Wednesday, October 5, 2011

औरत सहारा नहीं देती है

(बरसों पुरानी डायरी से एमिली डिकिन्सन की 
कविता का यह अंश मिला लेकिन कविता का 
नाम और अनुवादक- दोनों ही खोजने मुश्किल
पड़ रहे हैं!) 

औरत सहारा नहीं देती है 
मगर, चाहती है- 
कोई एक छोटा-सा मज़बूत दरख़्त 
उसकी बांहों के नीचे 
झुका रहे 
हर वक़्त।

7 comments:

  1. Baat bilkul sachchi hai
    puraani daayari ki panktiya sajha karne ka aabhar.

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  2. विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    कल 07/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. अच्छी प्रस्तुती....

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  4. खूबसूरत भाव भरी कविता
    विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

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  5. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  6. क्या खूबसूरत और शानदार बात कही गयी है कविता में!!!
    पूरी कविता मिले तो कृपया पोस्ट करें!

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