Saturday, July 7, 2012

परदादा को याद करते हुए

पुराने ज़माने में लोग आज के मुक़ाबले जल्दी विवाह बंधन में बंध जाते थे। ज़ाहिर है, लोग अपने पोते-पोतियों, यहां तक कि उनके बच्चों को देखकर दुनिया से विदा लेते थे। लेकिन गुलेरी जी न तो हमें देख पाए और न हम उन्हें। 39 वर्ष की अल्पायु में गुलेरी जी ने संसार त्याग दिया। लेकिन मुझे प्रतीत होता है कि वे भले ही सशरीर हमारे साथ नहीं हैं, उनकी देह हमें छोड़ गई है, लेकिन उनका प्रभामंडल और उनका वरदहस्त हमेशा हमारे परिवार पर रहा है। मेरे दादा योगेश्वर शर्मा गुलेरी उनके पुत्र के रूप में, मेरे पिता विद्याधर शर्मा गुलेरी उनके पौत्र के रूप में जाने जाते रहे.... मैं और मेरा बड़ा भाई विकास उनके प्रपौत्री और प्रपौत्र के रूप में। यह हमारे लिए गौरव की बात रही है। 
जब हम बच्चे कहानी सुनने-समझने लायक हुए तो उसने कहा था, बुद्धू का कांटा और सुखमय जीवन हमें घुट्टी की तरह पिलाई गई। यक़ीनन, बड़ी मीठी लगती थी यह घुट्टी! न जाने कितनी बार इन कालजयी रचनाओं को पढ़ा है और हर बार गुलेरी जी और उनकी विद्वत्ता अवचेतन में रहे हैं।
यूं तो गुलेरी जी की कार्यस्थली जयपुर रही, लेकिन उनका पैतृक आवास गुलेर गांव में है। चन्द्र भवन ...जो उनके नाम और रचनाकर्म से आलोकित है। जहां कालान्तर में मुझे भी पलने-बढ़ने और रहने का सौभाग्य मिला। गुलेरी जी से विरासत में बहुत कुछ पाया है। घर में उनके कई हस्तलिखित पत्र, पांडुलिपियां, तसवीरें, पोर्ट्रेट्स और उनके रोज़मर्रा के इस्तेमाल का सामान मिला है जो किसी धरोहर से कम नहीं।
एक वाक़या याद आ रहा है बचपन का... एक दफ़ा दिल्ली से एक बड़े लेखक हमारे घर, गुलेर आए। उस वक्त मैं बहुत छोटी थी। उनका नाम तो मुझे याद नहीं लेकिन उन्होंने घर आकर गुलेरी जी की तसवीरों, उनके पत्रों, उनकी वस्तुओं को बड़े मनोयोग से देखा। गुलेरी जी से मुत्तालिक बहुत-सी बातें कीं मां-पापा के साथ। जाते-जाते उन्होंने हमारे कच्चे घर को नमन किया और देहरी से मिट्टी उठाकर माथे पर लगाई। उस वक़्त मुझे एहसास हुआ कि गुलेरी परिवार में जन्म लेने का क्या महत्व है।
एक सुखद संयोग यह हुआ कि 1994 में हरिपुर में, जो गुलेर से दो किलोमीटर दूर है, गुलेरी जी के नाम पर एक कॉलेज की स्थापना हुई। श्री चन्द्रधर गुलेरी डिग्री महाविद्यालय... जहां मैंने बड़े गर्व से दाख़िला लिया। ग्रेजुएशन वहीं से की। उसके बाद पारिवारिक और व्यावसायिक बाध्यताओं के चलते मुझे दिल्ली जाना पड़ा। दिल्ली में आगे की पढ़ाई और फिर दूरदर्शन, सहारा समय जैसे न्यूज़ चैनलों के साथ काम किया। इस दौरान अपने पैतृक गांव और राज्य से तो नाता टूटा ही, साहित्य से भी नाता टूटता-सा लगा। क़रीब सात साल तक पत्रकारिता की नौकरी में जीवन यंत्रचालित ही रहा। गुलेरी जी की साहित्यिक परंपरा को पापा ने कुछ हद तक आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। उन्होंने गुलेरी जी पर शोध किया, गुलेरी साहित्य शोध संस्थान की स्थापना की, कई किताबें लिखीं। लेकिन मैं थी कि चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।
2009 में मेरा विवाह हुआ और मैं मुंबई आ गई। शादी पर पतिदेव ने मुझे उसने कहा था फ़िल्म की डीवीडी तोहफ़े के रूप में दी। उन्हें भान था कि मेरे लिए इससे अनमोल और यादगार भेंट और कोई नहीं हो सकती। मुंबई आने के बाद छह महीने तक वही न्यूज़ चैनल की मशीनी ज़िंदगी चलती रही। लेकिन एक दिन मन कड़ा करके उस ज़िंदगी को अलविदा कह दिया। इस्तीफ़े के बाद चिंतन-मनन का समय मिला तो लिखने-पढ़ने का सिलसिला भी फिर शुरू हुआ। लेकिन इस बार यह लेखन किसी चैनल की मांग पर नहीं बल्कि नितांत मेरे अपने लिए था। शुरुआत कविता लेखन से हुई। फिर लेख-आलेख व संस्मरण लिखने शुरू किए जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। 
मुंबई में ही कवि अनूप सेठी से मुलाक़ात हुई। अनूप जी के ज़रिए हिमाचल की साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से मैं फिर वाबस्ता हुई, और अपनी जड़ों के प्रति मेरा प्रेम एक बार फिर हिलोरें लेने लगा। हाल में उन्होंने ‘हिमाचल मित्र’ के लिए गुलेरी वंश वृक्ष बनाने का आग्रह किया और यह ऐतिहासिक, ज़िम्मेदाराना काम करते हुए मैं फूली नहीं समाई।
फिलवक़्त उसने कहा था ब्लॉग का संचालन कर रही हूं, जो पूजनीय परदादा जी को समर्पित है। निकट भविष्य में गुलेरी जी पर एक वेबसाइट शुरू करने की योजना है। जितनी साहित्य रचना गुलेरी जी ने की, उसका अंशमात्र भी नहीं कर पाई हूं.... लेकिन कलम चल रही है तो लगता है कि कहीं-न-कहीं उनकी प्रपौत्री होने को जस्टीफाई कर पा रही हूं। उम्मीद है, और इच्छा भी कि कम-से-कम एक कहानी तो ऐसी लिखूं जो गुलेरी जी की कहानियों का आभास-मात्र ही पढ़ने वालों को दे जाए। 
-माधवी
(यह संस्मरण गुलेरी जयंती के अवसर पर फ़िल्मकार विवेक मोहन द्वारा शिमला में पढ़ा गया।)

