मैं
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली में थिएटर कर रहा था। शेखर कपूर अपनी फ़िल्म ‘बैंडिट क्वीन’ की कास्टिंग के लिए वहां आए हुए थे। उन्होंने मेरा नाटक ‘ख़ूबसूरत बहू’ देखकर मुझे मिलने के लिए बुलाया। उस
वक़्त शेखर ने कुछ नहीं कहा। तिग्मांगु धूलिया उनके असिस्टेंट थे। तिग्मांशु ने
बाद में बताया कि फ़िल्म की कास्टिंग हो चुकी है, लेकिन शेखर ने ख़ास तुम्हें
ध्यान में रखकर एक किरदार गढ़ा है। इस तरह मुझे ‘बैंडिट
क्वीन’ में ‘कैलाश’ का रोल मिला।
फ़िल्म
में काम करना सुखद अनुभव रहा क्योंकि मैं सीमा बिश्वास, मनोज बाजपेयी, निर्मल
पांडे और तिग्मांशु धूलिया को पहले से जानता था। सेट पर बहुत अच्छा माहौल था। हम
सब एक-दूसरे के काम में दिलचस्पी लेते थे, एक-दूसरे की मदद करते थे। फ़िल्म इंडस्ट्री में
ऐसा कम होता है। शेखर कपूर का व्यवहार भी
दोस्ताना था। ‘बैंडिट क्वीन’ की शूटिंग धौलपुर में हुई थी। हम वहां से 20 किलोमीटर दूर जंगल में ठहरे
हुए थे। हम सुबह शूटिंग के लिए निकल जाते और रात को
थक-हारकर वापस लौटते थे। यूनिट में विदेशी स्टाफ भी था। हम सबके लिए दावत और गाने-बजाने का
इंतज़ाम होता था। खाने के बाद हम अक़सर अपने लॉज से बाहर निकल आते। वहां एक लंबी,
सुनसान सड़क थी, जिस पर लेटकर हम देर तक बातें करते रहते थे।
‘बैंडिट क्वीन’ के बाद जासूसी सीरियल ‘तहकीकात’ में काम किया। मेरे एक्टिंग करियर को आगे
ले जाने में सुधीर मिश्रा का काफी योगदान रहा है। मेरी डील-डौल और मुस्कराते चेहरे
को देखते हुए मुझे ज़्यादातर कॉमेडी रोल मिल रहे थे, लेकिन सुधीर जी ने मुझे ‘इस रात की सुबह नहीं’ में ऐसे हिंसक आदमी का किरदार
दिया, जिसकी बीवी मर जाती है और वो रात को बदला लेने और हत्याएं करने निकलता है। यह
राम गोपाल वर्मा की पसंदीदा फ़िल्म थी। मेरा काम देखकर उन्होंने
मुझे फ़िल्म ‘सत्या’ में ‘कल्लू मामा’ का किरदार दिया। ‘कल्लू मामा’
को दर्शकों का बहुत प्यार मिला।
आप अनजाने
शहर में होते हैं तो अक़सर अकेलापन महसूस करते हैं, लेकिन मुंबई में मुझे ऐसी कोई
दिक्कत नहीं हुई क्योंकि यहां मेरे कई दोस्त थे। ऐसा नहीं है कि मैंने संघर्ष का
दौर नहीं देखा, लेकिन वो दौर बुरा नहीं था। मेरी आने वाली फ़िल्में हैं... ‘जॉली एलएलबी’, ‘फटा पोस्टर, निकला
हीरो’, ‘गुंडे’, और ‘पी के’।
-सौरभ शुक्ला से बातचीत पर आधारित
(अमर उजाला, मनोरंजन परिशिष्ट के 'फर्स्ट ब्रेक' कॉलम में 16 दिसम्बर 2012 को प्रकाशित)
(अमर उजाला, मनोरंजन परिशिष्ट के 'फर्स्ट ब्रेक' कॉलम में 16 दिसम्बर 2012 को प्रकाशित)
बेहतर लेखन !!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 17-12-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1096 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