1.
सिमट गई
सिमट गई
बर्फ की रजाई में
शरद ऋतु
2.
चला कोहरा
2.
चला कोहरा
जाने किस दिशा में
लिए मन को
3.
पहन लिया
चिनार ने भी चोला
बसंत में
4.
मां का पहलू
जाड़े की धूप जैसा
नर्म-ओ-गर्म
5.
ठिठका हुआ
बादल उड़ गया
बरस कर
6.
चलता रहे
दरिया की तरह
जीवन चक्र
(हिमाचल मित्र के ग्रीष्म अंक 2011 में प्रकाशित)
bahut badhiya..rahe jaari..
ReplyDeletewah wah..... wah wah. suban allah.
ReplyDeleteKhushamadin
Tashi
The poem above is very fitting for this time in UK as here as we are getting too cold these days.The seasons are cyclic like the life itself. The whole earth is also cyclic even the whole unniverse is cyclic. well done.
ReplyDeleteBrilliant! - one word for your talent
ReplyDeletehaan jaari rahe,,.....yashpal
ReplyDeleteअश्विन, ताशी, राजेश, मेघना और संजय जी.. शुक्रिया !
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