20 comments:

  1. चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी को नमन ...... आप शौभाग्यशाली हैं जो आपने इस परिवार में जन्म लिया .... आपकी कहानी का इंतज़ार रहेगा

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  2. सुन्दर संस्मरण.....
    अपनी जड़ों को सींचना हमारा कर्त्तव्य है.....
    आपका लेखन देख आपके परदादा स्वर्ग में बहुत खुश हो रहे होंगे...

    पुरुष आये मंगल से............
    बेहतरीन लेखन के लिए बधाई...

    अनु

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  3. माधवी जी, आपकी रगों में गुलेरी जी का खून दौड़ रहा है, ये उन्हें देखने से कम है क्या? मुझे तो आपके भाग्य से ईर्ष्या हो रही है. गुलेरी जी की हस्तलिखित रचनाओं को यदि आप अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करें तो हम सब उनकी हस्तलिपि के दर्शन कर पायेंगे. आपकी रचनाओं का इंतज़ार है.

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  4. हिंदी पाठक जगत को ये बहुत बड़ा उपहार होगा. हिंदी इतिहास के शोधार्थी और प्रेमी भी गुलेरी जी के बारे में समग्र जानकारी और कथा संसार को एक जगह देख पाएंगे. वेबसाईट बनाने का श्रम साध्य काम आपको जरुर करना चाहिए.

    मेरी अनेक शुभकामनाएं कि यह एक अतुलनीय काम हो सके.

