Friday, November 23, 2012

शुरुआत में मिला रहमान का साथ-कुणाल गांजावाला

अपना फर्स्ट ब्रेक मैं उस गाने को कहूंगा जिस गाने से मुझे फिल्म उद्योग में अच्छी पहचान मिली। ए.आर. रहमान ने मुझे साथिया फ़िल्म में ओ हमदम सुनियो रे गाने का मौक़ा दिया था। हालांकि, मैं इससे पहले भी कुछ गीत गा चुका था। पार्श्वगायिका पूर्णिमा ने मुझे साल 1992 में एक कॉलेज प्रतियोगिता में गाते हुए सुना था, वहां से वे मुझे अनु मलिक तथा आनंद-मिलिंद से मिलाने ले गईं। फिर पूर्णिमा ने मेरी मुलाक़ात संगीतकार रंजीत बरोट से कराई। मुझे विज्ञापनों में जिंगल और फ़िल्मों में गाने का काम मिलने लगा।
रंजीत जी ने ही मुझे ए.आर. रहमान से मिलवाया। उन्होंने रहमान जी से कहा, यह लड़का अच्छा और अलग गाता है, आपको इसकी आवाज़ ज़रूर इस्तेमाल करनी चाहिए। रहमान साहब ने मुझे पहले तमिल फ़िल्मों में गाने का मौक़ा दिया, फिर हिन्दी फ़िल्म लकीर में गवाया। इस बीच राजश्री प्रोडक्शन की फ़िल्म उफ्फ, क्या जादू मोहब्बत है में चार गाने मिले। यह फ़िल्म साथिया से पहले रिलीज़ हुई थी। हालांकि फ़िल्म नहीं चली लेकिन मेरे गायकी के करियर को आगे बढ़ाने में इसका काफी योगदान रहा।
रहमान साहब के साथ ओ हमदम सुनियो रे रिकॉर्ड करने में काफी मज़ा आया। उन्होंने मेरी बहुत हौसलाअफ़ज़ाई की। गाने की रिकॉर्डिंग के लिए मैं चेन्नई जा रहा था। एयरपोर्ट पर आशा भोसले मिलीं, जो साथियाफ़िल्म का ही एक गाना गाकर वहां से लौट रहीं थीं। उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया। गाना गुलज़ार साहब का लिखा था, उन्होंने भी मुझे आशीर्वाद दिया था। गाना हिट हुआ और इसके बाद कई ऑफर आने लगे। मैं ख़ुशनसीब हूं कि करियर के शुरुआती दिनों में मुझे बेहतरीन लोगों के साथ काम करने का मौक़ा मिला। ओ हमदम सुनियो रेके बाद अनु मलिक ने भीगे होंठ तेरे गाना गवाया। इस गाने ने तो मुझे स्टार ही बना दिया। आज भी किसी कन्सर्ट में गाता हूं तो लोग सबसे पहले इसी गाने की फ़रमाइश करते हैं। 
-कुणाल गांजावाला से बातचीपर आधारित

(अमर उजाला, मनोरंजन परिशिष्ट के 'फर्स्ट ब्रेक' कॉलम में 18 नवम्बर 2012 को प्रकाशित)

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