हिंदी कथाजगत में चन्द्रधर
शर्मा गुलेरी एक ऐसे कथाकार हुए जो कुछ ही कहानियां लिखकर अमर हो गए। उनकी कहानियां
आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी अपने समय में रहीं। कथा साहित्य को गुलेरी जी
ने नई दिशा और आयाम प्रदान किए। वह उच्च कोटि के निबंधकार और प्रखर समालोचक भी थे।
गुलेरी जी के पूर्वज मूलत: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले के गुलेर के निवासी थे। इनके पिता पंडित शिवराम शास्त्री आजीविका के सिलसिले में जयपुर चले गए। गुलेरी जी का जन्म 7 जुलाई, 1883 को हुआ था। अपनी मां लक्ष्मी के प्रति गुलेरी जी सदैव श्रद्धावनत रहे। उनकी ख्याति प्रकांड विद्वान के रूप में थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी, बांग्ला, अंग्रेज़ी, लैटिन और फ्रेंच भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी।
सन् 1904 में गुलेरी जी अजमेर के मेयो कॉलेज में अध्यापक भी रहे। अध्यापक के रूप में उनका बड़ा मान-सम्मान था। अपने शिष्यों में वह लोकप्रिय तो थे ही, अनुशासन और नियमों का भी वह सख्ती से अनुपालन करते थे। उनकी असाधारण योग्यता से प्रभावित होकर पंडित मदनमोहन मालवीय ने उन्हें बनारस बुलाया और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद दिलाया।
गुलेरी जी कवि भी थे, यह बहुत कम लोग जानते हैं। ‘एशिया की विजय दशमी’, ‘भारत की जय’, ‘अहिताग्नि’, ‘झुकी कमान’, ‘स्वागत’, ‘ईश्वर से प्रार्थना’ और ‘सुनीति’ इनकी कतिपय श्रेष्ठ कविताएं हैं। ये रचनाएं गुलेरी विषयक संपादित ग्रंथों में संकलित हैं। उनकी खड़ी बोली की कविताओं में राष्ट्रीय जागरण और उद्बोधन का स्वर अधिक मुखर हुआ है। अपनी रचनाओं में उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की कटु आलोचना की थी।
उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में जमकर लिखा है, मगर उन्हें ख्याति कथाकार के रूप में मिली। उनकी लिखी तीन कहानियां ही प्रामाणिक हैं- ‘सुखमय जीवन’, ‘बुद्धू का कांटा’ तथा ‘उसने कहा था’। इन तीनों में ‘उसने कहा था’ सर्वाधिक चर्चित हुई। यह कहानी सन् 1915 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपी थी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस कहानी की प्रशंसा करते हुए अपनी इतिहास की पुस्तक में लिखा है- ‘‘घटना उसकी ऐसी है जैसी बराबर हुआ करती है, पर उसके भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झांक रहा है। केवल झांक रहा है, निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह नहीं रहा। इसकी घटनाएं ही बोल रही हैं, पात्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।"
गुलेरी जी की कहानियों की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि वह युग से आगे बढ़कर अपनी कहानियों में रोमांस और सेक्स को ले आए। उस आदर्शवादी युग में इस प्रकार का वर्णन समाज को स्वीकार्य नहीं था, परंतु वह सेक्स के नाम पर झिझकने वाले पंडितों में से नहीं थे। उन्होंने जीवन के यथार्थ का खुलकर वर्णन किया।
जिन दिनों हिंदी कहानी घुटनों के बल सरक रही थी, गुलेरी जी की कहानियां पांव के बल चलकर चौकड़ी भरने में समर्थ थीं। उन्होंने अनुपम कलापूर्ण कहानियां लिखकर युग को प्रेरित और गतिमान किया। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिंदी कथा-साहित्य के मसीहा थे। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार का 39 वर्ष की अल्पायु में 12 सितंबर 1922 को काशी में निधन हो गया।
गुलेरी जी के पूर्वज मूलत: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले के गुलेर के निवासी थे। इनके पिता पंडित शिवराम शास्त्री आजीविका के सिलसिले में जयपुर चले गए। गुलेरी जी का जन्म 7 जुलाई, 1883 को हुआ था। अपनी मां लक्ष्मी के प्रति गुलेरी जी सदैव श्रद्धावनत रहे। उनकी ख्याति प्रकांड विद्वान के रूप में थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी, बांग्ला, अंग्रेज़ी, लैटिन और फ्रेंच भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी।
सन् 1904 में गुलेरी जी अजमेर के मेयो कॉलेज में अध्यापक भी रहे। अध्यापक के रूप में उनका बड़ा मान-सम्मान था। अपने शिष्यों में वह लोकप्रिय तो थे ही, अनुशासन और नियमों का भी वह सख्ती से अनुपालन करते थे। उनकी असाधारण योग्यता से प्रभावित होकर पंडित मदनमोहन मालवीय ने उन्हें बनारस बुलाया और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद दिलाया।
गुलेरी जी कवि भी थे, यह बहुत कम लोग जानते हैं। ‘एशिया की विजय दशमी’, ‘भारत की जय’, ‘अहिताग्नि’, ‘झुकी कमान’, ‘स्वागत’, ‘ईश्वर से प्रार्थना’ और ‘सुनीति’ इनकी कतिपय श्रेष्ठ कविताएं हैं। ये रचनाएं गुलेरी विषयक संपादित ग्रंथों में संकलित हैं। उनकी खड़ी बोली की कविताओं में राष्ट्रीय जागरण और उद्बोधन का स्वर अधिक मुखर हुआ है। अपनी रचनाओं में उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की कटु आलोचना की थी।
उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में जमकर लिखा है, मगर उन्हें ख्याति कथाकार के रूप में मिली। उनकी लिखी तीन कहानियां ही प्रामाणिक हैं- ‘सुखमय जीवन’, ‘बुद्धू का कांटा’ तथा ‘उसने कहा था’। इन तीनों में ‘उसने कहा था’ सर्वाधिक चर्चित हुई। यह कहानी सन् 1915 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपी थी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस कहानी की प्रशंसा करते हुए अपनी इतिहास की पुस्तक में लिखा है- ‘‘घटना उसकी ऐसी है जैसी बराबर हुआ करती है, पर उसके भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झांक रहा है। केवल झांक रहा है, निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह नहीं रहा। इसकी घटनाएं ही बोल रही हैं, पात्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।"
गुलेरी जी की कहानियों की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि वह युग से आगे बढ़कर अपनी कहानियों में रोमांस और सेक्स को ले आए। उस आदर्शवादी युग में इस प्रकार का वर्णन समाज को स्वीकार्य नहीं था, परंतु वह सेक्स के नाम पर झिझकने वाले पंडितों में से नहीं थे। उन्होंने जीवन के यथार्थ का खुलकर वर्णन किया।
जिन दिनों हिंदी कहानी घुटनों के बल सरक रही थी, गुलेरी जी की कहानियां पांव के बल चलकर चौकड़ी भरने में समर्थ थीं। उन्होंने अनुपम कलापूर्ण कहानियां लिखकर युग को प्रेरित और गतिमान किया। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिंदी कथा-साहित्य के मसीहा थे। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार का 39 वर्ष की अल्पायु में 12 सितंबर 1922 को काशी में निधन हो गया।
(पंजाब केसरी से साभार)
ReplyDeleteआपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
http://savanxxx.blogspot.in