मैं नहीं जानता
क्योंकि नहीं देखा है कभी
पर जो भी
जहां भी लीपता होता है
गोबर के घर-आंगन
जो भी
जहां भी प्रतिदिन दुआरे बनाता होता है
आटे-कुमकुम से अल्पना
जो भी
जहां भी लोहे की कड़ाही में छौंकता होता है
मेथी की भाजी
जो भी
जहां भी चिंता भरी आंखें लिये निहारता होता है
दूर तक का पथ
वही
हां, वही है मां।
-श्रीनरेश मेहता
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDelete--
मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
Beautiful !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteमाँ को प्रणाम!
ReplyDeleteमातृदिवस पर बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
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बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
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http://nicenice-nice.blogspot.com/2011/05/blog-post_08.html