(वे कहते हैं कि मैं
अपने संगीत को बयां नहीं कर सकता, मेरा संगीत मुझे बयां करता है। आप उनका संगीत
सुनते हैं तो समझ जाते हैं कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं। उनके हर गीत को सुनकर गाने
वाले की एक छवि मन में अभरती है, यह छवि कैलाश खेर की है। कैलाश अलग हैं, अद्भुत
हैं, और उनमें कुछ ऐसा है जो किसी और में नहीं है। उनके बारे में और ज़्यादा जानने
की इच्छा हमेशा रहती है, इसी इच्छा के चलते हम पहुंचे उनके घर...)
नौ वर्ष के करियर में आप 800 से ज़्यादा कन्सर्ट कर
चुके हैं, कैसा लगता है?
यह ख़ुशी और हैरानी की बात है। साल 2002 में जब
मेरी संगीत यात्रा का आरंभ हुआ था, तब
मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह यात्रा इतनी गतिशील और प्रगतिशील होगी, और देखते ही देखते मैं इस मुकाम तक पहुंच जाऊंगा। किसी कन्सर्ट में जाता
हूं तो लोगों की भीड़ और उनकी ऊर्जा देखकर विस्मित रह जाता हूं। यह संगीत का असर
है। संगीत, जिसमें मनोरंजन के साथ-साथ एक रोशनी है, सीख है। हर साल मेरे लाइव शो
होते हैं और इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है।
आपके बैंड ‘कैलासा’ की उत्पत्ति कब हुई?
‘कैलासा’ संस्कृत का शब्द है,
जिसका अर्थ है- दिव्यता। ‘कैलासा’ की
उत्पत्ति साल 2004 में हुई। इससे पहले 2003 में मेरा एक फ़िल्मी गाना ‘अल्लाह के बंदे’ आ चुका था। गाना लोकप्रिय हुआ और
इसे कई अवॉर्ड मिले। फ़िल्म इंडस्ट्री में मेरी मौजूदगी दर्ज हो चुकी थी और मुझे
लाइव शो के लिए बुलाया जाने लगा था। मेरी हमेशा यह इच्छा थी कि मेरी सोच का एक
बैंड होना चाहिए जिसमें भारतीयता हो, लेकिन गुणवत्ता के स्तर पर वो पूरे विश्व के
मानसपटल पर अपना प्रभाव छोड़ सके। आत्मिक चाह थी तो ईश्वरीय राह निकलने लगी।
धीरे-धीरे मैं मनपंसद संगीतज्ञों से मिलता गया और वो चुम्बक की तरह साथ जुड़ते गए।
आप पवित्र मन से कुछ चाहें तो पवित्रता आपकी ओर आकर्षित होने लगती है। आज ‘कैलासा’ में कुल 14 सदस्य हैं।
हाल ही में हमने कुल्लू में परफॉर्म किया था, जहां
क़रीब 50 हज़ार लोगों की भीड़ थी। लोग दूर-दूर से बसों-ट्रकों में भरकर आए थे। अब
संगीत के प्रति प्रशासनिक अमला भी उदार, या कहें कि जागरुक होने लगा है। व्यवस्था
अच्छी हो तो परफॉर्म करने में भी आनन्द आता है। लोगों में संगीत के प्रति आस्था
बढ़ रही है। संगीतकारों के लिए यह दौर अद्भुत है।
नई एलबम ‘रंगीले’ के बाद आप 60 देशों की यात्रा कर चुके हैं।
कैसा अनुभव रहा?
जनवरी 2012 में अमिताभ बच्चन ने ‘रंगीले’ एलबम का लोकार्पण किया
था। लगभग उसी समय तय हो गया था कि मार्च से हमें विश्वयात्रा पर जाना है। लेकिन यह
यात्रा कितनी लंबी होगी, इसका अंदाज़ा नहीं था। शुरुआत अफ्रीका से हुई। उसके बाद
हम बांग्लादेश, पाकिस्तान, यूरोप, इंग्लैंड, कनाडा, अमेरिका और उत्तरी अमेरिका
होते हुए भारत वापस आए। फिर मॉरिशस, ऑस्ट्रेलिया, ओमान और सिंगापुर गए। इस तरह
पूरा वर्ष देशाटन करते हुए बीता है। यह साल मेरे लिए बहुत पावन रहा। मेरी मां ने
इसी वर्ष प्राण त्यागे हैं। मां का जाना बड़े सुक़ून से हुआ। वो ऐसे गईं जैसे कोई
संत अपनी देह छोड़कर जाता है। पिता भी ऐसे ही गए थे। मैं इसे मरना नहीं, मोक्ष
कहता हूं। जब किसी बुज़ुर्ग की मृत्यु होती है तो वो अपना आशीर्वाद हमें देकर जाता
है। बड़े-बूढ़े शरीर त्यागकर सिर्फ़ संसार से विदा लेते हैं, लेकिन उनका आशीष
हमारे साथ रहता है। 13 फरवरी को मां की मृत्यु हुई, 14 फरवरी को मेरी शादी की
सालगिरह होती है। मेरे जीवन में तिथियों और स्थितियों के विघटन बड़े अद्भुत रहे
हैं।
आपने देश-विदेश में परफॉर्म किया है। सबसे अच्छा
रिस्पॉन्स कहां मिला?
