Friday, April 13, 2012

हम चाहें तो सब बदल सकते हैं

(वे शोख़, मासूम और फूल-सी दिखती हैं, लेकिन पर्दे पर उनकी परिपक्वता हैरान कर देती है। वे जितनी बिंदास और अल्हड़ हैं, अभिनय को लेकर उतनी ही संजीदा भी हैं। अलग लुक्स’  और ख़ास अभिनय शैली के लिए चर्चित इस अभिनेत्री का नाम कल्कि कोचलिन है। कल्कि की फ़िल्मी पारी की शुरुआत देव डी से हुई। पहली फ़िल्म से अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुकी कल्कि हर फ़िल्म के साथ असर छोड़ने में सफल रही हैं। फ़िल्म इंडस्ट्री के अनुभव और निजी जीवन के बारे में कल्कि बेबाकी से बात करती हैं।)

आप अंग्रेज़ी थिएटर कर रही थीं, देव डी में ब्रेक कैसे मिला?
मैं मुम्बई में थिएटर और मॉडलिंग कर रही थी। यूटीवी के पास मेरा पोर्टफोलियो था और मुझे देव डी के ऑडिशन के लिए बुलाया गया। मैंने कास्टिंग डायरेक्टर से कहा कि मैं यह रोल नहीं कर पाऊंगी क्योंकि मेरी हिन्दी बहुत बुरी है। उन्होंने मुझे अंग्रेज़ी में स्क्रिप्ट दी। मेरा पहला ऑडिशन अंग्रेज़ी में हुआ और मैंने दो हफ़्ते बाद वही ऑडिशन हिन्दी में दिया। अनुराग कश्यप पहले मेरी तसवीरें देखकर रिजेक्ट कर चुके थे। अनुराग का कहना था कि मुझे मॉडल जैसी दिखने वाली नहीं बल्कि एक्टिंग करने वाली लड़की चाहिए। ऑडिशन देखकर उन्होंने मुझे फ़ोन किया और देव डी में काम करने को कहा।
देव डी’  में चंद्रमुखी का किरदार निभाना कैसा अनुभव कैसा रहा?
मुश्किल था, क्योंकि मेरी हिन्दी कमज़ोर थी। मैं पहली बार कैमरे के सामने थी और बहुत नर्वस थी। शूटिंग के दौरान अभय और अनुराग ने मेरी बहुत मदद की। इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि मैं सहज रहूं। एक शॉट में 15 टेक लेने के लिए स्वतंत्र थी... मतलब मुझ पर किसी तरह का दबाव नहीं था। मुझे उस वक़्त यह नहीं पता था कि फ़िल्म इंडस्ट्री में किस तरह काम होता है। लेकिन मेरी इनोसेंस चंद्रमुखी के लिए अच्छी साबित हुई। 
पढ़ाई-लिखाई कहां हुई?
शुरुआती पढ़ाई ऊटी के इंटरनेशनल स्कूल से हुई। फिर थिएटर की पढ़ाई के लिए मैं इंग्लैंड चली गई। मैं ख़ुद को एक आम भारतीय समझती थी, लेकिन टीनएज तक आते-आते यह एहसास होने लगा था कि मैं अलग दिखती हूं, लोग मुझसे अलग व्यवहार करते हैं, मेरी ओर ज़्यादा देखते हैं।
हिन्दी कैसे सीखी?
मुम्बई आकर मैंने थोड़ी-बहुत हिन्दी बोलनी शुरू की। ऑटो वालों से बात करते वक़्त, खाना ऑर्डर करते समय या लोकल ट्रेन में सफ़र करते हुए हिन्दी बोलती थी। शॉपिंग करते हुए भी हिन्दी में बात करती थी जैसे... यह महंगा है’, नहीं चाहिए, मैं फिरंगी नहीं हूं। लेकिन हिन्दी सीखने की असल कवायद देव डी से हुई। मैं रोज़ सुबह हिन्दी वर्णमाला का अभ्यास करने लगी। इसके बाद भी मेहनत जारी रही, ख़ासकर ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा की शूटिंग के समय... क्योंकि ज़ोया चाहती थीं कि मेरी हिन्दी बेहतर हो। हिन्दी में सुधार लाने के लिए मैं लगातार कोशिश करती रही और अब भी कर रही हूं।
करिअर की शुरुआत में किस तरह की परेशानियां सामने आईं?
