Tuesday, January 4, 2011

बिनायक सेन के जन्मदिन पर

तुम उनकी साज़िशों को ख़त्म कर दोगे
तुम प्रवंचना की उनकी कुटिल
चालों का अंत कर दोगे

हत्याएं करने-करवाने की
ठंडी फांसियां देने-दिलवाने की
चुपचाप ज़हर घोलने-घुलवाने की

कारागार की नाटकीय कोठरियों में
मानवता को गलाने-गलवाने की
यानी उनकी एक-एक साज़िश को
तुम ख़त्म कर दोगे
हमेशा-हमेशा के लिए

मैं तुम्हारा ही पता लगाने के लिए
घूमता फिर रहा हूं
सारा-सारा दिन, सारी-सारी रात
आगामी युगों के मुक्ति सैनिक
कहां हो तुम?
-बाबा नागार्जुन

1 comment:

  1. bahut achhi rachna hai yeh

    kabhi yaha bhi aaye
    www.deepti09sharma.blogspot.com

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