हर जगह अच्छा रिस्पॉन्स मिलता है। लेकिन कुछ क्षण
या अनुभव ऐसे होते हैं जो भुलाए नहीं भूलते। शिकागो में एक शो हुआ था, जिसमें बिल
क्लिंटन और उनकी पत्नी हिलेरी क्लिंटन आए हुए थे। हर गाने पर दोनों मुस्कराते और
बच्चों की तरह तालियां पीटते। दोनों इतनी श्रद्धा से बैठे हमें सुन रहे थे कि लग
ही नहीं रहा था कि ये लोग भी वीवीआईपी का तमगा ढोते हैं। जबकि हमारे देश में वीआईपी सामने तो होते हैं, लेकिन उनका
दिमाग कहीं और ही होता है।
एक बार अटलांटा में शो के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला
ने आकर मेरे पैर छुए। मैं हैरान रह गया। वो महिला क़रीब 80 साल की रही होंगी। फिर
उन्होंने एक पत्र लिखकर स्टेज पर रखा। मुझे लगा कि किसी गाने की फ़रमाइश होगी।
पत्र में लिखा था, ‘मैं तुम्हारी दादी की
उम्र की हूं, लेकिन मेरी भारतीय संस्कृति और कला में इतनी आस्था है कि मुझे
तुम्हारे अंदर भगवान दिखता है। ऐसा लगता है जैसे साक्षात् भगवान गा रहा हो।’
कई बार हम श्रोताओं को स्टेज पर नाचने-गाने के लिए
आमंत्रित करते हैं ताकि वो कार्यक्रम से जुड़ सकें। इंग्लैंड में गाने के दौरान एक
युवती मेरे पास आकर पूछने लगी, ‘कैन आई हग यू?’
मैंने मस्ती में कहा, ‘हां... हग लो।’ हिन्दी-अंग्रेज़ी के फ्यूज़न में कई बार शब्द सुनने में अच्छे नहीं लगते, लेकिन भावनाएं शुद्ध हों तो वो पल यादगार बन जाते हैं। मेरी बात सुनकर सब
हंसने लगे। गाना रोकना पड़ा और पांच मिनट तक हम सब हंसते रहे। मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि ‘तेरी दीवानी’, ‘तौबा-तौबा’, ‘जाणा जोगी दे नाल’ या ‘अगड़ बम-बबम, बम लहरी’
जैसे गाने इतने चर्चित होंगे। देश-दुनिया में जो लोग हिन्दी भाषा नहीं समझते, उन
पर भी मेरे गानों का बेतरह असर हुआ है। यह ईश्वरीय संयोजन है, और मैं माध्यम हूं। कुछ मिले न मिले, मुझे प्रेम बहुत
सच्चे दिल से मिलता है। और जब मैं उस प्रेम का भक्षण करता हूं, उसका आह्वान करता
हूं, तो उसके प्रति मेरा भी कुछ दायित्व बनता है। यह दायित्व मेरी मुस्कान में
दिखता है कि मैं भी आपके प्रति उतना ही कटिबद्ध हूं, जितने आप हैं।
आप मेरठ से हैं। वहां के मशहूर नौचंदी मेले में
गाने का मौक़ा मिला है?
