दुर्लभ होते हैं ऐसे पल
सब होता है जब
एकान्त से भरा और
नितान्त निजी
कोई नहीं दिखता आस-पास
पथरीली चुप्पी के सिवा
मैं होती हूं केवल
अपने साथ
वक़्त गुज़ारती हुई
बिखरने लगते हैं मोह-तंतु
टूट-टूट कर जब
बेतरह अकेला
भीतर का कोई अंश
गर्भनाल तोड़
आ बैठता है सामने
आ बैठता है सामने
और मैं
और अलमस्त हो जाती हूं।
-माधवी
ye har kisi ki baat hai... bahut achchhe se kaha dia hai ise apani kavita mein
ReplyDeleteAADAT HO GAYI HAI ABB ISS NITAANT AKELE KI
ReplyDeleteACHCHA LAGTAA HAI MOH TUTTANA
ACHCHA LAGTA HAI JEEVAN SE UPAR UTHNAA
KAHIN KISI AUR JAHAAN KI TARAF DEKHNA
TAIRNAA....
HAMESHA KI TARAH BAHUT BAHUT KHOOB.... AAPKI LEKHNI MEIN JADUI SIYAHI HO JO KABHI BHI NA KHALI HO...
बहुत सुंदर भाव. अच्छी लगी यह कविता.
ReplyDeleteद्वैत और अद्वैत का द्वंद्व.
ReplyDeletetoo good.....its awsome thought...everyone passes thru. this phase of life....but its our perception, how we take it almast or.......???
ReplyDeleteक्या बात है...
ReplyDeleteकोई नहीं दिखता आसपास
ReplyDeleteपथरीली चुप्पी के सिवा
सिर्फ, मैं होती हूं
साथ अपने
वक्त गुजारती हुई...
सुंदर भाव. तुमसे और तुम्हारे एकांत से जलन हो रही है माधवी. इसे मेरा प्यार समझकर रख लो.
तह-ए-दिल से शुक्रिया.. आप सभी का !
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