Tuesday, November 30, 2010

ब्रह्माण्ड के छोर पर

ब्रह्माण्ड के छोर पर
लटकी हूं मैं
बेसुर गाती
चीखकर बोलती
ख़ुद में सिमटी हुई
ताकि गिरने पर लगे न चोट

गिर जाना चाहिए मुझे
गहरे अंतरिक्ष में
आकार से मुक्त और
इस सोच से भी कि
लौटूंगी धरती पर कभी
दुखदायी नहीं है यह

चक्कर काटती रहूंगी मैं
उस ब्लैक होल में
खो दूंगी शरीर, अंग
तेज़ी से
आज़ाद रूह भी अपनी

अगली आकाशगंगा में
उतरूंगी मैं
अपना वजूद लिए
लगी हुई ख़ुद के ही गले
क्योंकि
मैं तुम्हारे सपने देखती हूं। 


-Translation of one of the love poems by African-American poet Nikki Giovanni

3 comments:

  1. लगी हूँ खुद के ही गले .........वाह क्या बात है इस कहते है सोच , बधाई

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