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  5. क्या बात है वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि आज दिनांक 09-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-935 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  6. सादर नमन श्रद्धेय को, जीवन परिचय नाम |
    अल्पायु से क्या हुआ, किये अनोखे काम |
    किये अनोखे काम, लिखा बुद्धू का कांटा |
    हो सुखमय संसार, नहीं गीला हो आंटा |
    उनके लेख विचार, हमारी घुट्टी प्यारी |
    बचपन से पी रहे, सभी घुट्टी से न्यारी ||

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  7. वाह क्या बात है.बहुत सुन्दर प्रस्तुती माधवी जी.



    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स

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  8. माधवी जी , परदादा जी के प्रति आपका अगाध प्रेम और उनके रचना ससार को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता अवश्य रंग लाएगी..शुभकामनाएं..

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  9. madhvi ji mai ''usne kaha tha''ki bahut prashansak rahi hu aur mera bhai bhi , abhi mai use phone kar apke blog ke bare me bataungi, bahut khushi hui muje

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  10. शुभकामनाएं..

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  11. स्वर्गीय गुलेरी जी को नमन. आपके ब्लॉग का शीर्षक भी अच्छा लगा.

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  12. यदि मैं भूल नही रहा हूँ तो गुलेरी जी की एक महान रचना ' कछुआ धर्म' है.इस रचना से मैं बहुत प्रभावित रहा हूँ . बहर हाल संस्मरण महत्वपूर्ण है . मै पीयूष प्रत्यूष गुलेरी का नाम खोजता रहा इस संस्मरण में . कोई बता रहा था कि वे भी इस परिवार से संबंध रखते हैं .

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  13. आप सभी का हार्दिक आभार!

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  14. अजेय जी, हां, वे गुलेरी खानदान से हैं. गुलेरी जी के पिता पंडित शिवराम के दो भाई थे- पंडित शिवा दत्ता और पंडित चेतराम. पीयूष गुलेरी और प्रत्यूष गुलेरी- दोनों पंडित चेतराम के प्रपौत्र हैं।

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  15. बेहतरीन!
    आशा है कि गुलेरी जी के बारे में और उनकी रचनाओं के बारे में हमें और गहरी बातों के बारे में पता चलेगा..
    यूँ ही लेखन, मनन, पठन जारी रखें..

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  16. Aap se ummeden ab aur badh gayeen!

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  17. यह अच्‍छा है कि आप गुलेरी जी की पोती हैं। विरासत को सँभालना एक बड़ी जिम्‍मेदारी है। लेखन तो आपकी अस्‍थिमज्‍जा में है, चाहे पत्रकारिता में रहें या रचनात्‍मक लेखन में। मुनव्‍वर राणा ने लिखा है: जो जानकार हैं मिट्टी से जान लेते हैं/ ये शजर कभी शेजरा नहीं बताता है। ---आपकी ऊर्जा बता रही है कि आपके भीतर कुछ मूल्‍यवान रचने की जद्दोजेहद चलती रहती है। एक लेखक का आत्‍मसंघर्ष यही है। यह इच्‍छा, यह प्रतिश्रुति कायम रहे, कामना है। स्‍वस्‍ति : ओम निश्‍चल/ 09696718182, वाराणसी

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  18. आज मेरे मन में करीब तीन वर्षों से चला आ रहा द्वन्द कुछ हद तक शान्त हुआ | आपने गुलेरी जी के संबंध में बहुत से अनछुए पह्लुयों को उजागर किया है जो केवल आप ही कर सकती थीं , आशा है आप और इस अभियान को जरी रखेंगी और एक एक कर उनकी सभी कहानिओं को यहाँ जिज्ञासुओं की ज्ञान पिपासा शांत करने हेतु उपलब्ध करवाओगी | आपको बहुत बधाई और मंगलकामनाएं |

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  19. Usne kaha tha is really a very good story. Really awsome, devine.

    I am also proud of the work you are doing. My good wishes for the entire Guleri family.

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  20. आपका हृदय से आभार इतना सुंदर व सार्थक संस्मरण लेख प्रस्तुत करने के लिए।

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