Tuesday, October 18, 2011

कितना अच्छा होता है

(सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता, जिसे बीसियों 
बार पढ़कर भी मन नहीं भरता. कितना अच्छा 
होता है, किसी कविता में देर तक डूबे रहना...)

एक-दूसरे को बिना जाने
पास-पास होना
और उस संगीत को सुनना
जो धमनियों में बजता है 
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं।

शब्दों की खोज शुरू होते ही 
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं 
और उनके पकड़ में आते ही 
एक-दूसरे के हाथों से 
मछली की तरह फिसल जाते हैं। 

हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है 
कुछ भी ठीक से जान लेना 
ख़ुद से दुश्मनी ठान लेना है। 

कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ ख़ुद को टटोलना 
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना।

9 comments:

  1. कितना अच्छा होता है
    एक-दूसरे के पास बैठ ख़ुद को टटोलना
    और अपने ही भीतर
    दूसरे को पा लेना। सुन्दर अभिवयक्ति....

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  2. वाह .....बहुत खूब

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  3. इस साहित्य स्तम्भ को मेरा भी नमन और रचना तो है ही सुंदर आपका आभार

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  4. बहुत अच्छा चयन है, माधवी.... दिल तक जाती है... सक्सेना जी बहुत आसान तरीके से बहुत गहरी बात करते रहे हैं...

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  5. पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
    ***************************************************

    "आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"

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  6. Meri priy kavita...bar bar lagatar padhna ise jaise sunna koi sangeet.

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  7. महोदया आपके यात्रा-वृत्त एक शोध के लिए सन्दर्भित किए गये हैं उसको जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है वह ब्लॉग ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ http://shalinikikalamse.blogspot.com/2011/10/blog-post.html पर प्रकाशित किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि आप इस ब्लॉग पर तशरीफ़ लाएं और अपनी महत्तवपूर्ण टिप्पणी दें। हाँ टिप्पणी में आभार मत जताइएगा वरन् यात्रा-साहित्य और ब्लॉगों पर प्रकाशित यात्रा-वृत्तों के बारे में अपनी अमूल्य राय दीजिएगा क्योंकि यहीं से प्रिंट निकालकर उसे शोध प्रबन्ध में आपकी टिप्पणी के साथ शामिल करना है। सादर-
    -शालिनी पाण्डेय

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  8. इसे इत्तेफाक नहीं तो और क्या कहूँ मैं,
    अभी कुछ देर पहले ही फेसबुक पर इस कविता के कुछ अंश मैंने शेयर किया..
    मुझे बहुत ही ज्यादा पसंद है या कविता...बल्कि कहूँ तो सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कवितायें अच्छी लगती हैं, बहुत!

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