लोग मुझे विदेशी समझकर अक़सर यह पूछते थे कि मुझे भारत कैसा लगता है। चुनींदा लोगों को मालूम था कि मैं हिन्दुस्तान में पैदा हुई हूं और यहीं पली-बढ़ी हूं। मेरे हिन्दी न बोल पाने की वजह से लोगों को ग़लतफ़हमी होती थी। सबसे पहले यह साबित करना था कि मैं भारतीय हूं। एक्टिंग में ख़ुद को प्रूव करना था। लोग सोचते थे कि मैं अभिनय को लेकर गंभीर नहीं हूं, कोई रोल मिल गया है जिसे मैं मज़े के लिए कर रही हूं। 
थिएटर और फ़िल्मों में क्या अंतर पाती हैं?
दोनों काफी अलग हैं। थिएटर मेरा पहला प्यार है क्योंकि इसमें एक्टिंग ज़्यादा चुनौतीपूर्ण है। थिएटर लाइव है, दर्शक सामने होते हैं, आप दूसरा टेक नहीं ले सकते। थिएटर में मेहनत है, लेकिन पैसा नहीं है। फ़िल्मों में कई बार स्क्रिप्ट पढ़े बिना काम चल जाता है, सेट पर जाओ और शूटिंग शुरू। अच्छी बात यह है कि फ़िल्मों में डिस्कवर करने के लिए बहुत कुछ है, रिसर्च का काम होता है। फ़िल्मों के लिए ज़्यादा अनुशासन की ज़रूरत है। 
किस तरह के रोल करना चाहती हैं?
मुझे लगता है, लोगों की धारणा बनने लगी है कि मैं सिर्फ़ गंभीर रोल करना चाहती हूं... जबकि ऐसा नहीं है। अच्छा एक्टर वही है जो ख़ुद को किसी दायरे में न बंधने दे। मैं हर तरह का रोल करने में सक्षम हूं, भले ही कॉमेडी क्यों न हो। लेकिन मुझे पता है कि मैं आइटम नंबर करूं तो अच्छी नहीं लगूंगी।
ख़ाली वक़्त में क्या करती हैं?
किताबें पढ़ती हूं, फ़िल्में देखती हूं। ट्रेकिंग पसंद है। मौक़ा मिलते ही पहाड़ों पर जाती हूं। यह भूलकर कि मैं ग्लैमर की दुनिया से जुड़ी हूं, दिल खोलकर मस्ती करती हूं। मुझे घूमने-फिरने का बहुत शौक़ है।
कहां-कहां घूम चुकी हैं?
हाल में तुर्की से लौटी हूं। बहुत ख़ूबसूरत देश है। तुर्की और हमारे देश में काफी समानता है। वहां की ज़बान में र्दू के शब्द हैं, जो पकड़ में आ जाते हैं। तुर्की का संगीत और खाना लाजवाब है। लोगों का रवैया बहुत अच्छा है, वो आज़ाद ख़याल हैं। तुर्की पूरब और पश्चिम का शानदार मिश्रण है, उस देश ने नए मूल्यों को सहजता से अपनाया है। भारतीयों के पास यह कला नहीं है। हमें इस बात का गर्व नहीं है कि हम भारतीय हैं, न हमें यह स्वीकारना आता है कि भारतीय आधुनिक और खुले दिमाग के हो सकते हैं।
बचपन के दिन याद आते हैं?
पहला रोल याद करती हूं तो हंसी आती है। मैं छह साल की थी और एक नाटक में भेड़ का रोल कर रही थी। मेरा काम सिर्फ़ बा-बा की आवाज़ निकालना था। अभिनय के अलावा, पुदुचेरी की याद भी बहुत आती है। वहां काफी समय मिल जाता था... पढ़ने के लिए, दोस्तों से मिलने-जुलने के लिए, प्रकृति के बीच समय गुज़ारने के लिए। मुंबई में इन सब चीज़ों के लिए वक़्त नहीं निकाल पाती।
किस्मत पर कितना भरोसा है?
मुझे नहीं लगता कि सब पूर्वनिर्धारित है। हम अपनी तक़दीर ख़ुद बनाते हैं। किस्मत का हवाला देकर बैठे रहने से कुछ नहीं होता। हम चाहें तो सब कर सकते हैं, सब बदल सकते हैं। 
ख़ुद में क्या अच्छा लगता है?
सकारात्मक रवैया। मैं आधे ख़ाली गिलास को आधा भरा हुआ मानती हूं। जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है लेकिन हमें आशावादी बने रहना चाहिए। निराश होकर रोना आसान है लेकिन यह जीने का सही ढंग नहीं है।
