Sunday, January 23, 2011

अपने साथ

दुर्लभ होते हैं ऐसे पल
सब होता है जब
एकान्त से भरा और
नितान्त निजी

कोई नहीं दिखता आस-पास
पथरीली चुप्पी के सिवा
मैं होती हूं केवल
अपने साथ
वक़्त गुज़ारती हुई

बिखरने लगते हैं मोह-तंतु
टूट-टूट कर जब 
बेतरह अकेला
भीतर का कोई अंश
गर्भनाल तोड़ 
आ बैठता है सामने

और मैं 
और अलमस्त हो जाती हूं
-माधवी

8 comments:

  1. ye har kisi ki baat hai... bahut achchhe se kaha dia hai ise apani kavita mein

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  2. AADAT HO GAYI HAI ABB ISS NITAANT AKELE KI
    ACHCHA LAGTAA HAI MOH TUTTANA
    ACHCHA LAGTA HAI JEEVAN SE UPAR UTHNAA
    KAHIN KISI AUR JAHAAN KI TARAF DEKHNA
    TAIRNAA....
    HAMESHA KI TARAH BAHUT BAHUT KHOOB.... AAPKI LEKHNI MEIN JADUI SIYAHI HO JO KABHI BHI NA KHALI HO...

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  3. बहुत सुंदर भाव. अच्छी लगी यह कविता.

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  4. द्वैत और अद्वैत का द्वंद्व.

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  5. too good.....its awsome thought...everyone passes thru. this phase of life....but its our perception, how we take it almast or.......???

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  6. कोई नहीं दिखता आसपास
    पथरीली चुप्पी के सिवा
    सिर्फ, मैं होती हूं
    साथ अपने
    वक्त गुजारती हुई...

    सुंदर भाव. तुमसे और तुम्हारे एकांत से जलन हो रही है माधवी. इसे मेरा प्यार समझकर रख लो.

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  7. तह-ए-दिल से शुक्रिया.. आप सभी का !

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