(इधर मृत्यु पर पढ़ते हुए सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता
'अंत में' से गुज़रना हुआ. कविता के साथ वैन गॉग की
अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता
सुनना चाहता हूं
एक समर्थ सच्ची आवाज़
यदि कहीं हो
अन्यथा
इससे पूर्व कि
मेरा हर कथन
हर मंथन
हर अभिव्यक्ति
शून्य से टकराकर फिर वापस लौट आए
उस अनंत मौन में समा जाना चाहता हूं
जो मृत्यु है
'वह बिना कहे मर गया'
यह अधिक गौरवशाली है
यह कहे जाने से
'कि वह मरने के पहले
कुछ कह रहा था
जिसे किसी ने सुना नहीं।'