और क्या पसंद नहीं है?
हमेशा कुछ-न-कुछ करते रहना चाहती हूं। जब तक काम करती हूं तब तक ठीक है, लेकिन ख़ाली होते ही बेचैन हो जाती हूं। मुझे लगने लगता है कि जीवन बर्बाद हो रहा है। मेरे ख़याल से मुझे थोड़ा धैर्य रखने की ज़रूरत है। यहां तक कि छुट्टियां बिताने कहीं बाहर जाती हूं तो भी शांति से नहीं बैठ पाती।
आने वाले पांच साल में ख़ुद को कहां देखती हैं?
एक्टिंग करते हुए। मेरा सबसे बड़ा सपना है कि आज से पचास साल बाद भी मैं अगर ज़िंदा हूं तो आप मुझे एक्टिंग करते हुए ही पाएं।
खाने में क्या पसंद है?
खाने की बहुत शौकीन हूं। मुझे लगता है कि भारतीय खाना विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। दक्षिण भारतीय होने के कारण वहां का खाना अच्छा लगता है। कश्मीरी भोजन पसंद है, यखनी और मटन के नाम से मुंह में पानी आ जाता है। बंगाली खाना अच्छा लगता है। जब किसी नई जगह जाती हूं तो स्थानीय भोजन ज़रूर चखती हूं।
...खाना बनाती भी हैं?
कभी-कभार। वैसे तो घर में भारतीय खाना बनता है लेकिन जब मैं रसोई में होती हूं तो नए प्रयोग करती हूं। एप्पल पाई और कीश(Quiche) बहुत बढ़िया बना लेती हूं। चायनीज़ खाना भी अच्छा बनाती हूं। 
कोई दिलचस्प वाक़या? 
ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा में एक गाना है... सूरज की बांहों में, जिसमें हम सब नाच रहे हैं। शूट से पहले मैंने ज़ोया से कहा कि प्रैक्टिस के लिए मुझे ज़्यादा वक़्त चाहिए क्योंकि मुझे नाचना बिल्कुल नहीं आता। ज़ोया ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। शूट शुरू हुआ और मैं एक भी स्टेप ठीक से नहीं कर पा रही थी जबकि ऋतिक, कटरीना और बाकी सब बहुत अच्छा नाच रहे थे। ज़ोया ने मुझसे कहा कि तुम जैसा चाहो, वैसा नाचो... और मैंने अजीब डांस किया। ज़ोया हंसने लगीं, और उन्होंने मुझसे वादा लिया कि जब उनकी शादी होगी तो मैं उसमें डांस करूंगी। 
आपका सबसे बड़ा आलोचक कौन है?
अनुराग (कश्यप) मेरे सबसे बड़े आलोचक हैं। कोई स्क्रिप्ट लिखती हूं तो अनुराग को दिखाती हूं। एक आलोचक के तौर पर वे काफी कठोर हैं, लेकिन अच्छे सुझाव देते हैं।
कोई अधूरी इच्छा?
मैं पढ़ाई के लिए न्यूयॉर्क जाना चाहती थी लेकिन दाख़िला नहीं मिला। न्यूयॉर्क में थिएटर का माहौल ग़ज़ब का है। वहां नए कलाकारों और लेखकों के पास स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए बहुत अवसर हैं।
परिवार में कौन-कौन है?
माता-पिता, जो फ्रेंच मूल के हैं। मेरे पिता छोटे जहाज़ डिज़ाइन करते हैं। मां अभी रिटायर हुई हैं, वो ऑलियॉन्स फ्रॉन्से (Alliance Française) में फ्रेंच पढ़ाती थीं। बड़ा भाई चेन्नै में है और कार कंपनी में काम करता है।
अनुराग से शादी का फ़ैसला कब लिया?
देव डी के बाद मैं फिर से थिएटर करने लगी। एक दिन अनुराग ने मुझे फ़ोन किया और डिनर पर चलने को कहा। मैंने उन्हें मना कर दिया। एक डायरेक्टर जो तलाकशुदा है, उम्र में बड़ा है और मुझे इस तरह फ़ोन कर रहा है... ये सोचकर मैं डरी हुई थी। मैं जहां रिहर्सल करती थी, अनुराग वहां रोज़ आते और एक ही बात कहते कि मेरे साथ डिनर पर चलो। आख़िर मैं उनके साथ डिनर पर गई, उस दिन से सब कुछ बदल गया।
