(मृत्यु पर कविताएं पढ़ते हुए कवि एकांत श्रीवास्तव की यह कविता हाथ लगी.
साथ में गुस्ताव क्लिम्ट की कलाकृति 'ट्री ऑफ लाइफ'.)
मायावी सरोवर की तरह
अदृश्य हो गए पिता
रह गए हम
पानी की खोज में भटकते पक्षी
पानी की खोज में भटकते पक्षी
ओ मेरे आकाश पिता
टूट गए हम
तुम्हारी नीलिमा में टंके
झिलमिल तारे
टूट गए हम
तुम्हारी नीलिमा में टंके
झिलमिल तारे
ओ मेरे जंगल पिता
सूख गए हम
तुम्हारी हरियाली में बहते
कलकल झरने
सूख गए हम
तुम्हारी हरियाली में बहते
कलकल झरने
ओ मेरे काल पिता
बीत गए तुम
रह गए हम
तुम्हारे कैलेण्डर की
उदास तारीखें
बीत गए तुम
रह गए हम
तुम्हारे कैलेण्डर की
उदास तारीखें
हम झेलेंगे दुःख
पोंछेंगे आंसू
और तुम्हारे रास्ते पर चलकर
बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल
ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल।
पोंछेंगे आंसू
और तुम्हारे रास्ते पर चलकर
बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल
ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल।
अत्यंत हृदयविदारक ....कैसे मन को सांत्वना दूँ ...??समय के साथ धीरज धर चलना है बस ....!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...
बहुत ही मार्मिक व प्रभावशाली कविता है माधवी जी ।
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