('उसने कहा था' कहानी पर बनी फ़िल्म का एक पोस्टर) |
पांचवीं कक्षा में थी
जब मुझे पहली बार ‘उसने कहा था’ कहानी पढ़ने को दी गई, तब केवल यह पता था कि यह कहानी मेरे परदादा पंडित चन्द्रधर
शर्मा गुलेरी ने लिखी है। फिर दो-तीन साल बाद दूरदर्शन पर ‘उसने कहा था’ फ़िल्म देखने का अवसर मिला।
फिर कई बार कहानी पढ़ी और हर बार इससे एक नई समझ और नई दृष्टि मिली।
उसके बाद ‘उसने कहा था’ और गुलेरी जी की शेष रचनाओं को पढ़ने का जो सिलसिला चला,
वो आज तक जारी है। ‘उसने कहा था’ इतनी बार पढ़ी है कि
उसके किरदार परिवार का हिस्सा लगते हैं। किसी कहानी का इस तरह गहरे प्रभावित कर जाना कम
होता है। यह भी कमाल की बात है कि 100 साल पहले लिखी गई किसी कहानी का आकर्षण और
प्रासंगिकता आज भी कायम है। ‘उसने कहा था’ मेरे लिए मात्र एक कहानी नहीं, जीती-जागती कलाकृति है।
(अमर उजाला के 'धरोहर' कॉलम में 2 फरवरी 2014 को प्रकाशित)
(अमर उजाला के 'धरोहर' कॉलम में 2 फरवरी 2014 को प्रकाशित)
‘उसने कहा था’ मेरे लिए मात्र एक कहानी नहीं, जीती-जागती कलाकृति है। ....हमारे लिए भी यकीनन यही है
ReplyDeleteसही है। पूरे जीवन में लेखक ऐसी सिर्फ एक कहानी लिख सके तो अमर हो जाय।
ReplyDeleteहमने यह कहानी आज से लगभग बयालीस साल पहले पढ़ी थी हिंदी भाषी क्षेत्र में होने के कारण कुड़माई शब्द पहली बार पढ़ा था पर आज भी य़ाद है धत और कुडमाई । कहानी तो बाद में भी कई बार पढ़ी है और कुछ कहने कि लिए शब्द नहीं हैं बस सर्वश्रेष्ट … गुलेरी जी को श्रद्धांजलि !
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ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन टेलीमार्केटिंग का ब्लैक-होल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
कल अख़बार में आपका ये लेख पढ़ा था। :-)
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : फरवरी माह के महत्वपूर्ण दिवस
भारत में अनपढ़ वयस्कों की जनसंख्या सबसे ज्यादा और सुधीर विद्यार्थी को 2013 का शमशेर सम्मान
‘उसने कहा था’ कहानी तो अमर है,उस पर फिल्म भी बनी यह पता ही न था, लगता है ढूंढ कर देखनी पड़ेगी।
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