Tuesday, October 18, 2011

कितना अच्छा होता है

(सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता, जिसे बीसियों 
बार पढ़कर भी मन नहीं भरता. कितना अच्छा 
होता है, किसी कविता में देर तक डूबे रहना...)

एक-दूसरे को बिना जाने
पास-पास होना
और उस संगीत को सुनना
जो धमनियों में बजता है 
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं।

शब्दों की खोज शुरू होते ही 
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं 
और उनके पकड़ में आते ही 
एक-दूसरे के हाथों से 
मछली की तरह फिसल जाते हैं। 

हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है 
कुछ भी ठीक से जान लेना 
ख़ुद से दुश्मनी ठान लेना है। 

कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ ख़ुद को टटोलना 
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना।

Wednesday, October 5, 2011

औरत सहारा नहीं देती है

(बरसों पुरानी डायरी से एमिली डिकिन्सन की 
कविता का यह अंश मिला लेकिन कविता का 
नाम और अनुवादक- दोनों ही खोजने मुश्किल
पड़ रहे हैं!) 

औरत सहारा नहीं देती है 
मगर, चाहती है- 
कोई एक छोटा-सा मज़बूत दरख़्त 
उसकी बांहों के नीचे 
झुका रहे 
हर वक़्त।
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