Thursday, February 27, 2014

मातृभाषा

(निरन्तर व्यस्तता के बीच पढ़ने-लिखने का क्रम लगभग टूटा रहा. किताबें तो दूर, नियम से अख़बार तक बांचने की मोहलत नहीं मिली. प्रयास था कि कुछ समय चुराकर लिखना-पढ़ना हो जाएगा पर न ऐसा समय आया, न मन:स्थिति. उम्मीद इंसान का सबसे बड़ा अस्त्र है, जो न टूटे तो सब संभव है. इस आशा के साथ केदारनाथ सिंह की कविता 'मातृभाषा' और पाब्लो पिकासो की कलाकृति 'फार्मर्स वाइफ ऑन ए स्टेपलैडर'.)
जैसे चींटियां लौटती हैं बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई अड्डे की ओर

ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूं तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा।

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