दो बार बुलावा आया, लेकिन अस्पष्टता के कारण बात बन नहीं पाई। चूंकि यह प्रशासन का मेला होता है तो प्रशासन बुलाए, या फिर कोई एनजीओ या ट्रस्ट दिलचस्पी ले तो मैं हाज़िर हूं। नौचंदी मेले का बड़ा नाम है, और मेरा जन्म भी मेरठ का है, तो दिल से चाहता हूं कि मैं वहां जाकर गाऊं। एक बार मेरे गाने को लेकर वहां के किसी संस्थान से विज्ञापन भी आने शुरू हो गए थे, लेकिन कार्यक्रम सिरे नहीं चढ़ा। लेकिन मुझे विश्वास है कि किसी विशेष, अनूठे मुहूर्त में मुझे अपनी जन्मस्थली में गाने का अवसर ज़रूर मिलेगा।
दो बार बुलावा आया, लेकिन अस्पष्टता के कारण बात बन नहीं पाई। चूंकि यह प्रशासन का मेला होता है तो प्रशासन बुलाए, या फिर कोई एनजीओ या ट्रस्ट दिलचस्पी ले तो मैं हाज़िर हूं। नौचंदी मेले का बड़ा नाम है, और मेरा जन्म भी मेरठ का है, तो दिल से चाहता हूं कि मैं वहां जाकर गाऊं। एक बार मेरे गाने को लेकर वहां के किसी संस्थान से विज्ञापन भी आने शुरू हो गए थे, लेकिन कार्यक्रम सिरे नहीं चढ़ा। लेकिन मुझे विश्वास है कि किसी विशेष, अनूठे मुहूर्त में मुझे अपनी जन्मस्थली में गाने का अवसर ज़रूर मिलेगा।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आपका बचपन बीता है। वहां लोक
संगीत का बोलबाला है। प्लेबैक सिंगिंग करते समय, जोकि लोक गायकी से बिल्कुल अलग
विधा है, किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?
उत्तर प्रदेश में रहते हुए मैंने लोक संगीत के बहुत
सारे प्रकार सुने... जैसे स्वांग, ढोला, और एक ऐसा प्रकार जो बैरागी या जोगी गाते
हैं। मेरे पिता निर्गुण संगीत गाते थे। वो एकतारा बजाकर गाते थे। मां भी गाती थीं।
हालांकि दोनों शौक़िया तौर पर गाते थे, लेकिन ऐसा कि पेशेवर गायकों को भी टक्कर दे
दें। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा और समझा है। फिर हम दिल्ली आ गए, लेकिन दिल्ली आकर
भी सब-कुछ वैसा ही रहा। घर में गांव जैसा ही माहौल और वही जीवनशैली रही। सो, अपने
प्रदेश की गायकी और वहां के संगीत का प्रभाव मुझ पर हमेशा रहा है। यही मेरे संगीत
पर भी दिखता है।
मैंने नहीं सोचा था कि फ़िल्मों में गाऊंगा, न ऐसी
कोई चाहत थी। मैं यहां एलबम बनाने के लिए आया था। लेकिन लोगों ने आवाज़ सुनकर पसंद
की तो फ़िल्म, टेलीविज़न, विज्ञापन, हर जगह से काम की बाढ़-सी आ गई। अब तक 400
फ़िल्मों के लिए गाने और 600 से ज़्यादा विज्ञापन फ़िल्मों के लिए जिंगल गा चुका
हूं।
आपने संघर्ष का दौर भी देखा है। किस तरह की
मुश्किलें आईं और उनसे किस तरह उबरे?
