(मौसम बदले, न बदले... हमें उम्मीद की कम-से-कम
एक खिड़की तो खुली रखनी ही चाहिए. अशोक वाजपेयी
की कविता, ऑनरी मातीस की कलाकृति 'द ओपन विंडो'
के साथ.)
एक खिड़की तो खुली रखनी ही चाहिए. अशोक वाजपेयी
की कविता, ऑनरी मातीस की कलाकृति 'द ओपन विंडो'
के साथ.)
मौसम बदले, न बदले
हमें उम्मीद की
कम-से-कम
एक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए
शायद कोई गृहिणी
वसंती रेशम में लिपटी
उस वृक्ष के नीचे
किसी अज्ञात देवता के लिए
छोड़ गई हो
फूल-अक्षत और मधुरिमा
हो सकता है
किसी बच्चे की गेंद
बजाय अनंत में खोने के
हमारे कमरे में अंदर आ गिरे और
उसे लौटाई जा सके
देवासुर-संग्राम से लहूलुहान
कोई बूढ़ा शब्द शायद
बाहर की ठंड से ठिठुरता
किसी कविता की हल्की आंच में
कुछ देर आराम करके रुकना चाहे
हम अपने समय की हारी होड़ लगाएं
और दांव पर लगा दें
अपनी हिम्मत, चाहत, सब-कुछ
पर एक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए
ताकि हारने और गिरने के पहले
हम अंधेरे में
अपने अंतिम अस्त्र की तरह
फेंक सकें चमकती हुई
अपनी फिर भी
बची रह गई प्रार्थना।
Very good your blog. With best wishes for
ReplyDeleteJonas
अंतस्थल से निकली बहुत बढ़िया चित्रमयी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteभावो को संजोये रचना......
ReplyDeletenice creation and very dep feelings
ReplyDeleteगूढ़ अर्थ लिए सुंदर रचना .......
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (12-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
उम्मीद की खिड़की खुली हो तो कुछ तो ताज़ी हवा आए .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteएक खिड़की की ये कविता कई खिड़कियों को खुली रखने की याद दिलाता है।
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