हमारी एक बात मिलती-जुलती है कि हम दोनों ईमानदार हैं। अनुराग बहुत स्पष्टवादी हैं। वे लोगों के लिए बदलते नहीं... जो कैमरे के सामने हैं, वही पीछे हैं।
शादी को लेकर माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया थी?
वे बहुत ख़ुश थे। पूछते रहते थे कि तुम दोनों कब शादी कर रहे हो। ख़ासतौर से मेरी मां। वे चाहती थीं कि मैं जल्द शादी करूं और सज-धजकर मंडप में बैठूं। मां की इच्छा के अनुसार हमने ऊटी में परंपरागत आर्यसमाज शैली से विवाह रचाया।
अनुराग की क्या बात पसंद नहीं है?
अनुराग बहुत ज़िद्दी हैं, बिल्कुल बच्चे की तरह। उनके काम की आलोचना करती हूं तो वे कहते हैं कि तुम्हें इस इंडस्ट्री के बारे में कुछ मालूम नहीं है, मैं यहां बीस साल से हूं। अनुराग से कुछ कहती हूं तो उनका पहला रिएक्शन होता है... नहीं, लेकिन दो दिन बाद वही काम अपने-आप कर लेते हैं।
सेट पर अनुराग किस तरह पेश आते हैं?
अनुराग के साथ काम करने में मज़ा आता है। सेट पर वे हमेशा ऊर्जा से भरे रहते हैं। हालांकि मैं कई बार घबरा जाती हूं क्योंकि वे बहुत इम्प्रोवाइज़ करते हैं। मैं बहुत मेहनत से अपनी लाइनें याद करती हूं, और अचानक अनुराग बोलते हैं कि यह सीन नहीं करना है। अच्छी बात यह है कि अनुराग एक्टर्स पर दबाव नहीं डालते।
अनुराग से शादी के बाद जीवन में क्या अंतर आया है?
मैं शांत हो गई हूं। ज़िंदगी में जब प्यार साथ होता है तो आप भटकना बंद कर देते हैं। आपके अंदर अपने-आप स्थिरता आ जाती है। इससे पहले वक़्त भागते हुए बीता। इंग्लैंड से थिएटर की पढ़ाई के दौरान अकेली थी और मुझे सब कुछ अपने दम पर करना था। मेरी पहली नौकरी इंग्लैंड में लगी, पहला बॉयफ्रेंड वहीं था, बहुत सारे दोस्त भी थे। इंग्लैंड में सीखने को बहुत-कुछ मिला लेकिन वहां मेरा दिल नहीं लगा। मैंने अपने देश लौटने का फ़ैसला किया जो जीवन का टर्निंग पॉइंट है।
फ़िल्मों में बोल्ड सीन किस तरह दिए?
मैं पूर्वाग्रह के साथ एक्टिंग करने से बचती हूं। देव डी की चंद्रमुखी मेरे लिए कोई वेश्या नहीं बल्कि एक ऐसी युवती थी जिसका परिवार उसे नकार चुका था। मुझे उस लड़की की मानसिकता को समझना था जिसका मुसीबत के समय सब साथ छोड़ जाते हैं। दैट गर्ल इन येलो बूट्स में मेरा रोल ऐसी युवती का था जिससे मैं कनेक्ट कर पा रही थी। कोई रोल करते हुए अगर अपने जीवन में झांकती हूं और कहीं-न-कहीं उससे रिलेट कर पाती हूं तो आसानी होती है। 
फ़िल्म शंघाई में किस तरह का रोल है?
शंघाई भारतीय राजनीति पर केंद्रित फ़िल्म है। इसमें शालिनी का किरदार निभा रही हूं, जो एक छात्रा और राजनीतिक कार्यकर्ता है। 
आपके लिए सिनेमा का क्या अर्थ है?
सिनेमा कहानी कहने का एक माध्यम है। कहानी, जो आपको सोचने पर मजबूर करे। मेरे लिए यह इंसानों को समझने का ज़रिया है। सिनेमा हमारी सोच और नज़रिए को विस्तार देता है। फ़िल्मों में हम अलग-अलग किरदारों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं, जबकि असल जीवन में लोगों को बिना जाने-समझे उनके बारे में क़यास लगाते हैं।
ऐसी कौन-सी जगह है, जहां बार-बार जाना चाहती हैं?