जब मुंबई आया था, तब मैं 29 साल का था, अब 39 साल का
हूं। लोग 15-16 साल की उम्र में सुपरस्टार और रॉकस्टार बनने का सपना संजोए होते
हैं। मैं इस मामले में लेटलतीफ़ रहा। लेकिन यह मेरी नियति थी, जो ईश्वर ने मेरे
लिए तय कर रखी थी। एक समय ऐसा था जब मेरा जूता फट गया था। मेरे पास पैसे थे, लेकिन
मैं उन्हें संभलकर ख़र्च कर रहा था क्योंकि मुझे ज़्यादा समय तक मुंबई में बने रहना
था। मेरे पास 6 हज़ार रुपए थे और मुझे पूरा एक साल काटना था। मैं सिर्फ़ जीने के
लिए खाता था, और कोई ख़र्चा नहीं था। मोबाइल फ़ोन हमेशा रिचार्ज कराकर रखता था
क्योंकि काम के लिए लोगों से बात करनी होती थी। मेरे पास एक मोटरसाइकिल भी थी,
जिसमें हमेशा पेट्रोल भराकर रखता था क्योंकि काम की तलाश में जाना होता था। एक बार
किसी ने काम के सिलसिले में बुलाया। वहां बस से पहुंचना सुविधाजनक था तो मैं बस
में चढ़ गया। बरसात के दिन थे और जूते का तल्ला फटा होने के कारण मेरे कपड़े ख़राब
हो चुके थे। बस में साथ खड़े आदमी ने बताया कि आपके सारे कपड़े ख़राब हो गए हैं।
यह सुनकर मैं ख़ूब हंसा और सोचा कि भगवान कैसी परीक्षा ले रहा है। मैं इतने उत्साह
से उस व्यक्ति से मिलने जा रहा था और अब जाना मुमकिन नहीं था।
वो परीक्षा के दिन थे। मुझे यह सिखाया जा रहा था कि
उत्साह रख, उत्तेजना पाल, लेकिन धीरज भी रख। सब्र सबसे बड़ी उत्तेजना है। आप जितने
सब्र और धैर्य से काम लेंगे, मुश्किलों को गले लगाएंगे, एक समय के बाद आपका जीवन
उतना ही सरल होगा। संघर्ष की स्थिति कुछ देने के लिए आती है, लेकिन हम उस स्थिति
में डगमगा जाते हैं और लेने लायक नहीं बचते। आप ख़ुद भगवान भी बनें और भक्त भी, यह
संभव नहीं है।
फ़िल्मों में गाना आसान है या विज्ञापनों के लिए जिंगल?
जिंगल गाना ज़्यादा चुनौती से भरा है। किसी भी
जिंगल को तीस, चालीस या ज़्यादा-से-ज़्यादा साठ सेकेंड में गाना होता है, जैसे एक
मिनट में कोई जादू करना हो। जितनी देर में आलाप लेते हैं, उतनी देर में समय ख़त्म
हो जाता है। कम वक़्त में गहरा काम करना होता है।
संगीत के क्षेत्र में इन दिनों कई प्रयोग हो रहे
हैं, क्या कहेंगे?
यह प्रयोगवादी युग है। यह दौर संगीत के लिए बहुत
अच्छा है। जो भी प्रयोग दिखाई दे रहे हैं वो हमारे जीवन के विभिन्न रसों से
प्रेरित होकर हो रहे हैं। इसीलिए खुलापन भी आया है। पहले एक जैसी सोच और एक तरीके
के गाने बनते थे, अब ऐसा नहीं है। जैसे हम हर दिन नए कपड़े पहनते हैं, संगीत में
भी वही नयापन, वही परिवर्तन चाहते हैं। संगीत को लेकर हमारी सोच बदली है, विचार
बदले हैं, और व्यवस्थाएं भी बदली हैं। इस बदलाव का फ़ायदा नए संगीतकारों को हो रहा
है। आने वाले समय में संगीत में और भी बदलाव आएंगे। समय के साथ मनुष्य को ढलते
रहना चाहिए।
आप गायक हैं, गीतकार हैं और संगीतकार भी। किस
भूमिका में ज़्यादा संतुष्टि मिलती है?
तीनों भूमिकाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। लिखना भी
उतना ही प्रेरणादायक है, जितना धुन बनाना। संगीत की रचना भी उतनी ही प्रेरणा देती
है जितनी गायकी। शरीर में हड्डियों का होना भी उतना ही आवश्यक है, जितना कि मांस
और रक्त का होना। ऐसा ढांचा, जो एक-दूसरे के बिना पूरा नहीं दिखता। हां, गाना
सर्वोपरि है। यह मुख की तरह है और सबसे पहली दृष्टि मुख पर पड़ती है। गायकी मेरे
लिए मुख्य है। मैं उसकी वजह से ही जाना जाता हूं और ख़ुशकिस्मत हूं कि लोग मेरे
गानों का इंतज़ार करते हैं।
प्रेरणास्रोत कौन है?
मेरे मां-पिताजी जिन्होंने साधारण होते हुए भी
असाधारण जीवन जिया है। मेरे पिता ऐसे गांव में जन्मे, जहां हर दूसरा इंसान गुस्से
में होता है, किसी-न-किसी
कुंठा में रहता है, और हर तीसरा आदमी अपराधी है। लेकिन पिताजी की ऊर्जा अलग थी।
उन्हें बहुत सम्मान मिलता था। कालान्तर में जीवन में अन्य तत्व भी जुड़ते गए, जो
मेरी प्रेरणा बने... जैसे वृक्ष, नदियां, सूर्य, पर्वत और समुद्र। संगीत में कुछ
करने का विचार सबसे पहले ऋषिकेश में गंगा के तट पर आया। काम के लिए यहां मुंबई
में, महासागर की शरण में आ गया। यह सोचकर आया था कि सफ़ल नहीं हुआ तो इसमें ही समा
जाऊंगा। लेकिन किस्मत ने साथ दिया और ऐसी नौबत नहीं आई।
शीतल से आपकी मुलाक़ात कहां और कैसे हुई?
