हर दिन
बेकल रात को
बुनती हूं
इक नया सपना
इक नया सपना
कुछ सपने सदाबहार हैं
तितली कोई पकड़कर
बंद करना हौले से मुट्ठी
या उड़ते जाना अविराम
या उड़ते जाना अविराम
मीलों ऊपर, दिशाहीन
हर सुबह देखती हूं
हथेली पर बिखरे
तितलियों के वो
रंग अनगिन
और
रंग देती हूं तुम्हें
हर सुबह देखती हूं
हथेली पर ठहरा वो
आकाश अनन्त
और
भर लेती हूं उड़ान
बहुत खूबसूरत एहसास ..
ReplyDeleteशब्दों का सतरंगी इन्द्रधनुष.
ReplyDeleteउत्साह उछाह की प्रभावी रचना
ReplyDeleteजीवन में आशा का संचार करती रचना ..आपका आभार
ReplyDeleteउत्तम..
ReplyDeleteसंगीता जी, राहुल जी, अरविन्द जी.. आभार स्वीकारें।
ReplyDeleteकेवल जी.. शुक्रिया।
अभी.. :)
सिद्धेश्वर जी.. बहुत धन्यवाद आपका।
शब्दों का बहुत खूबसूरत एहसास कराती रचना... :)
ReplyDeleteशुक्रिया... राम :)
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