भारत का हर कोना घूमना चाहती हूं। वैसे मुझे कश्मीर बहुत पसंद है, ख़ासतौर से गुलमर्ग। हिमाचल और राजस्थान बार-बार जाना चाहती हूं। उत्तर-पूर्व और लद्दाख जाने की दिली इच्छा है। मुझे फाइव-स्टार होटलों में रहना पसंद नहीं है। दूर-दराज़ के इलाक़ों में जाती हूं तो यह कोशिश रहती है कि मैं किसी स्थानीय के घर जाकर खाना खाऊं। हालांकि, यह आजकल थोड़ा मुश्किल हो गया है क्योंकि लोग मुझे पहचानने लगे हैं।
...और विदेश में?
पेरिस, बहुत ख़ूबसूरत शहर है और मेरे कुछ दोस्त भी हैं वहां। इसके अलावा कनाडा पसंद है। यह साफ-सुथरा और ख़ूबसूरत देश है, लोग ख़ुशमिजाज़ हैं।
जीवन दर्शन क्या है?
हर दिन कुछ-न-कुछ सीखना। इस बात की कोशिश करना कि आने वाला दिन आज से बेहतर हो।
किसे आदर्श मानती हैं?
माता-पिता को। उनके पास पैसा नहीं था, परिवार नहीं था और वे बंजारों की तरह भटकते थे। हिन्दुस्तान से प्यार हुआ तो यहीं बस गए। अब दोनों शांत हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन बेफ़िक्री से बिताया। लेकिन अब उन्हें संतुष्ट देखती हूं तो ख़ुशी होती है।
एक्टिंग के क्षेत्र में डेनियल डे-लुईस मेरे आदर्श हैं। वे एक असाधारण कलाकार हैं। किसी किरदार को निभाने से पहले जी-तोड़ मेहनत करते हैं।
पाठकों के लिए संदेश?
लोगों को बिना जाने-समझे उनका आकलन न करें। प्रसन्न रहने की कोशिश करें। दूसरे लोग क्या कर रहे हैं, इसके बजाय अपने काम पर ध्यान दें।
प्रिय किताबें?
शेक्सपियर मेरे पसंदीदा हैं। विक्रम सेठ की ए सूटेबल बॉय और ऑस्कर वाइल्ड की द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे पसंद है। जीवनियां और दर्शन की किताबें पढ़ना अच्छा लगता है। स्वामी विवेकानन्द और श्री अरबिंदो की किताबें ख़ूब पढ़ती हूं।
प्रिय फ़िल्में?
गुरु दत्त की प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम, केतन मेहता की मिर्च-मसाला और मुज़फ्फर अली की उमराव जान पसंदीदा फ़िल्में हैं। विदेशी फिल्मों में मार्सेल कार्ने की लेसॉन्फॉ दु पारादी (Les Infants du Paradis)। यह 1950 के दशक की ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म है। मार्टिन स्कारसेज़ी की द रेजिंग बुल और टैक्सी ड्राइवर पसंदीदा हैं। मिशेल गोंड्री की एटर्नल सनशाइन ऑफ द स्पॉटलैस माइंड पसंद है।
प्रिय गाने?
पुराने हिन्दी गाने। संगीतकार माइकी मैकलीयरी (Mikey Mccleary) की एलबम द बारटेंडर बेहद पसंद है। उन्होंने पुराने गानों को नए म्यूज़िक के साथ बेहतरीन ढंग से पेश किया है।
प्रिय अभिनेता?
इरफ़ान। रणबीर कपूर भी अच्छे हैं, रॉक स्टार में उन्होंने कमाल का काम किया है। अभिनेत्रियों में तब्बू पसंद है। प्रियंका चोपड़ा बेहतरीन अभिनेत्री हैं और अपने काम से हमेशा हैरान करती हैं।
मुंबई में प्रिय जगह?
पृथ्वी थिएटर। वहां अक़सर जाती हूं, नाटक देखने।
जीवन का अर्थ?
जीवन एक पाठशाला है। जैसे हम स्कूल में सीखते हैं, वैसे ही ज़िंदगी में भी रोज़ाना कुछ-न-कुछ सीखने को मिलता है।
कल्कि नाम किसने रखा?
कल्कि विष्णु का अवतार है। मां ने मेरा नाम रखा है। उन्हें यक़ीन है कि मैं दुनिया बदल सकती हूं। 