शीतल से आपकी मुलाक़ात कहां और कैसे हुई?
शीतल भी कश्मीरी मूल की हैं। हमारी अरेंज्ड मैरिज
हुई है। किसी पारिवारिक मित्र के माध्यम से यह रिश्ता आया था। फिर कुछ ऐसे योग बने
कि एक संत ने इस रिश्ते का प्रवर्तन किया। ईश्वर का उपकार है कि शीतल संगीत की अच्छी
समझ रखती है, अच्छा संगीत सुनती है। जिस साल शादी हुई, उसी साल 28 दिसंबर को बेटे
कबीर का जन्म हुआ।
कबीर में भी गायकी के जरासीम हैं?
कबीर में संगीत के तत्व दिखते हैं। उसमें गायकी के
पूरे लक्षण हैं। बहुत गहरे गाने भी वो तल्लीन होकर सुनता, गुनगुनाता है। लेकिन मैं
उस पर अपनी बात नहीं थोपता। उसके स्वरूप को देखकर बस हंसता रहता हूं। ऐसा लगता है
जैसे कबीर मुझे सिखाने के लिए आया है, या वो मुझे पाल रहा है।
ख़ाली वक़्त में क्या करते हैं?
पिछले आठ साल से ख़ाली समय नहीं मिला है। हंसी की
बात यह है कि फरवरी 2013 में मेरी शादी को चार साल हो जाएंगे, लेकिन अभी तक हनीमून
भी नहीं मनाया है। शीतल कभी-कभार रोष प्रकट करती है, लेकिन फिर हालात को समझकर चुप
हो जाती है। वैसे, लोनावला में अपना खेत है। वहां छह गाय रखी हुई हैं, जिनके छह
बछड़े हैं। पेड़-पौधे, प्रकृति... सब-कुछ है वहां। वक़्त मिलने पर कबीर को वहीं ले
जाता हूं।
पसंदीदा गाना?
‘आज मेरे पिया घर आवेंगे, ऐ री सखी मंगल गाओ री,
धरती-अंबर सजाओ री’ और ‘छाप तिलक सब
छीनी।’
मुंबई में प्रिय जगह?
समन्दर किनारे बना यह घर।
सबसे बड़ा सपना?
कोई सपना नहीं है। सिर्फ़ इस बात में विश्वास है कि
‘जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए।’ यह चाहता हूं कि अच्छा संगीत बनता रहे। दुनिया में अच्छी सोच पैदा हो,
लोगों को अच्छा सीखने को मिले। मन में बहुत कुछ है जो संगीत के ज़रिए बांटने की
इच्छा है।
(दैनिक भास्कर की मासिक पत्रिका 'अहा ज़िंदगी' के फरवरी 2013, वसंत अंक में प्रकाशित)
(दैनिक भास्कर की मासिक पत्रिका 'अहा ज़िंदगी' के फरवरी 2013, वसंत अंक में प्रकाशित)
बहुत बढिया
ReplyDeleteकैलाश खेर को और करीब से जाना
सार्थक प्रस्तुतीकरण,आभार.
ReplyDeleteप्रेरणा दायक ...बहुत अच्छा लगा ...कैलाश खेर के बारे में जान कर ....
ReplyDeleteI'm really enjoying the theme/design of your weblog. Do you ever run into any internet browser compatibility problems? A number of my blog audience have complained about my website not operating correctly in Explorer but looks great in Opera. Do you have any suggestions to help fix this problem?
ReplyDeleteHere is my blog post - Free livesex
bahut khub hai aapka blog..
ReplyDeleteMere blog par nazar zarur firana..hindi kavita mein ruchi rakhta hun..:)
http://navanidhiren.blogspot.in/
बहुत ही विचारणीय साक्षात्कार कैलाश खेर के साथ। अत्यन्त उपयोगी।
ReplyDeleteवाह..
ReplyDeleteबहुत अच्छा रहा ये इंटरव्यू !!बहुत अच्छे इंसान हैं कैलाश!!