पसलियों में खुभ रहे हैं 
कविता में दहाड़ रहा है टोरा-बोरा 
एक मासूम फिदायीन चेहरा 
जो दिल्ली के संसद भवन तक पहुंच गया है 
कविता का सिर उड़ा दिया गया है 
फिर भी ज़िन्दा है कविता 
सियाचिन के बंकर में बैठे 
एक सिपाही की आंखें भिगो रहा है 
कविता में एक धर्म है नफ़रत का 
कविता में काबुल और कश्मीर के बाद 
तुरन्त जो नाम आता है तिब्बत का 
कविता के पठारों से गायब है शङरीला 
कविता के कोहरे से झांक रहा शंभाला 
कविता के रहस्य को मिल गया शांति का नोबेल पुरस्कार 
जबकि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूंढ रहा है। 

अरे, नहीं मालूम था मुझे 
हवा में पैदा होती हैं कविताएं! 

कतई मालूम नहीं था कि 
हवा जो सदियों पहले लन्दन के सभागारों 
और मेनचेस्टर के कारखानों से चलनी शुरू हुई थी 
आज पेंटागन और ट्विन-टॉवर्ज़ से होते हुए 
बीजिंग के तहखानों में जमा हो गई है 
कि हवा जो अपने सूरज को अस्त नहीं देखना चाहती 
आज मेरे गांव की छोटी-छोटी खिड़कियों को हड़का रही है 

हवा के सामने कविता की क्या बिसात? 
हवा चाहे तो कविता में आग भर दे 
हवा चाहे तो कविता को राख कर दे 
हवा के पास ढेर सारे डॉलर हैं 
आज हवा ने कविता को खरीद लिया है 
जबकि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूंढ रहा है। 

दूर गाज़ा पट्टी से आती है जब 
एक भारी-भरकम अरब कविता 
कम्प्यूटर के आभासी पृष्ठ पर 
तैर जाती हैं सहारा की मरीचिकाएं 
शैं-शैं करता 
मनीकरण का खौलता चश्मा बन जाता है उस का सीपीयू 
कि भीतर मदरबोर्ड पर लेट रही है 
एक खूबसूरत अधनंगी यहूदी कविता 
पीली जटाओं वाली 
कविता की नींद में भूगर्भ की तपिश 
कविता के व्यामोह में मलाणा की क्रीम 
कविता के कुण्ड में देशी माश की पोटलियां 
कविता की पठाल पे कोदरे की मोटी नमकीन रोटियां 
आह! 
कविता की गंध में यह कैसा अपनापा 
कविता का यह तीर्थ कितना गुनगुना 
जबकि धुर हिमालय में 
यह एक ठण्डा और बेरहम सरकारी क्वार्टर है 
कि जिसका सीमेंट चटक गया है कविता के तनाव से 
जो मेरी भृकुटियों पर बरफ़ की सिल्ली सी खिंची हुई है 
जबकि एक मां की बगल में एक बच्चा सो रहा है 
और एक बुद्ध कविता में करुणा ढूंढ रहा है।  
-अजेय

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर और प्रवाहमयी रचना!

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  2. बेहतरीन कविता। पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
    सरोज

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  3. बहुत अच्छी रचना है....माधवी जी एवं अजेय जी का आभार...

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  4. Came first time on your blog and got hooked forever. It's simply awesome. Thanks for posting such an ultimate poem. Kudos to the writer. Keep it up guys.
    Best regards
    Siddharth

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  5. ओह ! कहाँ ले गए अजेय जी !
    आभार माधवी.

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  6. Hey Boss ! Ye to ghazab hai .....Madhavi !!

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  7. ek viraat kavita...padh ke main bhi thoda bada ho gaya..ati sunder rachna..aabhaar..

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