(दैनिक भास्कर की मासिक पत्रिका 'अहा ज़िंदगी' के अप्रैल 2012 अंक में प्रकाशित)

15 comments:

  1. सर्वप्रथम बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
    सूचनार्थ!

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  2. बहुत बढ़िया इन्टर्व्यू!!
    कल्कि की जितनी भी तस्वीरें लगाईं हैं आपने, सभी बेहद खूबसूरत लगी :)

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  3. बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
    बधाईयाँ ||

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  4. बढ़िया साक्षात्कार... सुंदर तस्वीरें...

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  5. कल्की जी का इन्टरव्यू अच्छा लगा ।

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  6. Bahut Aacha Interview.......

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  7. It's great to know so much about Kalki Koechlin. Good interaction. Keep providing such info about Bollywood celebrities to common people like us :->

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  8. kalki ko jaan na bahut achha laga..vakai wo bahut talanted abhinetri hain..aur ye interview padhke unki personality ke baaki pehlu bhi pata chale...kalki se prichaya karvaane ke liye shukriya..

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  9. ये काम तुमने मेरे लिए किया। मैं पिछले कुछ दिनों से इस लड़की को फिल्मों में देखता था और इसके बारे में कुछ जानना चाहता था, कम से कम नाम तो जानना ही चाहता था। शुक्रिया।

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  10. कमाल है साहब ।
    इनके बारे में कुछ पता नहीं था । शुक्रिया ।

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